अखिल भारतीय स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक संघ नई दिल्ली के तत्वावधान में आज नई दिल्ली के 11सफदरजंग रोड में पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न स्वर्गीय डॉ.एस राधाकृष्णन की 136वीं जयंती संघ के राष्ट्रीय महामंत्री एवं आयोजन समिति के अध्यक्ष शिक्षाविद् दयानंद वत्स बरवाला के सान्निध्य में राष्ट्रीय शिक्षक दिवस के रुप में मनाई गई। इस अवसर पर मुख्य अतिथि केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री माननीय श्री रामदास आठवले सहित भारत की चार महान विभूतियों को 39वें डॉ.एस राधाकृष्णन स्मृति राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान से नवाजा गया। वत्स के अनुसार संगीत शिक्षा के क्षेत्र में सराहनीय सेवाओं और उल्लेखनीय योगदान देने के लिए हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की सुप्रसिद्ध गायिका एवं संगीत गुरु विदुषी पद्मश्री सुमित्रा गुहा, सुप्रसिद्ध बांसुरी और शहनाई वादक संगीत गुरु पंडित राजेन्द्र प्रसन्ना, सुप्रसिद्ध वायलिन वादक संगीत गुरु पंडित डॉ. संतोष नाहर तथा माननीय राज्यमंत्री श्री रामदास आठवले को लोकसेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए 39वें डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन स्मृति राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान -2023 से अलंकृत किया गया।
तीनों ही संगीतज्ञ गुरु टाप ग्रेड के कलाकार हैं और तीनों महान विभूतियों ने अपने हजारों शिष्यों को संगीत की शिक्षा दी है।
पद्मश्री विदुषी सुमित्रा गुहा का हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायन में चार दशकों का अनुभव है। पंडित राजेन्द्र प्रसन्ना बांसुरी और शहनाई वादन दोनों वाद्य यंत्र बजाने वाली अकेली विलक्षण प्रतिभा हैं। सबको सम्मान स्वरूप शाल स्मृति चिन्ह प्रशस्ति पत्र भेंट किया गया। लोक सेवा के क्षेत्र में श्री रामदास आठवले को समारोह समिति के अध्यक्ष शिक्षाविद् दयानंद वत्स बरवाला ने अपने कर कमलों से सम्मानित किया। संघ के राष्ट्रीय महामंत्री शिक्षाविद् दयानंद वत्स बरवाला ने बताया कि संघ पिछले 39वर्षो से लगातार शिक्षा के हर क्षेत्र की उत्कृष्ट विभूतियों का सम्मान करता आ रहा है।
अपने संबोधन में मुख्य अतिथि माननीय श्री रामदास आठवले ने पूर्व राष्ट्रपति माननीय डॉ.एस राधाकृष्णन को अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कहा कि सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक विद्वान दार्शनिक और उच्च कोटि के शिक्षक थे।उनके जन्मदिन को पूरा भारत आदर से शिक्षक दिवस के रुप में मनाता है। चंद्रयान-3 और सूर्य यान भेजने वाले वैज्ञानिकों को भी किसी ना किसी शिक्षक ने पढ़ाया होगा। इसलिए शिक्षकों का सम्मान करना स्वयं अपना और राष्ट्र निर्माताओं का सम्मान करना है।
समारोह समिति के अध्यक्ष शिक्षाविद् दयानंद वत्स बरवाला ने इस मौके पर कहा कि शिक्षक आजीवन शिक्षक ही रहता है जबकि उसके शिष्य जीवन के हर क्षेत्र में अपनी कामयाबी का परचम फहराते हैं। जब उसके शिष्य कामयाब होते हैं तो माता-पिता के बाद सबसे अधिक खुशी उसके शिक्षकों को ही होती है।