इन्साफ़ की डगर !

आर. डी. भारद्वाज “नूरपुरी “

यह घटना २०१२ की है । इंडोनेशिया के एक जज ‘मरज़ुकी’ की अदालत में एक मुक़दमा आया , और यह कोई ऐसा मुक़दमा नहीं था जो पहली बार आया था और न ही बहुत ज्यादा हैरतअंगेज़ ! हुआ यूँ कि एक बूढ़ी औरत ने किसी बड़े ज़मीदार के फ़लों के बाग़ में से थोड़े से फल – अमरुद चुरा लिए थे , और ज़मीदार ने उस चोर औरत को सबक सिखाने के इरादे से मामला अदालत में पहुँचा दिया और ऐसे इस मुक़दमे की सुनवाई शुरू हो गयी ! क्योंकि वह बूढ़ी औरत को ज़मीदार के एक नौकर ने अपने ख़ेतों में से भागते हुए पकड़ लिया था , तो ऐसी स्थिति में अपने ऊपर लगे चोरी के आरोप से मुकर पाना भी उसके लिए इतना आसान नहीं था , अलबत्ता उसने अपना गुनाह कबूल कर लिया कि उसने ज़मीदार के अमरूदों के बाग़ में से थोड़े से फ़ल चुरा लिए थे !

दूसरी बात , उस बुढ़िया ने सोचा कि अगर वह अपना जुर्म कबूल कर लेगी , तो शायद जज उसके हालात और ईमानदारी पर तरस खाकर उसे मुआफ़ कर देगा । ऐसी ही सोच विचार की उदेड़बुन में उसने गिड़गिड़ाते हुए न्यायधीश से प्रार्थना की, ” जज साहब ! मैं बहुत गरीब हूँ, मेरा बेटा काफ़ी समय से बीमार चल रहा है , घर में कोई और पैसा कमाने वाला आदमी नहीं है, बीमार बेटे की दवा दारू के सिलसिले में घर में जो थोड़ी बहुत जमापूँजी थी , वह भी डॉक्टरों और दवाईयों की भेंट चढ़ गई , घर में मेरे चार पोते पोतियाँ भी हैं , वैसे मैं भी थोड़ा बहुत काम कर लेती हूँ , लेकिन इतनी महँगाई के ज़माने छः सात लोगों के परिवार का गुजर बसर करना बहुत ही मुश्किल है , बच्चे भूख से बिलख़ रहे थे , मेरे से देखा नहीं गया , इसीलिए मज़बूरन मुझे चोरी करनी पड़ी , वैसे मैंने कोई दो चार किवींटल अमरूद चोरी नहीं किये थे , बस अपने बच्चों के खाने के लिए ठाई – तीन किलो ही चुराए थे , ताकि मेरे भूखे बच्चों को खाने के लिए कुछ मिल जाये , बस यही एक छोटा सा जुर्म है मेरा , गलती हो गई साहिब ! मुझे मुआफ़ कर दीजिये !”

बाग़ की देखभाल करने वाला ज़मीदार का नौकर बोला, ” जज साहब ! मैंने इसे रंगे हाथों पेड़ों से अमरूद तोड़कर भागते हुए देखा है , अगर इसे अब सज़ा ना दी गयी तो आगे चलकर यह औरत और भी बड़ी २ चोरियाँ करने लग जाएगी , इसलिए, इसे कड़ी सज़ा दी जाये , ताकि दूसरे चोरों को भी उचित नसीहत मिल सके ! ” जज ने सारे पेपर जांच करने के बाद, नज़र ऊपर उठाई, उस बूढ़ी औरत पर तरस भी आ रहा था , मगर दूसरी तरफ़ वह देश में प्रचलित कानून को भी नज़र-अंदाज़ नहीं कर सकता था । वैसे भी ऐसे चोरी करने वाले को जेल की हवा खिलानी भी लाज़मी ही थी, ख़ास तौर पे उन मुजरिमों को जोकि चोरी करते हुए रंगे हाथों पकडे गए हों या फिर जिनके घर से चोरी का माल बरामद हो गया हो , कम से कम छः महीने की जेल हो सकती थी ! फिर न जाने उस न्ययाधीश के मन में कोई ख्याल आया , उसने उस केस की सज़ा सुनाने के लिए एक और तारीख़ मुकर्रर कर दी , जोकि एक महीने बाद थी ! साथ ही साथ , न्यायधीश ने उसदिन की अदालत की कार्यवाही मुकम्मिल करके स्थानीय पुलिस को निर्देश दे दिया कि वह उस औरत के बारे में पूरी तहक़ीक़ात करें , उसके घर के बारे में , उसके बच्चों के बारे में , उसके परिवार में आने वाली आमदनी के बारे में , और उसके घर के पूरे हालात की जानकारी हासिल करके एक गुप्त रिपोर्ट पन्द्राह दिन के अंदर २ अदालत के सामने पेश करने के लिए कहा !”

जज के निर्देश पालन करते हुए पुलिस ने अपनी तहक़ीक़ात के लिए कार्यवाही शुरू कर दी । और इस तहक़ीक़ात में यह सुनिश्चित हो गया कि उस मुजरिम बुढ़िया औरत के घर के हालात वाकया ही बहुत खराब चल रहे हैं , उनके पास तो घर की मूल जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रयाप्त धन राशि / साधन उपलब्ध नहीं हैं ! उसका इकलौता बेटा साधनों की कमी की वजह से ढंग से इलाज़ करवाने में भी असमर्थ है ! इस बात का भी खुलासा हो गया की इससे पहले उस औरत ने या उसके घर के किसी अन्य सदस्य ने कभी चोरी नहीं की है । तो ऐसे पुलिस ने न्ययाधीश के तमाम सवालों के जवाब की एक विस्तृत रिपोर्ट अदालत के सामने सच २ रख दिया , बिना किसी लाग लपेट से , बिना किसी भेद भाव के !

एक महीना पूरा होने के बाद अदालत की सुनवाही की अगली तारीख़ भी आ गई, निश्चित तिथि को अदालत में जब दोनों पक्षों के वकील , आरोपी और आरोपित हाज़िर थे तो न्यायधीश ने उस बुढ़िया और आरोप लगाने वाले वकील से दोबारा मामला सुना और फिर और बूढ़ी औरत से कहा, “मुझे तुम्हारी आर्थिक मंदहाली के बारे में जानकर बहुत दुःख है, परन्तु मैं कानून से अपना मुँह भी तो नहीं मोड़ सकता। इसलिए, तुम्हे तुम्हारे जुर्म से सम्बंधित कानून की धारा के तहत सज़ा तो अवश्य ही मिलेगी। क़ानून में तुम्हारे इस अपराध की सज़ा है – या तो आप इस जुर्म के तहत जुरमाने की रकम एक सौ डॉलर एक सप्ताह के भीतर २ जमा करवाओ , और अगर जुरमाना नहीं अदा किया गया – तो मजबूरन मुझे तुम्हें हिरासित में लेने का हुकम सुनाना पड़ेगा और फिर तुम्हें छः महीने के लिए जेल यात्रा करनी पड़ेगी !

छोटे से अपराध के लिए इतनी कड़ी सजा सुनकर उस बूढ़ी औरत के तो होश उड़ गए और वह रोने चिलाने लगी , क्योंकि जुर्माना वह नहीं भर सकती थी , अगर जुरमाना ना चुकाने के वजह से वह जेल चली जाती है तो उसके पीछे बच्चे कौन संभालेगा ? यह सबकुछ न्यायधीश को बताकर वह अपनी सजा मुआफ़ करने के लिए गिड़गिड़ाने लगी ! मगर जज अपनी जगह मजबूर था , अन्याय वह कर नहीं सकता था ! फिर कुच्छ ऐसा हुआ कि उस बूढ़ी औरत का रोना कुरलाना सुनकर , उसका दिल पसीज़ गया, और अदालत में उस वक़्त मौजूद तमाम लोगों को सम्बोधन करते हुए वह बोलने लगा , “मैंने स्थानीय पुलिस की मदद से इस बुढ़िया और इसके पूरे परिवार की एक ख़ुफ़िया रिपोर्ट मंगवाई है , उस रिपोर्ट में पुलिस ने बिलकुल स्पष्ट रूप में लिखा है कि यह बजुर्ग औरत वाकया ही बहुत गरीब है, इसका एक ही बेटा है जोकि पिछले काफ़ी अरसे से बिमार चल रहा है , और काम करने में असमर्थ है , इसके चार पोते पोतियाँ हैं , इसकी बहुरानी एक फैक्ट्री में मजदूरी करती है और उसकी आमदनी भी इतनी नहीं है कि अपने पति का इलाज़ करवा सके और घर के लिए दाल रोटी का प्रबंध भी कर सके ! इन सब हालातों को ध्यान में रखते हुए ही , अपने भूखे पोते पोतियाँ का पेट भरने के लिए ही इसने उस जमीदार के बाग़ से तीन किलो अमरुद चुराए थे ! चोरी करने की गलती तो इसने जरूर की है और अदालत में अपना जुर्म / गलती कबूल भी की है , तीन किलो अमरूद चुराना कोई बहुत बड़ा अपराध नहीं हैं ! हमारे ही देश में न जाने कितने बड़े २ और बहुत सी किस्मों के अपराधी घूम रहे हैं , मगर सबूतों के आभाव में उनके ख़िलाफ़ कोई अदालती कार्यवाही नहीं चल ही रही , और दूसरी ओर यह एक गरीब और बुजुर्ग महिला है , जिसके चोरी के इलज़ाम कबूल कर लेने की वजह से और चोरी के अमरूद उस से बरामद हो जाने की वजह से उसे , इस औरत को इस उम्र में छह महीनों के लिए जेल जाना पड़ सकता है !

देश में जो लोग उच्च स्थानों पर बिराजमान हैं उनका यह फ़र्ज़ भी बनता है कि वह अपने देश के सभी नागरिकों के लिए उचित रोजगार के साधन पैदा करे ताकि कोई भी इन्सान चोरी चकारी करने के लिए मजबूर ना हो पाए ! कोई भी बड़ी बीमारी से पीड़ित लोगों का ईलाज होना भी जरुरी है । इस बूढ़ी औरत ने चोरी तो अवश्य की है , मगर वह चोरी अपने भूखे बच्चों के पेट भरने के लिए ही की थी, अपनी तिज़ोरी भरने के लिए नहीं ! और ना ही इसने कोई बहुत बड़ा ग़बन किया है जिसकी वजह से हमारे देश को या समाज को कोई बहुत बड़ा आर्थिक नुकसान हो गया हो ! ऐसे हालातों में अगर मैं इसे छह महीने की भी सज़ा देता हूँ , और उन छह महीनों के दरमियान अगर इसके घर का कोई और सदस्य आर्थिक तंगी से परेशान होकर कोई ऐसा ग़लत कदम उठा ले / ग़लत रास्ते चल पड़े जोकि हमारे देश और समाज के लिए शर्मसार होने का कोई कारण बन जाये , तो इसके लिए अकेली यह औरत ही नहीं , बल्कि हमारा पूरा समाज भी जिम्मेदार होगा । अतः , इन सब हालातों को मद्देनज़र रखते हुए मेरा आप सभी से अनुरोध है कि इस बूढ़ी औरत को सजा से बचाने के लिए और इसके जुरमाने की राशि का भुगतान करने के लिए , जो भी इन्सान इसकी थोड़ी बहुत मदद कर सकता है , वह करे ! अंग्रेजी की एक कहावत है – “चैरिटी बिगिंनस एट होम” , इस पर खुद भी अमल करते हुए , मैं भी अपनी तरफ़ से ग्यारह डॉलर इसकी सहायता के लिए अपना योगदान देता हूँ ! इतना कहते ही उस न्यायधीश ने अपना हैट उतारा , और उसमें ग्यारा डॉलर डालकर , चपरासी को पकड़ा दिया और कहा कि इससे पूरी अदालत में घुमा दो , ताकि वहाँ पर मौजूद सभी लोग अपनी अच्छानुसार और हैसियत के हिसाब से इसकी सहायता कर सकें ! और एक छोटी सी गलती की वजह से यह बूढ़ी औरत या इसके घर का कोई और सदस्य को कोई बड़ा अपराधी बनने से बचाया जा सके ।

एक सच्चे और व्यापक / विस्तृत इंसाफ़ के लिए, जो लोग भी इस अदालत में हाज़िर थे , उन सबने अपनी २ अच्छानुसार उस बजुर्ग महिला की सहायता करने के लिए हैट में अपना २ योगदान डाल दिया , किसी ने पाँच डॉलर , किसी ने सात डॉलर तो किसी ने दस डॉलर । जब सबने मदद के लिए पैसे डाल दिए तो उस चपड़ासी ने न्यायाधीश के इशारे पर इकठ्ठे हुए पैसों की गिनती की तो पता चला की कुल मिलाकर 350 डॉलर की रकम इकठ्ठी हुई है । उसके बाद न्यायधीश के समझाने पर उस बजुर्ग महिला ने सहायता करने वाले सभी सज्जनों का धन्यावाद किया और आगे से ऐसी कोई गलती ना करने का वादा किया ! उसके बाद, न्यायधीश ने उस बूढ़ी औरत को निर्देश दिया कि इस धन राशि में से जुरमाने की रकम १०० डॉलर वह कोर्ट के रजिस्ट्रार के दफ़्तर में जाकर शीघ्र जमा करा दे और बाकी की रकम वह अपने घर ले जा सकती है, ताकि तुम्हारी आर्थिक हालात में कुच्छ सुधार आ सके । और इस शेष धन राशि से वह अपने घर के लिए जरुरी राशन या फिर कुच्छ और समान खरीद ले ताकि धन की कमी की वजह से कोई और ग़लत हरक़त ना करनी पड़ जाये , जिसके लिए उसे या फिर उसके घर के किसी और सदस्य को बाद में पश्ताना पड़े या शर्मिंदा होना पड़े ।

किसी भी देश की सरकार का यह सबसे पहला कर्तव्य होता है कि वो जनता को एक निस्वार्थ, ईमानदार, संवेदनशील, पारदर्शी और जवाबदेह प्रशासन और शासन दे ! जन लोकपाल, स्वराज, पूरा नोटा, देश की जनता को अपने चुने हुए प्रतिनिधियों में से जो निक्कमे या फिर भ्रष्ट नेताओं को राईट टू रिकाल अर्थात वापिस बुलाने के बुनियादी क़ानून बनाये ! समय २ सरकार चुनाव आयोग , पुलिस, न्यायिक और प्रशासनिक सुधार करे ! संस्थायें और मीडिया स्वायत्त हों और निष्पक्ष रूप में और बिना किसी भय के अपना काम करे और देश की जनता को समय २ पर उनके साथ हो रही बदसलूकियों / नागरिक सुविधायों में कमियाँ पेशियाँ को उजागर करें और उनको न्याय दिलाने में नागरिकों की सहायता करे ! बिना भेदभाव, हर नागरिक को सम्पूर्ण सुरक्षा, अच्छी स्वास्थ्य सेवा, अनिवार्य अच्छी शिक्षा, एक निश्चित समय सीमा में न्याय दिलाना , रोज़गार और सुखी जीवन सुनिश्चित करे !

क्या आपने कभी अपने देश की अदालतों में ऐसा होता हुआ देखा या सुना है ? क्या यहाँ भी कुच्छ ऐसा हो सकता है, कि हमारे देश की अदालतें भी इन्सानियत के दृष्टिकोण से सोचना शुरू कर दें और अपनी कार्यशैली में यथासम्भव तब्दीली या सुधार लाएँ ? फ़िलहाल तो यहाँ हालात ऐसे हैं कि एक सरकारी कंपनी अपने कर्मचारियों की गिनती कम करने के लिए स्वैच्छिक सेवा निवृति योजना लाई , आठ नौ वर्ष पहले , और जब देखा कि कम्पनी की योजनानुसार वह स्कीम सफ़ल नहीं हो पाई , तो कर्मचारियों को डरा धमका कर उनसे सेवा निवृति पेपरों पर जबरन दस्तखत करवा लिए , और बाद में जब सेवा निवृत कर्मचारियों ने अदालत में जबरदस्ती रिटायर करने का और उनसे उनकी नौकरियाँ छीन लेने का मुकदमा दायर कर दिया और अदालत से दरखास्त की वह सताये गए कर्मचारियों को उनकी छीनी गई नौकरियाँ वापिस दिलाई जाएं । अब यह मामला आठ नौ सालों से अदालत में चल रहा है । और नौकरी से निकाले गए उन दो सौ अस्सी कर्मचारियों में से आठ की तो आर्थिक मंदहाली की समस्या से झूझते हुए बहुत सारी परेशानियों और बिमारियों के शिकार हो जाने के बाद, अंतत: मृत्यु हो चुकी है ! हमारे देश की न्याय प्रणाली भी ऐसी है कि मामले अदालतों में दस पंद्रह वर्ष तक तो आम तौर पर चलते ही रहते हैं , फिर कर्मचारियों के केस लड़ने के लिए धन राशि अपनी जेब से खर्च करनी पड़ती हैं , जबकि कम्पनी के खर्चे सरकारी खाते से होते हैं , जिसकी किसी भी बड़े अधिकारी को परवाह नहीं होती । और इसी वजह से कम्पनी अपने कर्मचारियों को सालों साल परेशान करती रहती हैं ! एक बार तो इस कंपनी को ऐसे इतेमिनानी मुक़दमेबाज़ी (Leisure Litigation ) पर अदालत से प्रताड़ना भी मिल चुकी है , लेकिन कंपनी फिर भी सरकारी खर्चे पर कर्मचारियों पर बदले की भावना कार्यवाही करने से गुरेज़ नहीं करती । इतने लम्बे अरसे तक चल रहे अदालती मुक़दमेबाज़ी की वजह से बेरुजगार बैठे कर्मचारियों और उनके बीवी बच्चों पर क्या बीत रही है , नौकरी छूट जाने के कारण वह किन २ घिनौने हालातों / परेशानियों से झूझ रहे हैं , जिन्दा है या मर गए हैँ , इसके बारे में सोचने , समझने और गंभीरता से विचार करने की हमारे देश में ना तो कोई न्यायाधीश कुच्छ सोचते हैं , ना ही देश की सरकारें और न ही कोई और नेतागण , जैसे कि इंडोनेशिया में एक न्ययाधीश मारकुजी ने फ़ैसला सुनाने से पहले कितनी बड़ी सूझबूझ का परिचय दिया और उसके मुताबिक कार्यवाही भी की । वैसे प्रगति और विकास की जब भी तुलना करनी है , तो झटसे अमरीका , कनाडा , इंग्लैंड या फ़िर जर्मनी , फ्रांस और स्विट्ज़रलैंड या फिर ऑस्ट्रेलिया से अपनी तुलना कर देते हैं , लेकिन यह बात कोई नहीं सोचता की उन लोगों ने किन २ रास्तों पर चल कर विकास और प्रगति के इन चर्म बिंदुयों को प्राप्त किया है और वहाँ की सरकारें और अन्य सरकारी महकमे देश के नागरिकों की समस्याओं के प्रति कितने जागरूक और संवेदनशील है , और उन्होंने अपने नागरिकों को कितनी बड़ी मात्रा में सहूलतें भी उपलब्ध करवाई हैं !