सबसे पहले आपको बधाई। हाल ही मेंआप भारत सरकार के रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया की लोकल आर्ट कमेटी की सदस्य नियुक्ति हुई हैं। वैसे, इस कमेटी के अंतर्गत आप क्या कामकाज़ देखेंगी? कैसे काम करती है ये आर्ट कमेटी?
आपकी शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद। रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया की आर्ट कमेटी के सदस्य के रूप में मेरा चयन एक ट्रैवल फोटोग्राफर के रूप में हुआ है। मैं देश भर में घूमती हूं, दूर-दराज के गांवों और आदिवासी इलाकों में जाती हूं। उनकी संस्कृति, उनकी जीवन शैली, उनकी कला को अपने कैमरे में कैद करती हूं। बतौर फोटोग्राफर मैंने देश के कोने-कोने में छुपे कलाकारों और उनकी बेशकीमती कलाओं पर काम किया है और अपनी फोटो प्रदर्शनी के माध्यम से उन कलाओं को लोगों तक पहुंचाने की कोशिश भी की है। रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया कीइस लोकल आर्ट कमेटी के गठन का उद्देश्य ही देश में छिपी कला और कलाकारों को प्रमोट करना है। मेरा काम तो बस इन लोगों को आपस में जोड़ना भर है। हमारे देश में हुनरमंदों की कोई कमी नहीं है, बस उन्हें पहचान दिलाने की ज़रूरत है।
आप ब्लॉगर हैं। आप भारत का पहला हिंदी ट्रेवल ब्लॉग चलाती हैं। क्या हिंदी में आपके ब्लॉग के अलावा कोई ट्रेवल ब्लॉग नहीं है?
यहां मैं आपको थोड़ा करेक्ट करना चाहूंगी। मैं “राहगीरी” नाम से ब्लॉग चलाती हूं और मेरा ब्लॉग हिंदी का पहला ट्रेवल ब्लॉग नहीं है, बल्कि “हिंदी का प्रथम ट्रेवल फोटोग्राफी ब्लॉग” है। ऐसा नहीं है कि हिंदी में अच्छे ब्लॉग लिखने वालों की कमी है। हिंदी में लोग एक से एक बेहतरीन ब्लॉग लिख रहे हैं। पर एक कमी अकसर खला करती है। जहां ब्लॉग पर अच्छा कंटेंट है, वहां एक अच्छी क्वालिटी की तस्वीर नहीं मिलती। और जिन ब्लॉग पर अच्छी तस्वीरें होती हैं, वहां कंटेंट उतना अच्छा नहीं होता। मैं साहित्यकार के अलावा एक ट्रेवल राइटर और फोटोग्राफर भी हूं। लिहाजा, मैंने अपने इस ब्लॉग के ज़रिए इस दूरी को पाटने का प्रयास किया है। मेरा यह ब्लॉग हिंदी का प्रथम ट्रेवल फ़ोटोग्राफ़ी ब्लॉग है। जहां आपको मिलेगी भारत के कुछ अनछुए पहलुओं,अनदेखे स्थानों की सविस्तार जानकारी और उन स्थानों से जुड़ी बेहतरीन तस्वीरें। और जैसी मैंने उम्मीद की थी, लोगों को मेरा यह प्रयास काफी पसंद आ रहा है।
आप ब्लॉगर हैं, फोटोग्राफर हैं, लेखक हैं और ट्रेवलर भी। पर इन सबमें वाक़ई आपको सबसे ज्यादा क्या कहलवाना पसंद है अपने लिए।
मन की बताऊं तो मैं सबसे पहले एक यायावर हूं। उसके बाद ब्लॉगर, फोटोग्राफर और लेखक हूं। मैंने महज तीन वर्षों में देश-विदेश में यायावरी करते हुए लगभग बहत्तरहज़ार (72,000 Kilometers) किलोमीटर की यात्रा तय की है। यायावरी अपने आप में एक पाठशाला है। वह हमें बहुत कुछ सिखाती है। आप खुद को और दुनिया को बेहतर ढंग से समझ पाते हैं। एक फ़ारसी कहावत मुझ परबिलकुल फिट बैठती है, “पाबा रकाब होना”। यानि हमेशा सफर के लिए तैयार रहना।फारसी में रकाब उसे कहते हैं, जिस पर पैर रख कर घुड़सवार घोड़े पर उचक्क कर चढ़ता है।मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही है। मैं हमेशा नए सफर के लिए तैयार रहती हूं। कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि एक जगह से वापस आई और फौरन दूसरी जगह के लिए रवाना हो गई।
आप घुमक्कड़ हैं। भारत में कितने प्रदेशों की यात्रा कर चुकी हैं? भारत में अबतक आप जिन स्थानों पर गईं, उनमें आप कोसबसे ज्यादा कौन सी जगह पसंद आई?
मैंने भारत के 16 राज्यों का भ्रमण किया है। हिमालय को एक छोर से दूसरे छोर तक नाप चुकी हूं। भारत के चारों कोनों को नापते हुए मैं करीब छप्पनहज़ार(56,000 Kilometers) किलोमीटर की यात्रा तय कर चुकी हूं। मुझसे यह सवाल अकसर पूछा जाता है कि मुझे सबसे ज्यादा कौन सी जगह पसंद आई? लेकिन, मेरे लिए यह बताना बड़ा मुश्किल है।यह बिलकुल वैसा ही है, जैसे किसी मां से कहा जाए कि वह अपने पांच बच्चों में से सबसे अच्छा बच्चा चुन कर बताए। यह चुनाव हो ही नहीं सकता, क्योंकि हर बच्चा उसके लिए ख़ास है। वैसे ही हर राज्य अपने में कुछ अनोखा समेटे हुए है। मुझे लद्दाख की भूरी सिलेटी उजाड़ सुंदरता भी उतनी ही पसंद है, जितनी कश्मीर की हरियाली। पंजाब के पीले सरसों के खेत भी उतने ही पसंद है, जितना कच्छ का सफ़ेद रण। मुझे तो पश्चिम बंगाल स्थित दार्जिलिंग के टी गार्डेन भी उतने ही सुहाते हैं, जितने हिमाचल के पालमपुर के टी गार्डेन।
भारत में कोई ऐसी जगह जो आपको बेहद पसंद हो और आप अबतक वहां नहीं गई हों?
अभी हाल ही में आप यूरोप की यात्रा से लौटी हैं। मीडिया मिरर ने आपकी इस यात्राकी कुछ तस्वीरें भी प्रसारित की थीं। कौन सी जगह वहां आपको बहुत पसंद आई और क्यों?
हॉलैंड मेरे मन को छू गया। वहां आधुनिकता और प्राचीनता का एक दुर्लभ संगम है। जहां एक तरफ अंतर्राष्ट्रीय शहर एम्स्टर्डम है तो दूसरी तरफ पुराने डच साम्राज्य की धरोहर को समेटे पुराना हॉलैंड है। यहां खूबसूरत गांव हैं, विंड मिल्स हैं, ट्यूलिप के खेत हैं। एम्स्टर्डम शहर का इतिहास रहा है किवह खुली बांहों से आने वालों को अपना लेता है। आपको एक दिन में ही यह शहर अपना-सा लगने लगेगा। यहां के लोग बहुत मिलनसार और मदद करने वाले हैं। इसलिए मुझे हॉलैंड बहुत पसंद आया।
आप यूरोप अकेली गईं थीं। भारत में भी अकेले ही भ्रमण करती हैं? बतौर महिला क्या कभी असुरक्षा की भावना पैदा हुई? या फिर कहीं कोई ऐसी घटना हुई, जहां आपने अपने आपको असुरक्षित पाया हो?
मैं एक सोलो ट्रेवलर हूं और अकेले यात्रा करना पसंद करती हूं। आपको यह सुन कर हैरानी होगी, लेकिन मेरे अब तक के यात्रा के अनुभवों में एक भी अप्रिय अनुभव नहीं रहा है। कभी कहीं असुरक्षा का भाव मन में नहीं आया। मैं मानती हूं कि जितने भी भय हैं, उनमे से ज़्यादातर तो आपके मन में होते हैं। वे वास्तविकता में नहीं होते। मेरा मानना है कि अकेले यात्रा करना आपको और मज़बूत बनाता है। एक ऊर्जा का संचार करता है और खुद पर भरोसा बढ़ाता है कि आप कैसी भी विपरीत परिस्थिति आने पर उसको सम्भाल सकते हैं। मैं भारत में ही नहीं विदेशों में भी देर रात तक बाहर शूट कर रही होती हूं, पर कभी असुरक्षा का भाव मन में नहीं आया। हां, थोड़ी सजग ज़रूर रहती हूं अपने आसपास की हलचल से। एक मूल मंत्र हमेशा याद रखती हूं,“आपकी जेब में पैसे होने चाहिए और होश ठिकाने पर”, फिर आप किसी भी परिस्थिति से निपट सकते हैं।
भारत और यूरोप, जहां अभी आप होकर आई हैं, एक अकेली महिला के भ्रमण के लिहाज से कौन ज्यादा महफूज़ है?
यह कहते हुए जरूर अफ़सोस होता है, पर मैं यह नहीं सोच सकती कि जिस तरह मैं पेरिस में एफिल टॉवर पर रात को बारह बजे शूट खत्म करके अपने होटल एक बस और दो मेट्रो बदल कर पहुंच सकती हूं, ऐसा मैं दिल्ली में भी करने का जोखिम उठाउंगी। यूरोप में मेरी जैसी महिला बिना किसी दुश्वारी केपब्लिक ट्रांसपोर्ट का बेधड़क इस्तेमाल कर सकती है, पर भारत में नहीं।
आपकी हालिया यूरोप यात्रा क्या पूर्व निर्धारित थी, क्योंकि आप जहां भी पहुंची, वहां आपको जानने वाले लोग मिले? एक प्रोफेसर से और एक परिवार से जिक्र किया था मुलाकात का आपने। क्या आप इनको पहले से जानती थीं?
जी बिलकुल। मेरी यूरोप यात्रा पूर्व नियोजित थी। यह एक एकेडमिक टूर था। मुझे स्वीडन स्थित गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय, जोकि दुनिया के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक है, ने विशेष रूप से आमंत्रित किया था। मैं इस विश्वविद्यालय से पिछले एक वर्ष से जुड़ी हुई हूं। दरअसल, हम एक रिसर्च प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं।इसी सिलसिले में मुझे गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय ने अपने यहां बुलाया था। मैं एक यायावर भी तो हूं, इसलिए भ्रमण तो मेरे साथ जुड़ा ही है। ऐसा कैसे हो सकता है कि मैं यूरोप लांघती हुई स्वीडन जाऊं और यूरोप भ्रमण न करूं? रही बात लोगों को जानने की तो मेरे जैसे घुमक्कड़ लोग वसुधैव कुटुम्बकम के दर्शन में अथाह विश्वास करते हैं। इसलिए उन्हें हर जगह दोस्त मिल जाते हैं।
जी हां, मैं भारत दर्शन की अपनी यात्राओं के दौरान खींची हुई तस्वीरों की सोलो एग्जीबिशन, “कलर्स आफ इंडिया” सीरीज़ के नाम से लगा चुकी हूं। मेरी फोटोग्राफी का एक सामाजिक पहलू भी है। मैं भारतीय कला और उसके हुनरमंदों को अपने कैमरे में कैद कर रही हूं, ताकि अपनी फोटो प्रदर्शनी के जरिए इन्हें एक पहचान दे सकूं।जल्दी ही आपको भारतीय कला और कलाकारों के जीवन से जुड़ी मेरी एक फोटो प्रदर्शनी देखने को मिलेगी।
कहते हैं अकेली महिला या लड़की को युवक घूरते हैं। क्या ऐसा अनुभव आपको भी हुआ भ्रमण के दौरान?
हां, यह सच है। अकेली महिला या लड़की को युवक घूरते हैं। मुझे लगता है कि इसका सीधा सा जवाब है कि आप भी पलट करउसे उसी तरह घूरें। उनकी पैनी निगाहों से घबराएं नहीं और यह कतई न सोचें कि हाय अब मैं खुद को कहां छुपाऊं? बल्कि उसका मुंह तोड़ जवाब दें। आप देखेंगी कि वह युवक खुद ही झेंप जाएगा और फिर भी घूरना बंद न करे तो पूछ लीजिए कि भाई, क्यों घूर रहा है? मैं सही कह रही हूं कि उसकी हवा वहीं निकल जाएगी। सारा खेल कॉनफिडेंस का है। यह आपको तय करना है कि लोग आपके साथ कैसा व्यवहार करें?
आप देश-विदेश को अकेले ही नाप रही हैं। ये महिला सशक्तिकरण का एक नमूना हो सकता है। पर एक तरफ आज भी भारत मेंकई जगहों पर बेटियों और महिलाओं को घर से अकेले निकलने की इजाजत नहीं है। क्या कहेंगी इस विषय पर?
आपके सशक्तिकरण के लिए कोई और खड़ा नहीं होगा। आपको खुद ही आवाज़ उठानी होगी। मैं अति-परम्परावादी समाज से आती हूं। मैंने अपने जीवन के फैसले ख़ुद किए हैं। जब एक स्त्री के जीवन का भाग्यविधाता कोई और होगा तो स्त्री के अधिकारों का हनन होगा ही। इसलिए खुद को इतना सक्षम बनाओ कि अपने जीवन की दशा और दिशा ख़ुद निर्धारित कर सको। मलाला युसूफ ज़ई के देश जितना बुरा हाल तो नहीं है हमारे देश का। जब वह अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठा सकती है तो हम क्यों नहीं?
बेहद निजी सवाल, आप अपनी यात्राओं के फंडका प्रबंध कहां से करती हैं?
कुछ समय तक तो यात्राएं मैंने अपनी जेब से की। लेकिन अब मुझे बहुत सारी जगहों पर बुलाया जाता है, यह यात्राएं उन्हीं के द्वारा प्रायोजित की जाती हैं। देश में कई सारे टूरिज्म बोर्ड और टूरिज़्म से जुड़ी आर्गेनाइजेशन हैं जिनके कार्यक्रम होते रहते हैं। वे हमें बुलाते हैं। ट्रेवलर्स, ब्लॉगर्स और मीडियाकर्मियों के लिए फेम ट्रिप्स भी होती हैं। मेरी हाल ही में हुई स्वीडन यात्रा गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय द्वारा प्रायोजित थी।इसके साथ यूरोप यात्रा का खर्च मैंने खुद वहन किया। मेरी यात्राओं का निजी खर्च मेरी फोटोग्राफी से भी निकलता है। मेरी खींची हुई तस्वीरों के खरीददार भी हैं। जहां से मुझे आय भी होती है।
यात्रा और फोटोग्राफी की शुरुआत कब की और ये कैसे तय किया की यही करना है? क्या यह आप को बचपन से पसंद था?
फोटोग्राफी और घुमक्कड़ी मेरे डीएनए में है जो मुझे मेरे पिता से विरासत में मिला है। बचपन से ही घर में फोटोग्राफी किया करती थी।जब छोटी थी तभी से दुनिया देखने की चाह मन के किसी कोने में समाईहुई थी। ट्रेवलर बनने का सपना इतना बड़ा था कि किसी और से तो क्या खुद से भी मुंह खोल कर कह नहीं पाई और कक्षाओं पर कक्षाएं लांघती हुई बड़ी हो गई। पर ट्रेवलर बनने की चाह अभी भी मन के किसी कोने में सुलग रही थी। पढ़ाई ख़त्म की और कॉरपोरेट की नौकरी शुरु कर दी, तब भी मन को सुकून नहीं था। कुछ अधूरापन सा लग रहा था जीवन में। एक समय आया और कॉरपोरेट की नौकरी को भी छोड़ दिया। यह वह समय था जब जीवन में बहुत घुटन थी, निराशा थी, अज्ञानता थी। मैं खुद ही नहीं तय कर पा रही थी कि मुझे करना क्या है? फिर मैंने जीवन में कुछ अलग करने वाले और सफल लोगों की आत्मकथाएं पढ़ी। इन्हें पढ़ कर लगा कि अगर आप के अंदर कुछ करने का जज्बा और जुनून है तो मंजिल जरूर मिलती है। इस सोच ने मुझे हौसला दिया और प्रकाश पुंज की भांति विचारों की उस अंधेरी गुफा में रौशनी कर दी। फिर मुझे लगा कि मैं खुद में खोजूं कि क्या करने से मुझे ख़ुशी मिलेगी? इसका जवाब कोई और नहीं देगा आपको खुद तलाशना होगा।और इस तरह यह निकल कर आया कि मुझे फोटोग्राफी और यायावरी करनी है, क्योंकि यही वह चीज़ है जो मुझे सच्ची ख़ुशी देती है। फिर क्या था करीब चार साल पहले मैंने कमैरा उठा लिया। फिर मुझे लगा कि बिना फोटोग्राफी की तकनीकी बारीकियां समझे मैं एक बेहतरीन फोटोग्राफर नहीं बन सकती। इसके बाद मैंने इसकी प्रोफेशनल तरीके से पढ़ाई भी की।
आप ब्लॉगर हैं, फोटोग्राफर हैं। ये आपके शौक हैं। पर आपकी आय यानी कमाई का जरिया क्या है?
मैं ब्लॉग चलाने औरफोटोग्राफी के साथ-साथ नौकरी भी करती हूं। वर्तमान में मैं ग्लोबली रिनाउंड शिव नाडर युनिवर्सिटी में अपनी सेवाएं देती हूं। मुझे यह बताने में खुशी हो रही है कि शिव नाडर विश्वविद्यालय का माहौल बहुत ही सकारात्मक और प्रेरणादायी है। इसका वर्क कल्चर बहुत ही अच्छा है। यहां कामैनेजमेंट प्रतिभा को बढ़ावा देता है। मेरी सफलता में इस विश्वविद्यालय का विशेष योगदान है।
प्रसिद्ध साहित्यकार कृष्णा सोबती जी पर आपने पीएचडी की है। क्या कभी क़ायनात काजी प्रोफेसर के रूप में भी दिख सकती हैं।
कल का तो कुछ नहीं पता। वो कहते हैं न expect unexpected। वैसे मुझे पढ़ना और पढ़ाना पसंद है।
अपनी पसंद का कोई एक ट्रेवल राइटर और यात्रा पर आधारित किताब बताइए।
कोई एक हो तो बताऊं। आचार्य राहुल सांकृत्यायनजी, विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, असग़र वजाहत और कमलेशवर की रचनाएं मैं बड़े चाव से पढ़ती हूं।यात्रा पर आधारितमेरी सबसे पसंदीदा किताब है, “एशिया के दुर्गम भूखंडों में”, जिसे राहुल सांकृत्यायनजी ने लिखा है। इस पुस्तक को लिखे लगभग 80 वर्षों से अधिक का समय बीत चुका है।यात्रा साहित्य में राहुल सांकृत्यायन जी द्वारा लिखी पुस्तकें एक दस्तावेज़ के रूप में मानीजाती हैं। मेरे लिए तो यह एक प्रेरणा स्रोत के रूप में कार्य करती हैं। उनके समय में यात्रा करना आज जैसा आसान नहीं था। आज हर कोई लद्दाख पहुंच जाता है। जबकि उन्होंने हिमालय के ऐसे क्षेत्रों में उस समय यात्रा की है जब वहां सड़कें तो दूर मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिलती थी।
आप कौन सा अख़बार पढ़ना और टीवी न्यूज़ चैनल देखना पसंद करती हैं? अपनी पसंद का कोई एक पत्रकार बताइए?
वैसे तो मैं कई अखबार पढ़ती हूं, लेकिन दैनिक हिंदुस्तान और द हिंदू अच्छा लगता है। समाचार चैनल में NDTV और टाइम्स नाउ देखती हूं। रवीश कुमार मेरे पसंदीदा पत्रकार हैं।
ट्रेवल पर सबसे बढ़िया आलेख किस अखबार या पत्रिका में होते हैं?
यह दुर्भाग्य है कि हिंदी में ट्रेवल को समर्पित कोई पत्रिका नहीं है। लोग कहते हैं कि बाजार की अपनी चुनौतियां हैं। अख़बार भी ट्रेवल से जुड़े आलेखों के लिए आमतौर पर उदासीन ही होते हैं। हां, अंग्रेज़ी में कई अच्छी पत्रिकाएं हैं जैसे, नेट जियो ट्रेवलर, आउटलुक ट्रेवलर आदि।
लंदन में रह रहीं लेखिका अनुराधा बेनीवाल की पिछले दिनों आई किताब “आजादी मेरा ब्रांड” भारत में काफ़ी लोकप्रिय हुई, जो उनकी यूरोप भ्रमण पर आधारित थी। क्या आपने पढ़ी या इसके बारे में सुना?
जी,मैंने अभी पूरी पढ़ी नहीं है,पर पढ़ना ज़रूर चाहूंगी। हरियाणा की बिंदास छोरी अनुराधा बेनीवाल के अनुभवों औरउनकी सोच से सहमति रखती हूं। मेरी तरह वह भी बात करती हैं महिलाओं की आज़ादी और ख़ुशी की।
काफी देश-विदेश घूमा है आपने। कभी यात्रा संस्मरण पर आधारित किताब लिखेंगी?
फ़िलहाल दो किताबे प्रकाशन की प्रक्रिया में हैं। एक हिंदी साहित्य पर है, जिसका नाम है,“कृष्णा सोबती का साहित्य और समाज”। जबकि दूसरी किताब एक कहानी संग्रह है जिसे मेरे पंद्रह वर्षों के स्वतंत्र लेखन में से संकलित किया गया है। इसके बाद यात्रा संस्मरण आएगा। फ़िलहाल इस पर काम चल रहा है। यह भारत दर्शन की मेरी यात्राओं पर केंद्रित होगा।
मीडिया मिरर देखती हैं आप? कैसा लगता है?
अपनी व्यस्तताओं के बीच मैं समय निकाल कर “मीडिया मिरर”देख ही लेती हूं। “मीडिया मिरर” बड़ा ही अनोखा प्रयास है,इसके ज़रिए हमें अपनी बिरादरी के बारे में बहुत सारी सकारात्मक जानकारियां एक ही जगह मिल जाती हैं। लोगों द्वारा पोस्ट की गई तस्वीरों को देख कर हम वर्चुअली उनके अनुभव से आनंदित हो लेते हैं।
मैं अपनी हर यात्रा से कुछ न कुछ सोवेनियर ज़रूर लाती हूं, उस जगह की निशानी के बतौर। आप मेरा घर देखेंगे तो आपको मिनी इंडिया नज़र आएगा। रही बात मेरी आदर्श महिला की तो वह हैं आंग सान सू।साहसी और निडर सू ने म्यांमार (बर्मा) में लोकतंत्र की स्थापना के लिएसंघर्ष किया और एक लंबा समय जेल की सलाखों के पीछे गुज़ारा। उनका जीवन संघर्ष और कष्ट से भरा रहा है, लेकिन उनके कभी हार न मानने वाले जज़्बे को मैं सलाम करती हूंऔर उन्हें अपनी प्रेरणा मानती हूं। उन्हें वर्ष 1991 में नोबेल शांति पुरस्कार भी प्रदान किया गया है।
डा. कायनात काजी के बारे में
फोटो पत्रकार और हिंदी साहित्य की शोधार्थी डा. कायनात काजी आगरा विश्वविद्यालय से पीचडी हैं। एमए (हिंदी) के साथ-साथ एमबीए और एमए (मास कम्यूनिकेशन) की डिग्री हासिल करने वाली डा. कायनात फिलहाल ग्रेटर नोएडा स्थित अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव नाडर विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।
देश के प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान जागरण इंस्टीट्यूट आफ मास कम्यूनिकेशन से जनसंचार और पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद लंबे समय तक 14 भाषाओं में प्रकाशित समाचार पत्रिका “द संडे इंडियन” से जुड़ी रहीं कायनात कविताएं और कहानियां भी लिखती हैं। आगरा आकाशवाणी से इनकी कहानियों का नियमित प्रसारण भी हुआ है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में फ़ोटो फीचर और यात्रा वृतांत के अलावा डा. कायनात काजी के कई शोध पत्र भी प्रकाशित हो चुके हैं। फोटोग्राफी कायनात का जुनून है और भ्रमण उनका शौक़। साहित्य और फोटोग्राफ़ी के अनोखे संगम से हिंदी के पहले ट्रेवल फोटोग्राफी ब्लॉग“राहगिरी” (www.rahagiri.com) का उदय हुआ। डा. कायनात सक्रिय ब्लॉगर हैं और राहगिरी नाम से ब्लॉग लिखती हैं।
देश के जानेमाने फोटोग्राफरडा. ओपी शर्मा की शिष्या कायनात काजी के फोटोग्राफ कई प्रतिष्ठित फोटो प्रदर्शनियों में चयनित और प्रदर्शित भी हो चुके हैं। दिल्ली के इंडिया हैबीटेट सेंटर सहित देश के कई शहरों में कायनात काजी की फोटो प्रदर्शनी भी लग चुकी है। कायनात को फोटोग्राफी के लिए कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं।