डीएवीपी विज्ञापन निति विरोध में राष्ट्रीय मीडिया सेमिनार मारवाह स्टूडियो में आयोजित
(रिपोर्ट एवं छाया: एस.एस. डोगरा)
3 जुलाई, 2016: आज राष्ट्रीय स्तर की मीडिया सेमिनार डीएवीपी विज्ञापन निति विरोध में फिल्म सिटी मारवाह स्टूडियो के प्रांगण में आयोजित हुई. इंटरनेशनल चैम्बर ऑफ़ मीडिया एंड एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री, इंटरनेशनल जर्नलिज्म सेन्टर एवं आल जर्नलिस्ट एसोसिएशन के संयुक्त प्रयासों से उक्त सेमिनार में दिल्ली एन सी आर सहित देश के विभिन्न राज्यों के मीडियाकर्मियों ने हिस्सा लिया. सेमिनार का शुभारंभ भारतीय प्राचीन परम्परा के अनुसार इंटरनेशनल चैम्बर ऑफ़ मीडिया एंड एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के अध्यक्ष संदीप मारवाह, आल जर्नलिस्ट एसोसिएशन के संस्थापक वी.के. शर्मा, अल्बीना अब्बास, न्यूज़पेपर एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के महासचिव विपिन गौड़, डॉ. अजय कुमार, रेडियो नॉएडा के निर्देशक सुशील भारती, सरकारी अधिकारी पंकज सिंह ने विधिवत रूप से दीप प्रज्जविलत करते हुए किया. उक्त गोष्ठी में लघु एवं मध्यम वर्गीय समाचार पत्र-पत्रिकाओं के लिए डी ए वी पी की नवीनतम घोषित विज्ञापन नितियों से पैदा होने वाली औपचारिकताओं एवं विज्ञापन से प्राप्त आर्थिक समर्द्धता से वंचित होने जैसे गंभीर मुद्दों को लेकर चर्चा हुई.
अपने उद्घाटन सम्बोधन में मीडिया गुरु संदीप मारवाह ने भी मॉस मीडिया एवं मॉस कम्युनिकेशन में काम करने वाले प्रतेक व्यक्ति को आम आदमी से कहीं अधिक उर्जावान एवं महत्त्वपूर्ण बताया, जिसे समाज में विशेष रूप से शोहरत के साथ साथ सम्मान भी मिलता है. उन्होंने ये भी कहा कि आज संसद में लगभग 20% सांसद प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कहीं न कहीं मीडिया क्षेत्र से जुड़े रहे हैं. उन्होंने फिल्म सिटी में मारवाह स्टूडियो की स्थापना से लेकर हाल ही में 25 वर्ष पुरे होने पर रजत जयंती के सफलतापूर्वक तय किए गए सफ़र पर प्रकाश डाला. जहाँ आज इसी नॉएडा फिल्म सिटी में लगभग 100 एकड़ भूखंड में लगभग 16 स्टूडियो, तक़रीबन 350 टीवी चैनल (24×7) में आठ-आठ घंटों की तीन-तीन प्रणालियों करीब सत्रह हजार मीडियाकर्मी कार्यरत हैं. उन्होंने अपने मारवाह स्टूडियो की उपलब्धियों का व्याख्यान करते हुए बताया कि हमारे यहाँ से 150 से अधिक फ़ीचर फिल्म तथा आठ हजार ट्रेनड फिल्में बन चुकी हैं. एशियन अकादमी ऑफ़ फिल्म एंड टेलीविज़न के वर्ष 1993 में स्थापित होने के बाद से लेकर आज तक अपने यहाँ से एक सौ बीस देशों के बारह हजार से भी अधिक फिल्म एवं टेलीविज़न इंडस्ट्री के लिए मीडियाकर्मियों को प्रशिक्षित कर चुका है और यही कारण है कि मारवाह स्टूडियो ने विश्व के टॉप 10 मीडिया स्कूलों में गौरवपूर्ण जगह कायम करने में सफलता प्राप्त की है.
इसी तरह रेडियो नॉएडा के निर्देशक सुशील भारती ने भी अपने उद्घोष में पत्रकारों के हितों के लिए एकजुट होकर सभी पत्रकारों को आगे आने का आग्रह किया. जबकि डॉक्टर अजय ने भी मीडिया के समक्ष चुनौतियाँ एवं अवसर पर प्रकाश डाला. आल जर्नलिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष वी के शर्मा (अध्यक्ष)ने सभी छोटे एवम् मंझोले क्षेत्रीय समाचार पत्रो को सरकारी विज्ञापन मिलने में हो रही कठिनाई एवं उनके लिए सरकारी नीतियों की बाधाओ को समाप्त करने के लिए रण निति तैयार की गुहार लगाई.
वी के शर्मा ने कहा कि जिस प्रकार से लोक तंत्र के चौथे स्तम्भ का गला घोटने का प्रयास जारी है हम किसी भी कीमत पर लघु और मध्यम,समाचार पत्रो पर अन्याय नहीं होने देंगे।जिसके लिए हमको आप सभी के सहयोग की नितांत आवश्यकता है आओ हम सब मिल कर इस अन्याय पर जीत हासिल करे आल जर्नलिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष वी के शर्मा (अध्यक्ष) ने इस तुगलकी फरमान की कुछ मुख्य बातो से अवगत करवाया कि भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा दिनांक 15 जून 2016 को डी.ए.वी.पी. की वेबसाइट पर बिना समाचार पत्र प्रकाशकों की सहमति के या सुझाव, विचार-विमर्श के विज्ञापन नीति 2016को लागू कर दिया गया हम लघु-मध्यम समाचार पत्रों के प्रकाशक व प्रतिनिधि इस नीति का पूर्ण रूप से विरोध करते हैं। यह नियम सिर्फ चन्द बड़े समाचार पत्रों के इशारे पर लागू किया गया है ताकि पूरे देश से लघु-मध्यम समाचार पत्र समाप्त हो जायें।
पूर्व मे सर्वोच्च न्यायालय ने भी समाचार पत्रों के विज्ञापनों पर रोक को गलत माना था तब इस प्रकार के गलत नियम बनाने की क्या आवश्यकता पड़ी जिसमे लघु-मध्यम समाचार पत्रों को विज्ञापन न देकर समाप्त करने की साजिश रची जा रही है। डी.ए.वी.पी. की वेबसाइट पर डाली गयी नई विज्ञापन नीति 2016 मे जो बिंदू दिये गये हैं उनका क्रमवार आल जर्नलिस्ट एसोसिएशन एवं संपूर्ण देश के सभी लघु-मध्यम समाचार पत्र पुरजोर विरोध करते हैं-जिस समाचार पत्र की ग्राहक संख्या 25001 से उपर है उन्हे आर.एन.आई./ए.बी.सी. द्वारा सर्कुलेशन प्रमाण-पत्र देना अनिवार्य होगा- महोदय, इस संदर्भ मे अवगत कराना है कि किसी भी समाचार पत्र की आर.एन.आई.द्वारा प्रसार जांच मे अच्छा-खासा समय लगता था जबकि वर्तमान मे आर.एन.आई. ने कर्मचारियों की संख्या की कमी का हवाला देते हुये प्रसार जांच मे अपनी असमर्थता जताई है तो ऐसे मे हम प्रसार जांच कहां से करायें।समाचार पत्रों को समाचार हेतु वायर सर्विस के लिए पी.टी.आई./यू.एन.आई. या हिन्दुस्तान समाचार की ही सेवा लेने सम्बंधी प्रमाण मांगा गया है- महोदय, इस संदर्भ मे अवगत कराना है कि लगभग सभी राज्यों मे सरकारों द्वारा समाचार पत्रों की ई-मेल पर निःशुल्क समाचार भेजे जाते हैं तथा केन्द्र सरकार के पत्र सूचना शाखा द्वारा भी निःशुल्क समाचार सेवायें दी जाती हैं इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय समाचार एजेंसियां भी बड़े पैमाने पर कार्यरत हैं जो उपरोक्त एजेंसियों से कम दर पर समाचार सेवाये दे रही हैं इनमे से एक हिन्दुस्तान समाचार का कार्यालय केवल हिन्दीभाषी प्रदेशों की राजधानीयों को छोड़कर कही नही हैं तथा न ही यह एजेंसी बहुभाषी है, यह संस्था उत्तराखण्ड मे काली सूची मे भी है अतः हम इनकी सेवायें लेने को बाध्य नही है।प्रेस काउंसिल की वार्षिक शुल्क की अनिवार्यता- महोदय, इस संदर्भ मे अवगत कराना है कि जब समाचार पत्रों का पंजीकरण आर.एन.आई. मे होता है तथा डी.ए.वी.पी. मे सूचीबद्धता होती है तो इस प्रकार की कोई बाध्यता की शर्त प्रकाशकों पर नही रखी जाती फिर इस प्रकार के तुगलकी फरमान की क्या आवश्यकता है।
अतः आल जर्नलिस्ट एसोसिएशन एवं भारत देश के सभी लघु-मध्यम समाचार पत्र प्रकाशक इस शर्त का घोर विरोध करते हैं।समाचार पत्र मे कार्यरत कर्मचारियों का पी.एफ. एकाउन्ट है, उनका नम्बर देने को कहा है- महोदय, इस संदर्भ मे अवगत कराना है कि लघु-मध्यम समाचार पत्रों मे इतना स्टाफ ही नही होता कि वो पी.एफ. यानिकी भविष्य निधि नियम मे आये तो इस प्रकार की बाध्यता का आल जर्नलिस्ट एसोसिएशन एवं लघु-मध्यम समाचार पत्र प्रकाशक विरोध करते हैं।समाचार पत्रों के पास अपने प्रिंटिंग प्रेस की बाध्यता- महोदय, इस संदर्भ मे अवगत कराना है कि हम लघु-मध्यम समाचार पत्रों के प्रकाशक जिनको न तो कामर्शियल दर पर विज्ञापनों की बाढ़ है और न ही हमने कोई विदेशी गठबंधन किया हुआ है जहां से हमे कोई धनराशि मिलती हो जिससे हम अपनी प्रींटिंग यूनिट लगा सकें क्योंकि एक प्रींटिंग यूनिट मे कम से कम डेढ़ करोड़ का व्यय आता है, कोई भी बैंक हमे लोन नही देती है यदि डी.ए.वी.पी. या सूचना प्रसारण मंत्रालय हमे बैंकों द्वारा आसान दरों पर लोन उपलब्ध कराये तथा बैकों द्वारा 5 लाख तक ओवर ड्राफ्ट की सुविधा मुहैय्या कराये तो हम मशीन लगाने को तैयार है अन्यथा आल जर्नलिस्ट एसोसिएशन एवं लघु-मध्यम समाचार पत्र प्रकाशक इसका भी विरोध करते हैं। इसके अतिरिक्त डी.ए.वी.पी. की इस एडवाइजरी के माध्यम से बताया गया है कि समाचार पत्र जिसके लिए अभी तक डी.ए.वी.पी. पैनल मे आने के लिए 18 माह पुराना होने की अनिवार्यता थी जिसे बढ़ाकर 36 माह कर दिया गया है जबकि बड़े समाचार पत्र जिनकी प्रसार संख्या एक लाख से उपर हो उनके लिए समय सीमा घटाकर एक वर्ष कर दी गई है। यह भी आल जर्नलिस्ट एसोसिएशन एवं लघु-मध्यम समाचार पत्र प्रकाशकों को मान्य नही है इस नियम को भी पूर्व की भांति ही रखना चाहिए। ज्ञात हो कि यही लघु-मध्यम समाचार पत्र भारत सरकार की ग्राम विकास योजनाओं को प्रकाशित कर शहरों के साथ-साथ सुदूर गांवों तक पहुंचाते हैं और इन समाचार पत्रों मे 90 प्रतिशत समाचार होता है और केवल10 प्रतिशत मे,विज्ञापन व अन्य सामाजिक समाचार प्रकाशित होते हैं इसीके विपरीत बड़े शहरी समाचार पत्रों मे 80 प्रतिशत विज्ञापन व10 प्रतिशत फिल्म व खेलकूद और 5 प्रतिशत राज्य सरकार के समाचार तथा केवल 5 प्रतिशत भारत सरकार के समाचार होते हैं। साथ ही डी.ए.वी.पी. द्वारा 5प्रतिशत समाचार प्रकाशित करने वाले बड़े शहरी पूंजीपति समाचार पत्रों को पोषित करना और 90 प्रतिशत समाचार प्रकाशित करने वाले लघु-मध्यम समाचार पत्रों को शोषित करके सीधा आपकी सरकार को अपदस्थ करने की साजिश है क्योंकि लघु-मध्यम समाचार पत्र शहरों के साथ-साथ ग्रामीण स्तर तक समाचारों के माध्यम से सरकार की योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने के साथ उनकी समस्याओं को भी प्रकाशित कर शासन – प्रशासन को अवगत कराते हैं,आल जर्नलिस्ट एसोसिएशन मांग करती है कि डी.ए.वी.पी. इस नई विज्ञापन नीति को निष्क्रिय करने का कष्ट करें ताकि हम सभी मेक इन इण्डिया कार्यक्रम को मूर्तरूप मिल सके क्योंकि लघु-मध्यम समाचार पत्र ही मेक इन इण्डिया के नारे को सफल करते हैं न कि एफ.डी.आई. के माध्यम से बढ़ रहे बड़े केवल शहरों तक सीमित पूंजीपति मुट्ठीभर समाचार पत्र के घराने।यदि एक सप्ताह के अंदर डी.ए.वी.पी. की उक्त नीति को निरस्त नही किया जाता है तो डी.ए.वी.पी. की नई नीति-2016 से आक्रोशित भारत देश के समस्त लघु-मध्यम समाचार पत्रों के प्रकाशक व प्रतिनिधि केन्द्र सरकार के समाचारों का बहिष्कार करते हुये धरना प्रदर्शन व घेराव करने को मजबूर होंगे जिसकी सम्पूर्ण जिम्मेदारी केन्द्र सरकार की होगी। शर्मा ने संदीप मारवाह को मीडिया क्षेत्र में भीष्म पितामह की उपमा देते हुए कहा कि वे अपनी एसोसिएशन एवं सहयोगी संस्थाओं के संग मिलकर इंटरनेशनल चैम्बर ऑफ़ मीडिया एंड एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के नेतृत्व में यथोचित समाधान के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को ज्ञापन सौपने का मन बना चुके हैं.
न्यूज़पेपर एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के महासचिव एवं युवा पत्रकार विपिन गौड़ ने भी इस ज्वलंत मुद्दे पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा घोषित कई नीतियाँ कारगार भी है लेकिन कुछ में बदलाव की भी जरुरत है. गौरतलब है कि सन 2013 तक यानि पिछले 43 वर्षों तक कोई बदलाव नहीं लाए गए. और जहाँ तक सिंगल विंडो सिस्टम एवं ऑनलाइन सुविधा की बात की जाए तो आर एन आई ने भी प्रसंसनीय सुधार किए. सबसे बड़ी बात ये है कि जो वास्तव में पत्रकारिता क्षेत्र में हैं भी नहीं वे भी अपने आपको पत्रकार का प्रभाव दिखा तथा अपने वाहनों पर फिजूल ही में प्रेस का स्टीकर लगाकर दुरूपयोग करते हैं ऐसे वाक्यों से सावधानी के लिए कड़े कानून जरुर बनने चाहिए. वहीँ भारत सरकार में कार्यरत वरिष्ठ अधिकारी पंकज ने भी इस विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत एक बड़ा देश है जहाँ पूरी दुनिया बसती है. हमें आलोचना के साथ-साथ विकल्प भी ढूढने चाहिए. जहाँ तक समाचार पत्र पत्रिकाओं के बात करें तो अधिकांशतया समाचारपत्र होली, दीवाली, स्वंत्रता दिवस एवं नव वर्ष पर ही प्रकाशित होते हैं इसे भी झुठलाया नहीं जा सकता है. देखिए मीडिया एक मिशन है जो सार्वजानिक कल्याण एवं देश को जोड़ने के साथ स्वच्छ समाज निर्माण में सहायक होता है. लेकिन ये बड़ा दुखद विषय है कि मीडिया की छवि का भी पतन हुआ है हमें इस पर गंभीरता से विचार करना ही होगा.