अखिल भारतीय राष्ट्र चेतना संघ के तत्वावधान में संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष, गांधीवादी विचारक और चिंतक दयानंद वत्स की अध्यक्षता में उत्तर पश्चिम दिल्ली स्थित संघ के मुख्यालय बरवाला में महान समाज सुधारक स्वामी दयानंद सरस्वती की 193वीं जयंती पूर्ण श्रद्धा और सादगी से मनाई गयी। इस अवसर पर अपने संबोधन में श्री वत्स ने कहा कि आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती आधुनिक भारत के निर्माता थे। यह उपाधि उन्हें डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने दी थी। स्वामी जी ने भारत में वैदिक संस्कृति की पुनर्स्थापना के लिए सांसारिक सुखों का परित्याग कर दिया था और आजीवन सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन के लिए मार्गदर्शक बने। बेटियों की शिक्षा के लिए और अछूतोद्धार के लिए स्वामी दयानंद सरस्वती ने ही सर्वप्रथम आवाज बुलंद की। उन्होने स्त्रियों को वेद अध्ययन के लिए प्रेरित किया।
श्री वत्स ने कहा कि 21वीं सदी में आने के बावजूद भारत में अभी भी सामाजिक करीतियां दहेज के दानव के रुप में विद्यमान हैं। देश की आधी आबादी स्त्रियां आज भी अपने मान-सम्मान और स्वाभिमान के लिए जूझ रही हैं। धर्मनिरपेक्ष देश होने के बावजूद भारत में लोग आज भी जाति, धर्म, भाषा, लिंग, संप्रदाय के नाम पर बटे हैं। राष्ट्रीय एकता, अखंडता और सांप्रदायिक सौहार्द भारतीय संस्कृति की विशेषता सदियों से रही है। श्री वत्स ने स्वामी दयानंद सरस्वती की शिक्षाओं को जीवन में अपना कर सामाजिक कुरीतियों के समूल विनाश और समाज में स्त्रियों की सुरक्षा, आत्मसम्मान और उनकी आत्मनिर्भरता का संकल्प लिया।