लाइफ ओके के धारावाहिक ‘देवों के देव महादेव’ में भगवान शिव की भूमिका निभाने वाले मोहित रैना ने पिछले डेढ़ साल में उपलब्धियों की नई ऊंचाइयां छुई हैं। हालांकि, इससे पहले वे ‘भाभी’ तथा ‘बंदिनी’ जैसे सीरियल कर चुके थे पर असल पहचान उन्हें ‘देवों के देव महादेव’ ने दिलाई।
देवों के देव महादेव आपको कैसे मिला?
जब सीरियल की योजना बन रही थी तो इसकी टीम ने मुझसे संपर्क किया था। फिर ऑडिशन की जो सामान्य प्रक्रिया होती है, वह हुई। शुरू में कुछ आशंका थी मन में कि यह पौराणिक कथा है, इसलिए मुझे इसे करना चाहिए या नहीं। मगर रिसर्च टीम ने काफी मेहनत की थी। जब मैंने इसका कॉन्सेप्ट पूरी तरह से सुना, तब समझ आया कि यह अलग चीज बनने जा रही है। वैसे भी महादेव की कहानी को कभी इतने बड़े स्तर पर नहीं उठाया था किसी ने। बस, मैंने हां कर दी।
क्या तैयारी की थी इस भूमिका के लिए?
चुनौती यह रहती है कि किसी ने भगवान को देखा नहीं है। उनके चरित्र का खाका खींचना ही सबसे मुश्किल काम होता है। एक बार वह हो जाने के बाद ज्यादा तैयारी नहीं करनी पड़ी। मैं श्रीनगर का हूं, बहुत करीब रहा हूं अमरनाथ बाबा के। मेरे पिता शिवभक्त रहे हैं, तो घर में माहौल ही वैसा था। मैंने भी शिव को अपने बहुत करीब महसूस किया है। हां, इस भूमिका के लिए हिंदी अच्छी होनी चाहिए थी। मेरी किस्मत थी कि मैंने स्कूल में संस्कृत पढ़ी थी, तो दिक्कत नहीं आई। वजन जरूर बढ़ाना पड़ा मुझे क्योंकि बेहद शक्तिशाली दिखना था इस भूमिका में।
शुरू में कहा गया था कि इसका कॉन्सेप्ट अमीश के उपन्यास ‘द इमोर्टल्स ऑफ मेलुहा’ से उठाया गया है…।
अमीश की किताब जब आई थी, तब तक इस पर काम शुरू हो चुका था। हमारी रिसर्च टीम इसका कॉन्सेप्ट तैयार करने में जुटी थी। अमीश के उपन्यास का इस पर कोई असर हो, ऐसा नहीं है।
एक साथ दो भूमिकाएं… और दोनों पात्र आपस में युद्व कर रहे हैं। कौन-सा पात्र ज्यादा पसंद आ रहा है?
शिव की भूमिका करते-करते जालंधर का आना चुनौती भी थी और एक ताजगी भी। डेढ़ साल से मैं शिव की गंभीर भूमिका निभा रहा था, तो जालंधर के आने से अलग महसूस हुआ। थोड़ी विविधता आई, एक ही ढर्रे पर से हटने का मौका भी मिला। यकीनन, जालंधर की भूमिका में मजा आया मुझे।
अक्सर पौराणिक भूमिका निभाते हुए कलाकार टाइपकास्ट हो जाते हैं, दूसरी तरह की भूमिकाओं में सफल नहीं हो पाते। इसे लेकर डर तो जरूर होगा मन में। आगे भी ऐसी भूमिका मिलेगी तो करेंगे?
मेरा मानना है कि कोई छवि एक कलाकार को बांध नहीं सकती। मैं यह भी मानता हूं कि लगातार एक रूप में आने से वह छवि आपसे जुड़ जाती है। मगर आप यह भी तो देखिए कि इसी भूमिका ने मुझे इतनी लोकप्रियता दिलाई है। अगर आगे इतने बड़े कैनवास वाला कोई दूसरा पौराणिक चरित्र निभाने का मौका मिलेगा, तो मैं
वह भी करूंगा।
अरुण गोविल राम बने तो उनके कैलेंडर छप गए, नीतिश भारद्वाज कृष्ण बने तो उनके साथ भी यही हुआ। किसी दिन आपने खुद को भगवान शिव के कैलेंडर पर देखा तो…?
मुस्करा दूंगा। मन ही मन खुश हो जाऊंगा कि लोगों का इतना प्यार है। इससे बड़ा सम्मान क्या होगा मेरे लिए कि उस महान पौराणिक चरित्र को मुझसे जोड़कर देखा जा रहा है, उनकी छवि मुझमें देखी जा रही है!
कई-कई दिन लगातार शूटिंग चलती है, दिन में 12-14 घंटे सेट पर गुजरते हैं। खुद को मानसिक रूप से संयत रख पाते हैं?
ईमानदारी से बताऊं तो मुझे ब्रेक की जरूरत नहीं होती। व्यक्तिगत तौर पर मैं खुद को खुशकिस्मत मानता हूं क्योंकि टेलीविजन पर ऐसे मेल-ओरिएंटेड रोल मिलते नहीं हैं। यही बात मुझे ऊर्जावान बनाए रखती है। मैं तो इस रोल से जुड़ा हर पल एंजॉय करता हूं।
अगर पांच दिन की छुट्टी दे दी जाए, तो क्या करेंगे और कहां जाएंगे?
मैं छुट्टी नहीं लूंगा, शूटिंग ही करूंगा। मैंने बताया न कि मुझे काम करते रहने में ही मजा आता है।
ज्यादा दिन होंगे तो विदेश जाऊंगा। ग्रीस जाकर कुछ समय बिताना चाहूंगा। अगर कम दिन मिलते हैं तो भारत में कहीं भी चला जाऊंगा। मकसद यही होगा कि परिवार के साथ रहूं, अपनों के साथ वक्त बिताऊं।