एस एस डोगरा
आज मेट्रो में एक अधेड़ व्यक्ति मेरे सामने सीट से उठने की चेष्टा कर रहा था इसी बीच मुझे पता लग गया कि उसकी टाँगे पोलिओग्रस्त है तथा लोहे की विशेष रोड के सहारे पर ही चल पाता होगा. मैंने उसको खड़ा करने में मदद करने के उद्देश्य से अपना हाथ उसकी ओर बढाया परन्तु उसने मेरे सहायता भरे हाथ की तरफ ध्यान ही नहीं दिया और अपनी धुन में उठा तथा पास ही पड़ी अपनी दोनों बसाखियों को अपने हाथों में लेकर ट्रेन से उतरने के लिए तैयार हो गया. मुझसे भी रहा न गया मैंने सबसे पहले तो उसके आत्मसम्मान के जज्बे को सलाम किया परन्तु एक बात कही जो मेरे दिल में थी. भाई मेरा उद्देश्य आपके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाना नहीं था बल्कि क्षण भर सहारा देना था ताकि आप कही गिर न जाएँ. उसका जवाब था आज आप तो मेरी मदद कर मुझे खड़ा कर देंगे और मुझे औरो से भी इसी तरह मदद लेने की आदत पड जाएगी. और सबसे बड़ी बात तो ये है आप जैसे निस्वार्थ सेवा भावना रखने वाले लोग आज इस व्यस्त और स्वार्थी समाज में बचे कितने है इसीलिए मैं किसी पर निर्भर नहीं होना चाहता हूँ और इतने में स्टेसन आते ही वह तो उतर गया लेकिन आत्मसम्मान का साहसपूर्ण सन्देश दे गया जिसे मुझे ही नहीं बल्कि आसपास खड़े कुछ बुद्धिजीवियों को प्रभावित कर गया. ऐसे जाबांज को दिल से सैंकड़ो सलाम.
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