राम जानकी संस्थान पॉजिटिव ब्रॉडकास्टिंग हाउस (आरजेएस पीबीएच) और आरजेएस पॉजिटिव मीडिया के संस्थापक व राष्ट्रीय संयोजक उदय कुमार मन्ना द्वारा आजादी के अमृत काल में आयोजित श्रृंखलाबद्ध 393वें अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार में भारत और विदेश के प्रतिष्ठित विशेषज्ञों ने “भारतीय भाषाओं और संस्कृति के वैश्विक योगदान” पर विचार-विमर्श किया। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, विदेश मंत्रालय भारत सरकार के वरिष्ठ कार्यक्रम निदेशक सुनील कुमार सिंह द्वारा अपनी माता स्व० श्रीमती भगवान सिंह -पिता स्व० श्री बलबीर सिंह और पूज्य कवि गोपाल दास नीरज(पुण्यतिथि 19 जुलाई) की स्मृति में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने आईसीसीआर के लगभग 40 सांस्कृतिक केंद्रों की वैश्विक उपस्थिति का हवाला दिया, साथ ही ब्रह्मकुमारी, इस्कॉन जैसे संगठन भी सक्रिय रूप से विदेशों में भारतीय भाषाओं और संस्कृति को बढ़ावा दे रहे हैं।उन्होंने यह भी बताया कि दुनिया भर में हिंदी बोलने वालों की संख्या लगभग 1.56 बिलियन है, जो इसे विश्व स्तर पर सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक बनाती है, जिसे 200 से अधिक विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है।
मुख्य अतिथि प्रसिद्ध लेखक और भाषाविद् और पूर्व राजनयिक अनिल जोशी ने कहा कि दक्षिण पूर्व एशिया में बौद्ध धर्म, तमिल संस्कृति), और “गिरमिटिया” देशों मॉरीशस, फिजी, त्रिनिदाद, में जहां रामचरितमानस दैनिक जीवन में गहराई से एकीकृत है, और पश्चिमी देशों यूके, यूएस में भारत के प्रभाव का विवरण दिया, जहां भारतीय मूल के नेताओं का उदय एक गहरा “सांस्कृतिक प्रभाव” दर्शाता है।योग की वैश्विक स्वीकृति एक महत्वपूर्ण योगदान है। हमें पहले घरेलू स्तर पर अपनी भाषाओं और पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों को मजबूत करने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम में तकनीकी बाधा के उपरांत कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा. अनिल सुलभ ने बताया कि भारत के मनीषियों ने विश्व कल्याण के लिए देशाटन व वैश्विक सांस्कृतिक यात्राओं में संपूर्ण मानव जाति को वैदिक व भारतीय ज्ञान -विज्ञान से परिचित कराया और जीवन जीने की कला सिखाई। संस्कृतानुरागी एवं वेदों के प्रति अगाध आस्था रखने वाले जर्मनी के मैक्समूलर ने भारत आकर बिहार के नालंदा विश्वविद्यालय संस्कृत का गहरा अध्ययन किया और अनेक संस्कृत की पुस्तकें और अध्यापकों को ले गए।
आज भी दुनिया की सबसे बड़ी संस्कृत पुस्तकालय जर्मनी में है। 36 भाषाओं के ज्ञाता यायावर राहुल सांकृत्यायन ने सोवियत रूस तक अपने विचारों को प्रसारित किया। ये भारत के महान ग्रंथों का प्रभाव ही रहा कि रामायण, महाभारत, गीता और रामचरित मानस का विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ। हमारे वैदिक साहित्य और ज्ञान ने विश्व में भारतीय ज्ञान का ध्वज लहराया।ये केवल लोक-मंगलकारी उपदेश नहीं थे, बल्कि पूर्ण विज्ञान था। विदेशों में हुए अनुसंधान और संयंत्रों का स्रोत एक हद तक हमारे वेद, वैदिक साहित्य और पौराणिक साहित्य हैं। महान वैज्ञानिक गैलेलीयो का कथन “पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है”, उससे पहले ही बिहार के खगोलविद् आर्यभट्ट ने दुनिया को इस बात का प्रमाण दे दिया था।
अतिथि वक्ता नीदरलैंड में रहने वाली प्रसिद्ध लेखिका और समाज सेविका डॉ. रितु शर्मा ननंन पांडे ने कहा कि संस्कृत ने वेदों, उपनिषदों, महाभारत और रामायण के माध्यम से विज्ञान, गणित (शून्य की अवधारणा), खगोल विज्ञान और दर्शन में वैश्विक ज्ञान में बहुत योगदान दिया। 17वीं शताब्दी में, डच पुरातत्वविद् जान फिलिप पे ने भारत में संस्कृत सीखी और बाद में नीदरलैंड में लीडेन विश्वविद्यालय में एक इंडोलॉजी विभाग की स्थापना की।
मुख्य वक्ता इंग्लैंड से एमबीई से सम्मानित लेखक और ‘पुरवाई’ पत्रिका के संपादक तेजेंद्र शर्मा ने भारत से बौद्ध धर्म के प्रसार को शायद सबसे बड़ा ऐतिहासिक वैश्विक योगदान बताया।उन्होंने यूके के स्कूलों में हिंदी विभाग बंद होने पर चिंता जताई।उन्होंने अपनी मार्मिक कविता “गर भारत ना जा सकते हो, भारत यहां बना सकते हो” के साथ निष्कर्ष निकाला, जिसमें भारत को केवल एक देश नहीं बल्कि एक “चेतना” के रूप में परिभाषित किया गया है।
विशिष्ट अतिथि द टेंपल ऑफ अंडरस्टैंडिंग इंडिया फाउंडेशन, नई दिल्ली के महासचिव डॉ. ए.के. मर्चेंट ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार मातृभाषा शिक्षा की वकालत थी, लेकिन उन्होंने शिक्षण सामग्री की वर्तमान कमी पर खेद व्यक्त किया। भाषा विवाद का स्रोत नहीं बल्कि “अभिव्यक्ति के लिए सभी भारतीय भाषाओं के सम्मान होना चाहिए।
अतिथि वक्ता दिल्ली विश्वविद्यालय के वेंकटेश्वर कॉलेज में हिंदी विभाग की प्रोफेसर प्रोफेसर ऋचा मिश्रा ने अलेक्सेई पैत्रोविच वरान्निकोव द्वारा रामचरितमानस के अद्वितीय रूसी अनुवाद पर प्रकाश डाला।उन्होंने चेक कवि ओडोलेन स्मेकल को भी उद्धृत किया, जिन्हें पहले यूरोपीय हिंदी कवि के रूप में माना जाता है।उन्होंने जापान में अपने अध्यापन के दौरान के दृश्य उदाहरण भी साझा किए, जिनमें गांधी के तीन बंदर और जापानी मंदिरों में बुद्ध की मूर्तियाँ शामिल थीं, जो भारत के व्यापक सांस्कृतिक और धार्मिक प्रभाव का प्रतीक हैं।
अपने समापन भाषण में, आइसीसीआर के वरिष्ठ कार्यक्रम निदेशक सुनील कुमार सिंह ने सभी वक्ताओं द्वारा दिए गए “ज्ञानवर्धक और प्रभावशाली” भाषणों के लिए हार्दिक आभार व्यक्त किया।