प्रेमबाबू शर्मा
नवरात्रों का एक अलग महत्व है इस त्यौहार को लेकर टीवी कलाकारों एक अलग नजरिया है जानते है उनकी ही जुबानी-
हिना खान – ये रिश्ता क्या कहलाता है की अक्षरा
नवरात्रि एक बडा त्यौहार है और विशेष रूप से कलाकारों के लिए क्योंकि इस अवसर पर उन्हें कई शहरों में घूमने का मौका मिलता है। मैं खुद भी इस बार गुवाहाटी, कोलकाता, जयपुर शूटिंग के सिलसिले मे जा रही हूं। यह उमंग और उत्साह का त्यौहार है। मैं मित्रों से मिलती हूं और उनके साथ में शॉपिंग पर जाती हूं। मैं जहां जहां जाती हूं वहां जमकर शॉपिंग करती हूं और उस जगह की विशेष चीजें खरीदती हूं।
रागिनी खन्ना
राधा की बेटियां, कुछ कर दिखयेगें, भास्कर भारती और ससुराल गैंदा फूल सहित कई धारावाहिकों में अपने अभिनय के रंग बिखेरने वाली रागिनी खन्ना का कहना है नवरात्रि मेरे लिए बहुत बडा त्यौहार है। इसे मैं अपने पूरे परिवार के साथ में मनाती हूं। हमने घर में कभी भी दुर्गा पूजा मिस नहीं की हम इसे घर पर ही मनाते हैं। सबसे बडी बात यह है कि इस अवसर पर हम कई तरह के पकवा्नों का आनंद उठातें हैं।
श्रुति उल्फत – ससुराल गंदाफूल की रानू सुहाना की सास
हम हमेशा नवरात्र और दशहरा बड़े उत्साह के साथ में मनाते है। मुझे याद है तब मैं जब छोटी थी मेरी मां अंधेरे कमरे में गेहूं की बालियां उगाया करती थीं। वे इसे पवित्र मानती थीं। मेरी मां ने मुझे दुर्गाजी का भजन भी सिखाया जिसे मैं हर दुर्गा पूजा में गाया करती हूं। हमारे लिए दही व चावल का विशेष तिलक होता हैस जो पूजा के बाद में सबको लगाया जाता है। पहले हम सब परिवार वाले इसको एक साथ मिलकर मनाया करते थे। परंतु इस बार मैं अपने शो की शूटिंग में व्यस्त रहूंगी। और मेरी मां भी मुम्बई में हैं सो मैं उनके साथ ही मनाऊंगी। नवरात्रि का पहला और दूसरा गरबा डांस जो मुझे बहुत पंसद है। इसमें बहुत धमाल होता है।
अविका गौर – बालिका वधू
अविका कहती है कि नवरात्रों का त्यौहार पर हम सब पूरे परिवार के साथ मां दुर्गा की उपासना करते हैं। लेकिन अब तो मैं मुम्बई में हूं और गरबा खेलना मेरे मन को भाता है। इस बार तो मेरे पास कई संस्थाओं की ओर से गरबा खेलने का निमंत्रण है। यह मेरे लिए एक सपने जैसा है।
पारूल चैहान – बिदाई की रागिनी
मैं नवरात्रों को लेकर हमेशा उत्साहित रहती हूं। सामान्यतः मैं नवरात्रि में उपवास करती हूं। मगर वर्तमान में ष्षूटिंग में व्यस्त होने के कारण यह मुषिकल हो गया है। मुझे याद है बचपन में मेरी मां उपवास रखा करती थी और आखिरी दिन आस पडोस की लडकियों को पूजा में बुलाया करती थी।
रतन राजपूत – अगले जन्म मोहे बिटिया ही कीजो
बिहार का घर को छोड़े लंबा समय बीत चुका है। अब तो मुम्बई में रच बस गई हूं। लेकिन नवरात्रों में हमारे घर में पूजा होती है और रात कुछ स्त्रियां समूह में मिलकर मां के गीत गाती हैं। घर में पकवान भी बनते हैं, विशेष रूप से चावल के, जिसका एक अलग आनंद है। लेकिन अब तो वे चंद यादें मात्र हैं। लेकिन शहरों की सभ्यता अलग है यहां सब कुछ व्यावसायिक है। जगह-जगह पर माता का जागरण और गरबा का आयोजन होता है। लोग इसे मनोरंजन की दृष्टि से देखते हैं जिसका एक अलग ही मजा है