सोशल मीडिया को कोई मान्यत्ता नहीं बल्कि प्रतिबंधित करे सरकार . .!

www.DwarkaParichay.com Newsdesk

पिछले कुछ दिनों से रह रहकर लगातार एक विचार मन में आ रहा है कि किस प्रकार मीडिया और वह भी ऑनलाइन मीडिया के नाम पर यूटयूब चैनलों की बाढ़ सी सोशल मीडिया में आ गयी है। देखा जाये तो प्रथम दृष्टया यह आपरधिक गतिविधियों को अंजाम देने का माध्यम नज़र आता है। जिसके सामने सरकार भी मजबूर नजर आती है। क्योंकि ना तो सरकार और ना ही भारतीय पुलिस महकमा कुछ कर पा रहा है। पता नहीं क्यो?  क्या ऐसा माना जाए कि इनको इसकी जानकारी नहीं है आज मैं अपने इस लेख में यही उजागर करने की कोशिश करूँगा कि किस प्रकार समाज, राष्ट्र और मानवजाति के लिए कुकरमुते की तरह जन्म ले रहे ऑनलाइन वेब साईट बनाकर चैनलों के नाम पर उगाही का धंधा जोर शोर से चल रहा है और जो असली पत्रकार हैं वह पुलिस और जनता का शिकार बन रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि भारतीय संविधान में किसी भी प्रचार-प्रसार को करने की अनुमति भारत सरकार का केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय ही देता है लेकिन यूटयूब चैनलों के पास अनुमति तो दूर की बात है राज्यों में जिलाधिकारी और केंद्र शाषित प्रदेशों में डीसीपी लाइसेंसिंग की अनुमति आवशयक होने के बावजूद यह नहीं लेते हैं। अफ़सोस इस बात का है कि कोई भी सरकारी अधिकारी इन बेलगाम यूटयूब चैनलों को रोकने और उन पर कार्रवाई करने की जहमत नहीं उठाता है? आपको बताना चाहता हूँ कि यूट्यूब, वाट्सअप ग्रुप और फेसबुकिया को आप पत्रकार नहीं कह सकते और ना उनको मान्यता दे सकते? क्योंकि बैंक अकाउंट खोलने के लिए आधार कार्ड चाहिए। लेकिन गूगल अकाउंट तो कोई निराधार व्यक्ति भी अकाउंट खोलकर कोई भी सोशल मीडिया में अपने आप को महान पत्रकार बना लेगा। ऐसे में उनके कंटेंट और भाषा के साथ उनकी खुद की योग्यता और विश्वसनीयता को कैसे सरकार द्वारा मॉनिटर किया जायेगा? जिनका कोई आधार ही नहीं निराधार व्यक्तियों खासकर ऑनलाइन मीडिया कहने वालों कोई मान्यत्ता नहीं बल्कि कानून सम्मत कार्रवाई होनी चाहिए।

मेरे कई वरिष्ठ पत्रकार साथियों ने पहले भी कहा है कि आज के दौर में जब सोशल मीडिया इतना प्रभावी है जिस पर सरकार का कोई अंकुश नहीं है। ऐसे में अब पत्रकारिता के गिरते स्तर और पत्रकारिता जगत में असामाजिक तत्वों के प्रवेश का दौर अब तेजी से शुरू हो गया है, जो कि एक खतरे की आहट भर है। आप देख रहे हैं फ़र्ज़ी एवं नक़ली किस्म के अनपढ़ और अपराधी किस्म के लोग भी यूटयूब चैनल बनाकर फर्ज़ीवाड़े में जुटे हुये हैं जिनमें से कइयों को कुछ प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों का संरक्षण भी प्राप्त हो जाता है। आए दिन नई न्यूज पोर्टल्स और फ़र्ज़ी न्यूज़ यूटयूब चैनल अब कुकुरमुत्ते की तरह पनप रहे हैं। इस तरह के पोर्टल्स व फ़र्ज़ी यूटयूब चैनल न केवल केंद्र सरकार व राज्य सरकारों के लिए अब सिर दर्द बन गए हैं। इस फ़र्ज़ी चैनलों के कथित फ़र्ज़ी पत्रकारों की ब्लैकमेलिंग के चलते प्रशासनिक स्तर और सही सच्चे और ईमानदार सेटेलाइट और प्रिंट मीडिया के ईमानदार पत्रकारों को इन फर्जी और नकली पत्रकारों की कारगुजारी ओ की सजा मिलती है जिसके कारण उनका कामकाज भी प्रभावित हो रहा है। यही वजह है कि अब न केवल फर्जी पत्रकारों पर, बल्कि अनाधिकृत वेव पोर्टल्स पर भी प्रशासनिक स्तर पर राज्य सरकारों ने कार्रवाई करने का मन बना लिया गया है। लेकिन केंद्र सरकार कब फ़र्ज़ी पत्रकारों और ऐसे फ़र्ज़ी यूटयूब चैनल के संचालकों व कथित फ़र्ज़ी रिपोर्टरों पर क़ानूनी कार्रवाई करेगी? नियमानुसार अभी तक किसी राज्य का सूचना विभाग इस फ़र्ज़ी न्यूज पोर्टल्स और  यूटयूब चैनलों को मान्यता नहीं देता। लेकिन बावजूद इसके काली कमाई के चलते ऐसे पोर्टल्स की भीड़ देखने को मिल रही है।

आज हालात ऐसे हो चले हैं कि जो लोग लिखना पढ़ना तक नही जानते हैं। ऐसे लोग अब फर्जी चैनलों की आईडी लेकर गांव-गांव और शहर-शहर घूम रहे हैं। राज्यों एवं केंद्र सरकार के पत्र सूचना विभाग अथवा प्रेस कांउन्सिल ऑफ़ इंडिया को इस तरह के लोगों पर उचित क़ानूनी कार्रवाई करने की जरुरत है। जाहिर है कि बीएसए नेशनल काउंसिल के माध्यम से सभी को अनुमति लेनी होती है। लेकिन किसी को नहीं मालूम की अनुमति होती क्या है? इसका सपष्ट सन्देश है जो भी सोशल मीडिया में बीएसए नेशनल काउंसिल की अनुमति के बगैर यूटयूब चैनल चलाये जा रहे है। जो कि गैर क़ानूनी है और भारतीय संविधान के खिलाफ है। लिहाजा ऐसे में पुलिस प्रशासन का दायित्व बनता है कि वह ऐसे गैर क़ानूनी यूटयूब चैनलों पर तत्काल रोक लगाकर उनके मालिकों और संचालकों के खिलाफ संविधान के अनुरूप सख्त कार्रवाई करे। क्योंकि यही देश में अराजकता और देश, समाज के खिलाफ जहर घोलने का काम रहे हैं? सभी को यह स्पष्ट होना चाहिए कि यह एक आधिकारिक बीएसए द्वारा प्रमाणित अथवा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के बिना अनुमति, केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की बिना अनुमति और स्थानीय प्रशासन की नियमनुसार बिना अनुमति के कोई भी किसी प्रकार के प्लेटफार्म पर कोई भी न्यूज़ आधारित चैनल चलाना गैर क़ानूनी है। समाचार चलाने अथवा प्रसारित करने के लिए सोशल मीडिया चैनल चलाने का प्लेटफार्म नहीं है।  बल्कि इसके बदले आपका निजी चैनल है जो बिना किसी सरकारी अनुमति के देश के संविधान के खिलाफ चलाया जा रहा है। मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूं जो बड़े सरकारी चैनलों, प्राईवेट निजी चैनलों से मिलते जुलते नामों से चैनल खोल कर जनता और सरकार की आँखों में धूल झोंक रहें हैं। लेकिन अफ़सोस इस बात का का है कि स्थानीय पुलिस और सम्बंधित विभाग उनके इस अनैतिक कार्य के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं जबकि सूचना प्रसारण अधिनियम के तहत सरकार की अनुमति के बगैर किसी भी प्रकार की सूचना अथवा खबर प्रकाशित अथवा दिखाना गैर क़ानूनी और देश के खिलाफ देश द्रोह की श्रेणी में आता है। लेकिन यहाँ खुद ही स्वम्भू पत्रकार बनकर आज बिना किसी योग्यता के लोग पत्रकार बनाकर पत्रकारिता को बदनाम करने पर अमादा हैं। कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है? समझ से परे है कि सरकार और पुलिस की यह कौनसी और कैसी मज़बूरी है यह सोचने का विषय है?

यहां पर मैं एक जानकारी और साझा और स्पष्ट करना चाहता हूं कि इंटरनेट पर जो भी प्रचार सामग्री किसी भी माध्यम दे डाली जाती है। उस पर आईटी एक्ट लागू होता है लिहाजा सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रलाय की अनुमति के भी सभी यूटयूब चैनल गैर क़ानूनी हैं। लेकिन भारत सरकार या राज्य सरकार कोई कदम इन गैर क़ानूनी यूटयूब चैनल जो सोशल मीडिया के नाम से चलाये जा रहे हैं।  बहरहाल सोशल मीडिया के नाम से यूटयूब चैनल के माध्यम से ब्लैक मेलिंग का धंधा जोर पकड़ चुका है। जिसका खामियाजा असली पत्रकारों और सम्पादकों को भुगतना पड़ रहा है जिन्होंने पूरा जीवन पत्रकारिता के मूल्यों को निभाने में लगा दिया। आज फ़र्ज़ी देश विरोधी कार्यों में संलिप्त फ़र्ज़ी रूप से कार्य कर रहे यूटयूब चैनल के पत्रकार और संपादक भीड़ तंत्र का फायदा उठाकर अपना कारोबार और गैर क़ानूनी धंधा करने में जुटे हैं और सभी सरकारें मूक दर्शक बनी हैं? 

यहां पर रामायण कि वह चौपाई चरितार्थ होती है :

रामचंद्र कह गए सिया से,
ऐसा कलयुग आएगा,
हंस चुगेगा दाना तिनका
कौवा मोती खायेगा।

अशोक कुमार निर्भय  
वरिष्ठ पत्रकार 
(लेखक के विचार निजी हैं,लेखक रिलेशन ऑफ़ इंडिया न्यूज़ के समाचार संपादक हैं )