डॉ.सरोज व्यास
प्राचार्या, एफ.आई.एम.टी
डॉ. योगेश दुबे की पुस्तक ‘डॉ. विवेकी राय के उपन्यासों में संवेदना का स्वरुप’ आवरण से ही मन को छू जाने वाले ग्रामीण रमणीय परिदृश्यों की झलक संवेदना को उकेरकर शहरी जनमानस की चेतना एवं विचारशीलता को झकझोर देने मे सक्षम है | पुस्तक में आंचलिक पृष्ठभूमि से जुड़ें संस्कार, परम्पराएं, रूढ़ियाँ, रीति-रिवाज़, तीज-त्यौहारों के साथ-साथ सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक परिदृश्य को सहजता से प्रस्तुत करना लेखक की रचनाधर्मिता, साहित्य-प्रेम, प्रतिबद्धता तथा जमीन से जुड़ें सह्रदय व्यक्तिव का परिचायक है | डॉ दुबे ने डॉ. विवेकी राय के उपन्यासों में परिलक्षित संवेदनाओं के स्वरुप को मूल रूप में पाठकों तक पहुंचाया है | मुख्य आधार ग्रन्थ ‘बबूल’, ‘पुरुष-पुराण’, ‘लोकऋण’, ‘श्वेतपत्र’, ‘सोना माटी’ ‘समर शेष है’, ‘मंगल भवन’, ‘नमामि ग्रामं’, ‘अमंगलहारी’ एवं ‘देहरी के पार’ उपन्यासों में तत्कालीन ग्रामीण समस्याओं, विभेदों एवं परिस्थितियों का चित्रांकन साहित्य के केनवास पर एक मंझे हुए चित्रकार के रूप में बखूबी किया है |
अभावग्रस्त ग्रामीण पृष्ठभूमि में उत्पन्न एक संघर्षरत किसान, अध्यापक, लेखक, पत्रकार एवं मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण विवेकी राय जी के जीवन की झलक उनके उपन्यासों के पात्रों में जीवंत रूप से परिलक्षित होती है | उन्होंने संवेदना के मूल में निम्न एवं उच्च जाति, गरीबी-अमीरी, नारी एवं पुरुष के चरित्र तथा नैतिकता का उल्लेख आत्म-सम्मान एवं परिस्थितिजन्य नियति और समर्पण को केन्द्र में रखकर किया है | पुस्तक को पांच अध्यायों में विभाजित करते समय डॉ. दुबे द्वारा विभिन्न आयु वर्ग के पाठकों की अभिरुचि एवं बौद्धिक स्तर को ध्यान में रखा जाना सराहनीय है |
पहले अध्याय में विवेकी राय जी के जीवन-संघर्ष, लेखन एवं उपलब्धियों का विस्तार से उल्लेख हिन्दी-साहित्य एवं पत्रकारिता में रुचि रखने वाले शोधार्थियों के लिए प्रेरणास्रोत है | दूसरे अध्याय में विवेकी राय जी के उपन्यासों का मर्म पाठकों के लिए सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है | ‘विवेकी राय का उपन्यास साहित्य और युग चेतना’ नामक तीसरा अध्याय प्रबुद्ध मननशील चेतन प्राणियों को शहरी एवं ग्रामीण पृष्ठभूमि के मूलभूत अंतर का परिचय देता है | चौथे अध्याय में नारी के नैतिक और अनैतिक चरित्र का चित्रण वैदिक काल से आधुनिक काल तक करते समय वेद-पुराण, स्मृतिग्रन्थ एवं ऋचाओं में उल्लेखित वक्तव्यों को भी सम्मिलित किया गया है, जिससे विभिन्न उद्धरणों से अध्येताओं की जिज्ञासाओं का निवारण पुस्तक को पढ़ने के बाद सहजता से हो जाता है | पांचवा अध्याय आंचलिक तथा प्रादेशिक जन-जीवन, भाषा-बोली एवं रहन-सहन का समग्र चित्र पाठकों तक पहुंचाता है |
‘पुरुष-पुराण’ के पात्र दुखना एवं उसकी पुत्रवधू के बीच घटित घटना में दो पीढियों की सोच का अंतर, ‘बबूल’ के घुरबिन चमार, उसकी पत्नी दरपनी और बेटा महेसवा की अभाव-ग्रस्त श्रापित जीवन की विडम्बना और ‘लोकऋण’ के मुख्य-पात्र राम उछाह के तीन पुत्रों के अधिकार एवं स्वार्थी मनोवृति का उल्लेख, विवेकी राय ने ६० से ८० के दशक के बीच किया था | बधाई के पात्र है डॉ. दुबे, जिन्होनें उस देश-काल में घटित घटनाओं को विवेकी राय जी के उपन्यासों के गहन स्वाध्याय उपरांत २१ वीं सदी की पीढ़ी के समक्ष समग्र एवं जीवंत रूप में प्रस्तुत कर दिया | पात्रों के नैतिक और अनैतिक आचरण की समीक्षा तर्कसंगत रूप से किया जाना लेखक की संवेदनशीलता को उजागर करता है, वही वर्तमान पीढ़ी के सामने ज्वलंत प्रश्न भी उपस्थित करता है, कि उच्च-कुल, साधन-सम्पन्न, शिक्षित अभिजात्य वर्ग का शहरी जन-समुदाय अनैतिक आचरण करने को बाध्य क्यों है ? विवेकी राय के उपन्यासों के पात्रों के आचरण ( नैतिक और अनैतिक ) को लांछित होने से लेखक ने अशिक्षा, गरीबी, शोषण, वर्ग एवं वर्ण व्यवस्था का आधर स्तंभ देकर बचा लिया, लेकिन तत्कालीन एवं वर्तमान समाज में, फिर चाहे वह ग्रामीण परिवेश हो अथवा शहरी, मानवीय स्वछन्द अनैतिक आचरण में कोई आमूल-चूल परिवर्तन दिखाई नहीं देता |
कहीं-कहीं विचारों में विरोधाभास दिखाई पड़ता है, निष्कर्ष स्वरूप स्वयं के दृष्टिकोण तथा कामुकता एवं नैतिकता के विषय में मर्यादित एवं संक्षिप्त टिप्पणी अतिअनुशासित लेखन का परिचायक है | निष्कर्ष इससे बेहतर लिखा जा सकता था | हिन्दी पत्रकारिता एवं शोध-कर्ताओं के लिए यह पुस्तक ‘मील का पत्थर’ साबित होगी | पुस्तक को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिये | पुस्तक में हिन्दी, भोजपुरी एवं गाजीपुर क्षेत्र (उत्तर प्रदेश) की स्थानीय बोली का मिला-जुला प्रयोग पुस्तक की विषय सामग्री एवं पृष्ठभूमि को संबल प्रदान करने में उपयोगी रहा है |