मैं और मेरी पत्नी 14 मई को चार दिन के लिए मुसूरी और उसके आस पास के पहाड़ी स्थलों की यात्रा करने और ठण्डी हवाओं का आनंद लेने गए थे ! इसी प्रयटक स्थलों की यात्रा के सिलसिले में ठण्डे और सुहावने मौसम का आनंद लेने के लिए हम 16 मई को कैम्पटी फॉल्स देखने गए थे ! कैम्पटी फॉल्स, उत्तराखंड के टेहड़ी गढ़वाल जिले में (मसूरी से लगभग 15 / 16 किलोमीटर दूर ) ऊँचें २ पहाड़ों से पानी तक़रीबन डेढ़ दो सौ मीटर की ऊँचाई से नीचे गिरता हैं और वहां पर सरकार ने एक बड़ा सा चहबच्चा (स्विमिंग पूल) सा बनाया हुआ है यहाँ लोग पिकनिक मानाने आते हैं, नहाते हैं और ठण्डे २ पानी का आनंद मानते हैं ! उस स्थान तक नीचे जाने के लिए दो साधन हैं – एक तो आप तकरीबन 150 सीढ़ियाँ नीचे उतरकर पैदल नीचे जा सकते हो, दूसरा अगर किसी शारीरक परेशानी की वजह से आपकी सेहत इतनी सीढ़ियाँ उतरने / चढ़ने के इजाज़त नहीं देती, तो सरकार ने वहाँ रोपवे ट्रेवल के लिए बिजली से चलने वाली ट्रॉलियों का प्रबंध भी कर रखा है ! बिजली संचालित ट्रॉली से नीचे जाने के लिए 180 रूपये की टिकट लगती है ! हम दोनों को उस बिजली संचालित ट्रॉली से ही नीचे जाना था ! टिकट लेकर जब हम ट्रॉली चलने के स्थान पर पहुंचे, तो मैंने देखा एक वहाँ एक आदमी कुछ लोगों को अलग करके दूसरे तरफ़ जाने का इशारा कर रहा था ! मुझे यह बात कुछ अजीब सी लगी, क्योंकि वहां पर तो सभी वही लोग ही थे जिन्होंने बिजली संचालित ट्रॉली से नीचे जाने के लिए 180 रूपये की टिकट ले रखी थी , तो फिर कुछ लोगों की वहाँ के कर्मचारी अलग क्यों कर रहे थे ?
ख़ैर, हम भी लाइन में लगे हुए थे और आगे बढ़ते २ जब हमारा भी ट्रॉली में बैठने का नंबर आने वाला था तो मुझे वहां के एक कर्मचारी ने पूछा , “श्रीमान जी ! क्या आप सिखों के साथ ट्रॉली में बैठकर जा सकते हो ?” मुझे उसका सवाल बड़ा अटपटा सा लगा और मैंने उससे उल्टा सवाल किया , “आप ऐसा क्यों पूछ रहे हो , यहाँ तो सब एक जैसी ही टिकट लेकर आये हैं ?” उस कर्मचारी ने उत्तर दिया , “श्रीमान जी ! कुछ लोग सिखों के साथ जाने में परेशानी महसूस करते हैं , तो कुछ लोग मुसलमानों के संग बैठकर जाने में दिक्कत अनुभव करते हैं ?” मैंने उसे उत्तर दिया , “यहाँ आने वाला प्रत्येक व्यक्ति एक प्रयटक है , यहां हिन्दू सिख या फ़िर मुसलमान की बात नहीं होनी चाहिए ?” लेकिन उसने मेरी बात अनसुनी करते हुए फ़िर मुझसे पूछा , “आप अपनी बात करिये , क्या आप इन सिखों के साथ एक ही ट्रॉली में बैठकर जाना चाहते हो ?” मैंने उत्तर दिया , “मुझे किसी से भी जाने में कोई दिक्कत नहीं है, मेरे साथ ट्रॉली में भले ही कोई सिख मुसाफिर हो या फिर मुसलमान , मेरे लिए सब बराबर है ! वैसे क्या आप बता सकते हैं कि जितने लोग जहाँ खड़े हैं , उन में से आपको किस हिन्दू ने किसी सरदार या मुसलमान से साथ जाने से मना किया है ?” मेरे इस सवाल का उसके पास कोई जवाब नहीं था और उसने मुँह थोड़ा टेड़ा सा करके हमें एक ट्रॉली में बिठाया और बाद में एक सिख परिवार को भी उसमें बैठने का इशारा किया ! एक ट्रॉली में 6 लोग बैठ सकते हैं और एक साथ तीन ट्रॉलियां ऊपर और नीचे आती जाती हैं और केवल दो मिंट में ही ट्रॉली ऊपर से नीचे पहुँच जाती है ! जब हमारी ट्रॉली नीचे जा रही थी तो मैंने अपनी ट्रॉली में बैठे सरदारों से पूछा , “आपको तो कोई परेशानी नहीं है, उन दोनों सरदारों ने बड़े खुश होकर उत्तर दिया , “जी नहीं ! बिलकुल नहीं , सानू तुसीं किसे नाल भी बिठा दियो , हम तो बड़े खुश होकर जाते हैं !” उनका उत्तर सुनकर मुझे बड़ा अच्छा लगा , लेकिन मैंने उनको बताया कि हम लोग जहां चौथी या पांचवीं बार आये हैं , लेकिन यह पहली बार हुआ है कि हमें यहां के किसी कर्मचारी ने ट्रॉली में बैठने से पहले हिन्दू सिख या फ़िर मुसलमान के साथ बैठने या ना बैठने के लिए हमसे पूछा हो !
यह बात समझ से बाहर है कि कुछ लोग हर बात में धर्म मजहब / जातिपाति को क्यों ले आते हैं , और ऐसा करने के लिए उन कर्मचारियों को कौन उकसाता है ? समाज में धार्मिक सद्भावना और भाईचारा फैलाना और सबसे साथ मिल-जुलकर रहना हमारी सोच और भावना होनी चाहिए , नाकि जातिपाति और धर्म मजहब के आधार पर समाज में लोगों का बंटवारा करना ! हम अगर छोटी २ बातों के लिए एकजुट नहीं हो सकते तो बड़े २ मसले मिल-जुलकर कैसे सुलझाएंगे ? इस छोटे से लेख के माध्यम से मेरा उत्तराखण्ड सरकार के संबंधित विभाग से निवेदन है कि वह सब पर्यटक स्थलों पे कार्यरत सभी कर्मचारियों को निर्देश दें कि वह ऐसे किसी भी पर्यटक को हिन्दू सिख या फ़िर मुसलमान होने के आधार पर अलग करने की बात ना करें, देश और समाज के लिए यही भावना लंबे समय के लिए हितकारी है !
आर डी भारद्वाज ” नूरपुरी “