प्रवीण कुमार शर्मा
अकेले खामोश
चुप-चाप बैठी
रात तुम्हारे बिन
भीड़ में भी तन्हा
न तन्हा थी कभी
रात तुम्हारे बिन
छिपती-छिपाती
पगली-शर्मीली
रात तुम्हारें बिन
पगली-शर्मीली
रात तुम्हारें बिन
शोर से घबराई
गिर-गिर कर संभली
आखे पथराई
करवट बदलती
रात तुम्हारे बिन
बोलती रात लड़खडाई
अल्लहड़ रात कतराई
तेज शोर के बाद
वीराने का सन्नाटा समेटती
रात तुम्हारे बिन
खुद ही मे सिमटी
खुद ही मे समाई
खुद ही से घबराई
एक रात तुम्हारे बिन।
एक रात तुम्हारे बिन।।