मधुरिता
प्राण शक्ति को धारण करने वाला ही जीव कहलाता है. जिस समय तक यह प्राण शक्ति जीव के अन्दर रहती है, वह ही जीवन है. जीवन का हर पल जीव के लिए अमूल्य है. जब पाप और पुण्य समता को प्राप्त हो जाते हैं, तभी मनुष्य का जनम मिलता है. प्रराभाद्ब कर्मो के तदनरूप ही जीव का जनम निश्चित किया जाता है. अमीर, गरीब, जाति प्रजाति सुख दुःख लाभ हानि शारीरिक बनावट सभी का आकलन करते हुए उसे उसी घर में जनम मिलता है.
यह जीवन की सबसे आनंद दायक अवस्था होती है. बच्चा जनम लेता है तो खुशियों भरा माहौल होता है, इससे एक पीढ़ी की उन्नति जो होती है. कोई माँ बाप बनता है तो कोई दादा दादी, कोई नाना नानी तो कोई भाई बहन, कितने ही रिश्तों का जनम होता है. शिशु अपने हाव भाव से सभी का दिल जीत लेता है. थोड़ा और बड़ा होता है तो चलना सीखता है, कई तरह की लीला करते हुए आनंद से दिन बिताता है. उसे किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होती. अपने माता पिता का पूरा सहयोग मिलता है. इसी तरह बचपन सही खेल में बीत जाता है.
फिर धीरे से युवावस्था आ जाती है, उसे आभास भी नहीं होता. अड़ोसी पड़ोसी ही उसे बताते हैं की वो अब जवान हो गया है. उसका कद बढ़ जाता है और शारीरिक बनावट भी बदल जाती है. विचारों का बदलाव तो अभी तक में माँ बाप के आधीन लेकिन अब में बड़ा जवान युवावस्था को प्राप्त कर गया तो मैं अब अपने किसी भी क्षेत्र मैं अपने निर्णय खुद ले सकता हूँ. ऐसा विचार आते ही वे उद्विग्न हो कर अपना आपा खो बैठते हैं और शारीरिक मानसिक बौधिक सभी में वे अपने को पूर्ण मान बैठते हैं.
कोई तो अपने दोस्तों की कुसंगति होकर बैठते है जो उन्हें पूरा जीवन भोगना पड़ता है. कोई अच्छी संगत करके पढाई में मन लगाना पसंद करते हैं और कोई जीवन में कुछ बन कर ही दम लेते हैं. इंजिनियर डाक्टर आई पी एस वैज्ञानिक और भी ऊँचे ऊँचे सपने साकार करते हैं जिससे माता पिता ही नहीं अपितु देश का नाम भी रोशन करते हैं . युवावस्था ही सबसे नाजुक व् कर्मठ क्रियाशील अवस्था है, इसी आधार पर आगे का जीवन आधारित होता है.
अब बारी आती है गृहस्थ अवस्था की जो जीवन की सबसे गंभीर अवस्था होती है. क्योकी इसमें अपने जीवन साथी के साथ रहने, साथ चलने, साथ निभाने की जो बात आती है. अब तक के जीवन का सारा आनंद धूमिल होता नज़र आता है. क्यों न हो अगर साथी ही बिगड़ जाए तो कौन बचाए
हाय राम ———————————————
हाय राम ———————————————
एक संस्कार से दुसरे संस्कार का मिलना, ये भी एक विज्ञानं ही है. इसकी तरफ कोई ध्यान नहीं देता जिसका परिणाम अभी के समाज में दाम्पत्य जीवन का बिखरना बखूबी देखा जा रहा है.
जैसे एक बरतन में दो विरोधी रसायन डालने पर उसका परिणाम विस्फोट ही होगा. इसी तरह जब दो विरोधी विचारों संस्कारों को आपस में मिलना पड़े तो उसका सम्बन्ध विच्छेद ही होगा. यह नियम है जब हम इसमें विवेक बुद्धि सद्भावना का मिश्रण मिला देंगे तो ही हम जीवन साथी का साथ अंत तक पा सकते हैं.
आप दोस्ती कैसे निभाते हैं ? उसे अपनेपन का अहसास कराते हैं. यदि दोस्त कोई गलती भी करता है तो उसे प्यार से समझाते हैं, उसे माफ़ भी करते हैं और पूरी कोशिश करते हैं न तो फिर अपने साथी को अपना बनाने में कंजूसी क्यों ?
ध्यान से शांति से कभी अपने जीवन का विश्लेषण कर के देखें तो गलती हमारे विचारों की ही है. सास बहु को अपना नहीं बना पति, पति पत्नी को अपना नहीं बना पाते, नन्दे भाभी को नहीं मानती. धीरे धीरे सारे सम्बन्धे बिखरते चले जाते हैं और अंत में अपने बच्चे भी हमें छोड़ देते हैं.
इसका परिणाम अगली अवस्था वृधावस्था पर पड़ता है. जिसमे वह बहुत भयावह बन जाता है तो वह शारीरिक मानसिक बोव्धिक दृष्टी से इतना असहाय हो जाता है की कोई वृधा आश्रम का सहारा लेता फिरता है तो कोई बहु बेटों के ताने खा कर भी मुर्दा समान जिन्दा नज़र आता है. उनकी आँखों में अजीब सा पश्चाताप नज़र आता है नरक समान दुःख पाता है.
इसका जिम्मेदार वह खुद है. इसका अहसास उसे अंतिम छ्नों में होता है. तब तक तो जीवन ही हाथ से निकल जाता है. ओह कितना अफ़सोस होता है की इश्वर ने कृपा कर मानव जन्म दिया था कुछ अच्छा करका आगे का जन्म सुधारने को लेकिन यह क्या ……
हम स्वर्ग जैसा जीवन भी बना सकते है. इसके लिए हमें कुछ ख़ास नहीं करना केवल नैतिक मूल्यों पर चलना है. अरे भाई सीधी सी बात है जो कर्म तुम अपने लिए नहीं चाहते वो दूसरों के लिए क्यों करते हो. जैसे तुम कभी दुखी होना नहीं चाहते , सोचते हो सभी हमें अच्छा व्यवहार करे और इज्ज़त दे , सम्मान करे , आदर करें तो तुम्हे भी तो दूसरों के साथ ऐसा ही व्यवहार करना पड़ेगा यही तो कहावत है – टिट फॉर टेट – जैसा किया वैसा मिला. मेरा पेन आगे नहीं चल रहा क्योंकि इसके आगे की अंतिम अवस्था मैंने नहीं देखी.