आम आदमी पार्टी की अध्यापक इकाई दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन (डीएटी) ने दिल्ली विश्वविद्यालय के काॅलेजों के शिक्षकों को वेतन नहीं दिए जाने के मामले की जांच सीएजी से कराने की मांग की है। संगठन सचिव डॉ. मनोज कुमार सिंह ने कहा कि इस मामले की जांच डीयू प्रशासन और काॅलेज स्तर पर भी की जानी चाहिए, लेकिन जांच के चलते शिक्षकों और कर्मचारियों की सैलरी न रोकी जाए। संगठन प्रभारी डॉ. हंसराज सुमन ने कहा कि आम आदमी पार्टी की सरकार से पहले दिल्ली में जिस की सरकार होती थी, उसी सरकार के लोग कॉलेजों की गवर्निंग बॉडी में चेयरमैन और कोषाध्यक्ष के पद पर चयनित होते थे। आज इन काॅलेजों में दिल्ली सरकार की गवर्निंग बॉडी तो बनी, लेकिन कॉलेज प्रशासन ने उसे काम नहीं करने दिया। उन्होंने कहा कि ‘आप’ सरकार ने काॅलेजों का बजट बढ़ा कर दोगुना (243 करोड़ रुपये) कर दिया है, फिर भी काॅलेज अपने शिक्षकों व कर्मचारियों का वेतन नहीं दे पा रहे हैं।
यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि दिल्ली सरकार जानबूझ कर शिक्षकों का वेतन नहीं दे रही है- डॉ. मनोज कुमार सिंह
आम आदमी पार्टी के मुख्यालय पर आज पार्टी की अध्यापक इकाई दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन (डीएटी) ने एक प्रेस वार्ता का आयोजन किया। प्रेस वार्ता में दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन की अध्यक्षा डॉ. आशा रानी, उपाध्यक्ष डॉ. नरेंद्र पांडे, संगठन सचिव डॉ. मनोज कुमार सिंह और संगठन प्रभारी डॉ. हंसराज सुमन मौजूद रहे।
पत्रकारों को संबोधित करते हुए सचिव डॉ. मनोज कुमार सिंह ने कहा कि अलग-अलग माध्यमों से लोगों के बीच जो खबर फैलाई जा रही हैं, उससे यह भ्रम फैल रहा है कि दिल्ली सरकार जानबूझ कर शिक्षकों का वेतन नहीं दे रही है। हमारे मन में भी इस संबंध में कुछ शंकाएं पैदा हो रही थीं, जिसके समाधान के लिए हम दिल्ली के उपमुख्यमंत्री एवं शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया जी से मिले और हम लोगों के मन में जो एक शंका थी, उसका समाधान कल मनीष सिसोदिया जी ने हमें दिया।
उपमुख्यमंत्री एवं शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया जी से मिलने के बाद जिस सत्यता का हमें पता चला, उस से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बातें हम मीडिया के माध्यम से जनता के समक्ष रखना चाहते हैं। पिछले 15 साल से दिल्ली यूनिवर्सिटी में कोई नियुक्ति नहीं की गई है, क्या इसके लिए भी दिल्ली सरकार जिम्मेदार है? पिछले 10 सालों से कोई पदोन्नति नहीं हुई है क्या इसके लिए भी दिल्ली सरकार जिम्मेदार है? उन्होंने कहा कि केंद्र के जो प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय हैं, आज उनकी क्या स्थिति है, यह किसी से छिपा नहीं है और दिल्ली सरकार से जुड़े हुए जो विश्वविद्यालय हैं, चाहे ट्रिपल आईटी हो, डीटीयू हो या अंबेडकर विश्वविद्यालय हो, वहां किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं है। दीनदयाल उपाध्याय और राजगुरु कॉलेज, जो पूर्ण रूप से दिल्ली सरकार द्वारा फंडेड है, वहां का इंफ्रास्ट्रक्चर विश्व स्तरीय है। अब प्रश्न यह उठता है कि जब इतनी बेहतर व्यवस्था दिल्ली सरकार ने अपने कॉलेजों में की हुई है, तो दिल्ली सरकार कॉलेजों में पढ़ाने वाले अध्यापकों और कर्मचारियों का वेतन क्यों रोकेगी?
डॉ मनोज कुमार सिंह ने कहा कि श्री मनीष सिसोदिया जी के साथ बातचीत में जो तथ्य उन्होंने हमें बताएं वह बेहद ही चैंकाने वाले हैं। उन्होंने कहा कि इस पूरे मामले की जांच होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय के जो कॉलेज हैं। उनमें तीन स्तर की जांच होती है, सीएजी द्वारा जांच की जाती है, विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा जांच की जाती है और कॉलेज का अपना भी एक जांच विभाग होता है। हम लोगों की यह मांग है कि यह जांच होनी चाहिए। परंतु साथ ही साथ हमारी यह भी मांग है कि इस जांच के चलते अध्यापकों और कर्मचारियों की सैलरी न रोकी जाए, उसे तुरंत प्रभाव से आवंटित किया जाए। इस जांच के संबंध में हम लगातार सरकार के संपर्क में हैं।
कांग्रेस सरकार के समय में काॅलेजों को जो बजट दिया जाता था, आज ‘आप’ सरकार उससे डबल बजट दे रही है- डॉ. हंसराज सुमन
प्रेस वार्ता में मौजूद दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन के संगठन प्रभारी डॉ. हंसराज सुमन ने कॉलेज गवर्निंग बॉडी संरचना पर जानकारी देते हुए बताया कि दिल्ली में दिल्ली सरकार से संबंधित दो प्रकार के कॉलेज हैं। जिनमे 12 कॉलेज तो वह है जो 100 प्रतिशत दिल्ली सरकार द्वारा वित्त पोषित है और 16 कॉलेज ऐसे हैं, जिनको दिल्ली सरकार 5 प्रतिशत ग्रांट देती है। आज से पहले दिल्ली में जिस की सरकार होती थी, उसी सरकार के लोग, सरकार से संबंधित कॉलेजों की गवर्निंग बॉडी में चेयरमैन और कोषाध्यक्ष के पद पर चयनित होते थे। दिल्ली में लगातार स्व. शीला दीक्षित जी की अध्यक्षता में 15 साल कांग्रेस की सरकार रही, तो दिल्ली सरकार से संबंधित कॉलेजों की गवर्निंग बॉडी में कांग्रेस के लोग ही चेयरमैन और कोषाध्यक्ष के पद पर आसीन रहे। कुछ समय भारतीय जनता पार्टी की सरकार भी दिल्ली में रही, तो भाजपा के लोग ही संबंधित कॉलेजों की गवर्निंग बॉडी में चेयरमैन और कोषाध्यक्ष की पद पर आसीन रहे रहे।
उन्होंने कहा कि जो 12 कॉलेज 100 प्रतिशत दिल्ली सरकार द्वारा वित्त पोषित हैं, दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने से पहले, कांग्रेस सरकार के समय में इन कॉलेजों के लिए सन 2012-13 में 121.82 करोड़ों रुपए बजट आवंटित किया गया था और आज आम आदमी पार्टी की सरकार के पिछले 5 साल के कार्यकाल में यह बजट बढ़ाकर लगभग 243 करोड रुपए कर दिया गया है। अर्थात कांग्रेस के समय में जो बजट दिया जाता था, उससे डबल बजट आज आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार इन कॉलेजों को दे रही है। जहां आज बजट डबल हो गया है, बावजूद इसके आज कॉलेज प्रशासन कहता है कि हम इतने बजट में केवल कर्मचारियों और शिक्षकों का वेतन ही दे पाते हैं, पेंशन और चिकित्सा बिल जैसे अन्य जो खर्च हैं ,उसका भुगतान हम नहीं कर पाते हैं, इसके पीछे क्या कारण है? यह जनता के सामने आना बेहद जरूरी है।
डीयू प्रशासन कॉलेजों में गवर्निंग बॉडी का चयन नहीं होने दे रहा है- डॉ. हंसराज सुमन
उन्होंने कहा कि किसी भी कॉलेज में कुछ स्वीकृत पद होते हैं और इन्हीं स्वीकृत पदों के आधार पर नियुक्तियां होती हैं। परंतु आज इन कॉलेजों ने ऐसी व्यवस्था बनाई हुई है कि जो कॉलेज की गवर्निंग बॉडी होती है, जो कि राज्य सरकार के हस्तक्षेप से बनती है, इन कॉलेजों में दिल्ली सरकार की गवर्निंग बॉडी तो बनी परंतु कॉलेज प्रशासन में इन गवर्निंग बॉडीयों को काम नहीं करने दिया। किसी कॉलेज में गवर्निंग बॉडी को मात्र 5 महीने काम करने का मौका मिला, तो किसी को मात्र 7 महीने काम करने का मौका मिला। पिछले 5 सालों में 15 महीने से ज्यादा किसी गवर्निंग बॉडी को काम करने का मौका नहीं मिला। सबसे चैंकाने वाली बात यह है कि जब कांग्रेस की दिल्ली में सरकार थी तो सभी प्रतिनिधि कांग्रेस के थे और जब भाजपा की दिल्ली में सरकार थी तो सभी प्रतिनिधि भाजपा के थे। परंतु आज जब दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है, तो भारतीय जनता पार्टी एवं आरएसएस के लोग कॉलेज प्रशासन के साथ मिलकर कोशिश कर रहे हैं कि चेयरमैन और कोषाध्यक्ष के पद पर उनके चुने हुए लोग बैठें। दिल्ली सरकार के कुल 28 कॉलेज हैं जिनमें लगभग 22 कॉलेजों में प्रिंसिपल की नियुक्ति होनी है, उन कॉलेजों में भाजपा अपने लोगों को प्रिंसिपल के पद पर नियुक्त करना चाहती है। बहुत सारे कॉलेजों में लाइब्रेरियन नहीं है, वहां पर यह लोग अपने लोगों को लाइब्रेरियन के पद पर लगवाना चाहते हैं। जिन कॉलेजों में फिजिकल डाॅयरेक्टर नहीं है, वहां अपने लोगों को फिजिकल डायरेक्टर के पद पर लगवाना चाहते हैं। लगभग 1500 से अधिक स्थाई नियुक्तियां अध्यापकों की होनी है जो इस समय में एडहॉक बेस पर काम कर रहे हैं, ऐसी स्थिति में भी दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन कॉलेजों के अंदर गवर्निंग बॉडी का चयन नहीं होने दे रहा है। डॉक्टर हंसराज सुमन ने बताया कि लगभग 40 प्रतिशत कॉलेजों में अभी गवर्निंग बॉडी बनना बाकी है और जिन कॉलेजों में गवर्निंग बॉडी बन चुकी है, उनमें से भी कई कॉलेजों में विश्वविद्यालय प्रशासन जबरदस्ती अपने लोगों को चेयरमैन और कोषा अध्यक्ष के पद पर बैठाने का दबाव बना रहा है। उन्होंने कहा जबकि कानून यह कहता है कि विश्वविद्यालय की ओर से जो 2 लोग गवर्निंग बॉडी के लिए भेजे जाते हैं, वह लोग चेयरमैन या कोषा अध्यक्ष के पद पर नहीं बैठाई जा सकते।