आईआईएमटी विश्वविद्यालय में चल रहे तीन दिवसीय मेरठ लिटरेरी फेस्टिवल के दूसरे दिन साहित्यिक परिचर्चा, लघु कहानी वाचन और कवि सम्मेलन व मुशायरे का आयोजन हुआ। साहित्यिक परिचर्चा में वर्तमान कश्मीर प्राचीन साहित्य व सैन्य लेखक, पुस्तकों से दूर होते पाठक व डिजिटल क्रान्ति, साहित्यिक मंच और बाजारीकरण विषय रखे गए। मेरठ लिटरेरी फेस्टिवल और ग्रीन केयर सोसाएटी के अध्यक्ष डाॅ. विजय पंडित और वरिष्ठ साहित्यकार रामगोपाल भारती ने सफलतापूर्वक मंच संचालन किया।
प्रथम सत्र में रक्षा विशेषज्ञ और लेखक मेजर गौरव आर्य ने सैन्य समस्याओं और सैनिक के विचारों को महत्व दिए जाने की बात कही। उन्होंने कहा कि इस देश में चाहे राजनेता हो या फिर कोई सामान्य व्यक्ति सभी को अपने विचार रखने की आजादी है। लेकिन एक सैनिक को विभिन्न प्रतिबंध लगाकर विचार रखने से वंचित कर दिया गया है।
द्वितीय सत्र में मंचीय कविता और बाजारीकरण विशय पर गहराई से प्रकाश डाला गया। अमेरिका से आए वरिश्ठ साहित्यकार प्राण जग्गी, नेपाल की साहित्यकार श्वेता दीप्ति, भूटान के साहित्यकार छत्रपति फुएल, नेपाल के साहित्यकार सूर्य प्रसाद लाखूजा, डाॅ. कृष्ण कुमार और अन्तर्राश्ट्रीय साहित्य कला मंच के संस्थापक डाॅ. महीप चन्द्र दिवाकर मंचासीन रहे। जयपुर से आए राजेन्द्र मोहन शर्मा ने कविता के बाजारीकरण को एक चुनौती बताते हुए कहा कि कविता तो साहित्य का एक हिस्सा है और साहित्य का भी बाजारीकरण हो चुका है। बाजार ने यही समझ लिया है कि वही बिकेगा जो मैं बेचूंगा। हिन्दी के सशक्तिकरण में साहित्य को नहीं हिन्दी को हिंग्लिश बना देने वाले सिनेमा के योगदान को सराहा जा रहा है।
मुरादाबाद से आए साहित्यकार डाॅ. महीप चन्द्र दिवाकर ने हिन्दी को लेकर विश्व पटल पर सकारात्मकता दिखने की बात कही। उन्होंने कहा कि 120 देशों के 500 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिन्दी पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं। 20 से अधिक देशों में हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार बहुत तेजी से हो रहा है। भारत के तमाम साहित्यकार वहां जाते हैं। विदेशों के मंदिरों में हिन्दी की पढ़ाई हो रही है। वर्तमान दौर में भाषा परिवर्तित हो रही है जो कि होनी भी चाहिए। समय के अनुसार परिवर्तन आवश्यक है। जब गौमुख से निकली गंगा के रास्ते परिवर्तित हो सकते हैं तो हमें हिन्दी के नए स्वरूप को भी समझना और स्वीकार करना होगा। अपनी भाषा से प्यार और दूसरे की भाषा से परहेज नहीं चलेगा। हिन्दी का सम्मान बढ़ाने के लिए दूसरी भाशाओं का सम्मान भी करना होगा।
साहित्यकार रंजीता सिंह ने महिला रचनाकारों की अहमियत पर चिंता व्यक्त करते हुए साहित्यिक मंचों के आयोजकों और श्रोताओं पर कटाक्ष किए। कहा कि मंचों पर पुरूष तो किसी आयु वर्ग के हों उन्हें सम्मान दिया जाता है, लेकिन महिला यदि अधिक आयु या सूरत में अच्छी नहीं है तो उसे बुलाया तक नहीं जाता। साहित्य का अर्थ जनचेतना का सुर होता है।
डाॅ. श्वेता दीप्ति ने कहा कि भावनाएं और अनुभूति हैं तो कविताएं हैं। कविता की सार्थकता तभी है जब प्रबुद्ध लोग और श्रोता उसे सराहें। हम क्या लिख रहे हैं, बात क्या कर रहे हैं आदि विशयों की समीक्षा करनी होगी। साहित्य आपकी ईमानदारी खोजता है। साहित्य को रोजगार से जोड़ेंगे तो निराशा हो सकती है।
झारखंड से आए दिनकर शर्मा ने पक्षी और दीमक की कहानी को एकल अभिनय के माध्यम से मंच पर दर्शाया।
आईआईएमटी विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने म्यूजिकल बैंड वर्नल से हिन्दी गीतों के माध्यम से साहित्यकारों को समझ अपनी प्रतिभा दिखाई।
तृतीय सत्र में कवि सम्मेलन और मुशायरे ने लोगों का मन मोह लिया। श्रंगार, वीर और देशभक्ति की कविताएं सुनकर श्रोताओं ने खूब तालियां बजाईं। युवा कवि नितिश राजपूत ने बन रहे है रवि हम तुम्हारे लिए तोड़ अपनी छवि हम तुम्हारे लिए और मुदित बंसल ने उसकी फितरत परिंदे जैसी थी, मेरा मिजाज बिल्कुल वैसा पर खुब सराहना पाई। गुलजार देहलवी भी कार्यक्रम में उपस्थित रहे। चतुर्थ सत्र में कर्नल डाॅ. बीएस राणा ने वर्तमान कश्मीर एवं सैन्य साहित्य पर अपने विचार व्यक्त किए।