‘जाति तोड़ो -भारत जोड़ो‘ जैसे नारों के बीच अन्तरजातिय प्रेम विवाह करने वालों का सार्वजनिक सम्मान। कुछ अच्छा, कुछ नया, कुछ अनूठा लगता है, क्योंकि जब वोट बैंक की राजनीति के चलते देश एक जातियुद्ध की तरफ बढ़ रहा हो और आरक्षण का इलाज स्वयं एक बीमारी बनता जा रहा हो। आॅनर किलिंग के खिलाफ कोई बोलने की हिम्मत ना करे और लव जेहाद जैसे जुमले माहौल को कसैला कर रहे हों। ऐसे मे अन्तरजातिय प्रेम विवाह की वकालत और वो भी खुले मंच से, सचमुच एक सहारनीय पहल है। यह पहल गत् दिनों 08 सितम्बर को ‘परिणय‘ नाम के संगठन ने दिल्ली स्थित मालवीय स्मृति भवन मे आयोजित एक विशाल कार्य क्रम में की। यहाँ आयोजित कार्यक्रम मे अन्तरजातिय प्रेम विवाह करने वालों का सम्मान किया गया, साथ में परिणय के बैनर से भविष्य मे इस तरह के नव विवाहित जोड़ों को सुरक्षा, सम्मान एवं प्रोत्साहन देने की योजना पर भी विचार विमर्श हुआ।
इस कार्यक्रम की संयोजक और परिणय की अध्यक्ष सुनीता राजेश्वर ने यहाँ अपने सम्बोधन मे कहा कि आॅनर किलिंग, दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या जैसी अनेक सामाजिक बुराइयों का समाधान अन्तरजातिय प्रेम विवाह मे ही छुपा है। इतना ही नही इस तरह के विवाह हमारी सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय एकता के लिए भी मजबूत आधार प्रदान करते है। सुनीता राजेश्वर ने अपने संबोधन मे तर्क रखते हुए उदाहरण दिए कि इस देश मे शिव पार्वती के प्रेम विवाह से यह परम्परा चली आ रही है। सुभाष चन्द्र बोस, इन्दिरा गाँधी, अमिताभ बच्चन, सचिन तेन्दुलकर, प्रणव मुखर्जी जैसे एक से बढ़कर एक सम्माननीय लोगों ने प्रेम विवाह किया है। अतः इसका विरोध एक अहंकारी मूर्खता से ज्यादा कुछ नही है। इस कार्य क्रम मे बतौर मुख्य अतिथि बोलते हुए राज्य सभा टी.वी. के कार्यक्रम प्रमुख एवं वरिष्ठ पत्रकार अरविन्द कुमार सिंह ने कहा कि निःसन्देह अन्तरजातिय प्रेम विवाह अनेकानेक सामाजिक बुराइयों का समाधान है। नई पीढ़ी इसे अपना रही है, पुरानी पीढ़ी को इसका रास्ता नही रोकना चाहिए। बस नई पीढ़ी अपने सामाजिक मूल्यों का सम्मान भी साथ मे निभाती चले। अरविन्द कुमार सिंह ने परिणय के प्रयासों की प्रशंसा करते हुए इस संस्था का सहयोग करने की अपील की।
कार्यक्रम में उपस्थित दिल्ली विश्व विद्यालय की प्रोफेसर डाॅ0 स्मिता मिश्र, डाॅ0 सत्यपाल सिंह और साहित्यकार लक्ष्मणराव ने भी परिणय के कार्यों की सराहना की और अपना समर्थ न व्यक्त किया। इस कार्यक्रम मे परिणय के मार्गदर्शक राजेश्वर दयाल वत्स के काव्य संग्रह ‘पंख और पत्थर‘ का भी विमोचन किया गया। इस कार्यक्रम का संचालन पत्रकार प्रमोद सैनी ने किया।
उल्लेखनीय है कि परिणय नामक यह संस्था अनैतिक संबंधों और विवाहेत्तर सम्बन्धों को प्रेम नही अपराध मानते हुए उनका पुरजोर विरोध करती है। 1989 से सक्रिय यह संस्था बिना किसी सरकारी मदद के अपना कार्य कर रही हैं। आर्थिक कठिनाइयों के चलते इसके काम को अधिक विस्तार नहीं दिया जा सका। अतः इसके संचालको ने अब मदद के लिए जनता से और सरकार से पहली बार अनुरोध किया है, ताकि इस काम को अधिक बड़े पैमाने पर किया जा सके।