प्रो. उर्मिला परवाल
जब भी मैं चुनाव या मतदान के बारे में स¨चती हूँ तो सबसे पहले जो प्रश्न मन में आता है वह यह है कि चुनाव क्या है ? हम मतदान क्यूं करते है? जब देश के एक घर का प्रतिरूप मानकर समझने का प्रयास करती हूँ तो जवाब तब अपने आप मिल जाता है…कि जिस प्रकार एक घर के सुव्यवस्थित एवं सुनियोजित रुप से संचालित करने के लिए घर की समस्त जिम्मेदारियों को सदस्यगण आपस में ज्ञान, क्षमता और योग्यता के आधार पर बाँट लेते है ठीक उसी प्रकार देश को सुव्यवस्थित एवं सुनियोजित रुप से संचालित करने के लिए योग्य व्यक्तियों का चयन करना ही चुनाव कहलाता है। चूँकि परिवार में सबकी सहमती और असहमती का महत्व होता है इसीलिए देश में मतदान किया जाता है। ये तो हुई राजनीति की बात परन्तु आजकल जो चल रही है वह सिर्फ राजनीति नहीं है…उसके अनुसार-चुनाव महाभारत है-भाइयों को लड़ाता है, अहम् को मारता है। चुनाव नज़्म है-मिसरा-काफिया मिलाता है, दिल भी तोड़ता है। चुनाव संगीत है-शास्त्रीय-सुगम हो तो दिल छू जाता है, स्तरहीन हो तो कान भी फाड़ता है। चुनाव बारिश है-कीचड़ उछालता है, और कभी-कभी कीचड़ में कमल भी खिलाता है।
वर्तमान समय में देश के जो हालात है, उससे जनता की उम्मीदें निराशा में बदल गई है, जनमानस अपने व देश के भविष्य को लेकर चिन्तित है मन में-हताशा है, ऐसे में 2008 में प्रकाशित ‘गवर्नमिंट इन इंडिया’ का एक अंश उल्लेखनीय है-“ आखिर, क्या कोई यह उम्मीद कर सकता है कि एक नया मसीहा आएगा, जो राजनीति से ऊपर उठकर देश के लिए कुछ कर दिखाएगा? क्या ऐसा नेता संसद में आने के लिए सारी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का उपयोग करके, लोकतांत्रिक दायरे के भीतर काम करते हुए एक बड़ी झाड़ू लेकर व्यवस्था की सफाई करने के साथ विकास लाकर देश को नई राह पर ले जा सकता है? एक बार ऐसे व्यक्ति का उदय हो जाए त¨ पूरा देश उसे समर्थन देने के लिए उठ खड़ा होगा। केन्द्र में गठबंधन का युग खत्म हो जाएगा।” इतिहास गवाह है कि मोहनदास करमचन्द गांधी नाम का एक व्यक्ति भारत में ऐसा हुआ जिसने ये चमत्कार करके दिखाया। उसके बाद अस्सी -नब्बे के दशक में राजीव गांधी जबर्दस्त जनादेश के साथ संसद मे आए। वे देश को निर्णायक दिशा दे सकते थे, किन्तु खेद है कि बहुत कम अनुभव होने के कारण उनकी दशा जंगल में गुम हुए किसी बच्चे जैसी हो गई। और देश ने महानता की ओर बढ़ने का एक अवसर खो दिया।
इस बार दावे के साथ कहा जा सकता है कि कमल (नरेन्द्र मोदी ) खिला है। मोदीजी ने पिछले ढ़ाई तीन दशक से चल रहे गठबंधन के दौर को समाप्त किया है। उन्होंने एक पार्टी ही नहीं एक व्यक्ति की राजनीति का दौर शुरू किया है। अब वे पार्टी भी है, सरकार भी है और नेता भी है। मोदीजी का व्यक्तित्व उस व्यक्ति की तरह उभरकर सामने आया हैं जो कि पुरानी कहानियों में ही पाया जाता है सच्चा, स्वाभिमानी, आशावादी, समझदार, निडर व्यक्ति। अगर उनके व्यक्तित्व पर विचार किया जाए तो उनमें भगवान राम के वनवासी गुण और भगवान कृष्ण के कर्मयोगी गुण दृष्टिगत होते है। साथ ही ऐसा प्रतीत होता है जैसे फिल्म ‘नायक’ की पटकथा सजीव हो उठी हैं। एक व्यक्ति में सारी का सिमट जाना देश के लिए शुभ हो सकता है
इस बार भाजपा नेता नरेन्द्र मोदी की जो सुनामी आई है, उसने भाजपा की ताकत इतनी बढ़ा दी कि बिना किसीका नुकसान किए दूसरी पार्टी की लकीरें खुद ही छोटी साबित हो गई। भारत में नई सरकार आने के साथ जो कमी गांधीजी के जाने से महसुस हो रही थी इसे दूर करने का मौका आ गया है। मोदी भारत के हिंदू राश्ट्रवादी नेता है। और भारतीय राज्य गुजरात में 3 कालों से मुख्यमंत्री रहे हैं। नरेन्द्र मोदी के बारे में कुछ छिपा नहीं है, चाहे वह गुजरात में घटी घटनाएँ हो या फिर गुजरात का विकास माॅडल। इसके बाद भी लोगों ने उन्हें निर्णायक विजय दिलाई। इस बार ज्यादा मतदाता मतदान केन्द्र तक पहुंचे इसका श्रेय मोदीजी को ही जाता है। जिसे देखो वो मोदीजी के प्रचार अभियान की चर्चा व प्रशंसा करता नजर आता है परन्तु देखा जाए तो मोदीजी ने ऐसा क्या वादा किया,? कौनसे सपने दिखाए? जिससे उनको भारत के कोने -कोने से जबरदस्त समर्थन मिला। उन्होंने तो सिर्फ विकास के मुद्दे पर बात की और अपनी योजना पर काम करके भी दिखाया। और कर्म तो सदैव ही पूजनीय रहा है। निश्चित ही मोदीजी की पहचान ऐसी ही है. स्पष्ट है कि लोग मोदी सरकार ही चाहते थे क्यूं कि उनमें जनता को संभावनाए नजर आयी। इसीलिए देश के 15वें प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी का शपथ ग्रहण समारोह राश्ट्रपति भवन में धूमधाम और उत्साह से हुआ, कई अर्थों में यह देश की राजनीति में एक नये युग की शुरूआत है। इससे भारतीय राजनीति की सूरत ही बदल गई है, एक ऐसा जनादेश तैयार हुआ है जिसका स्वरूप सकारात्मक है। मोदी सरकार कई मायनो में अभिनव होगी। नई सरकार उम्मीदो की लहर पर सवार होकर आयी है इसे कामयाब होना ही होगा।
उम्मीद की लहर के साथ आकांक्षाओं का तूफान भी रहता है………क्या वाकई नरेन्द्र मोदी भारत का रूपान्तरण करने वाले वास्तविक मसीहा साबित होंगे? आशाएँ जितनी तेजी से चढ़ती है उतनी ही रफ्तार से उतर भी जाती है। इतिहास ने मोदीजी के कन्धों पर एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी डाली है। अशिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएँ, बिजली, कृषि, महंगाई, भ्रश्टाचार आदि मोदीजी के सामने सेंकडों भयंकर चुनोतियां है. लॉककतंत्र में लोगों के पास असीमित धैर्य नहीं होता। सरकार की कमियों-खामियो को भुनाने, और आलोचना करके जन-असंत¨श पैदा करने वाली ताकतें हमेशा मॉजूद रहती है। यह तो सर्व-स्वीकृत तथ्य है कि किसी सरकार के पास जादू की छड़ी नहीं होती, अतः ऐसा सोचना निराधार है कि सारी समस्याएँ समाप्त हो जाएंगी लेकिन जैसा कुशल और सक्षम प्रशासन देने का विश्वास मोदीजी ने जगाया है, उसे अगर उन्होंने कायम रखा तो वे अपने लिए भारत के इतिहास में वर्णननीय स्थान प्राप्त करेंगे। इस तरह की भूमिका में अब तक वे सफल रहें है। राज्य का प्रयोग वे केन्द्र में दोहरा पाएंगे या नहीं यही उत्सुकता रहेगी।