आर डी भारद्वाज “नूरपुरी”
एक दिन किसी कारण से स्कूल में छुट्टी की घोषणा होने के कारण, एक दर्जी का बेटा, इधर उधर घूमने या खेलने की बजाये अपने पापा की दुकान पर चला गया । वहाँ जाकर वह दुकान में रखे हुए बेंच पर बैठ गया और अपने पापा को काम करते हुए बड़े ध्यान से देखने लगा । उसने देखा कि उसके पापा कैंची से कपड़े को काटते हैं और कैंची को पैर के पास टांग से दबा कर रख देते हैं । फिर सुई से उसको सीते हैं और सीने के बाद सुई को अपनी टोपी पर लगा लेते हैं । जब उसने इसी क्रिया को चार-पाँच बार देखा तो उससे रहा नहीं गया, तो उसने अपने पापा से कहा कि वह एक बात उनसे पूछना चाहता है ?
पापा ने कहा – “बेटा बोलो ! क्या पूछना चाहते हो ?” बेटा बोला, “पापा मैं बड़ी देर से आपको देख रहा हूं , आप जब भी कपड़ा काटते हैं, उसके बाद कैंची को पैर के नीचे दबा देते हैं, और सुई से कपड़ा सीने के बाद, उसे टोपी पर लगा लेते हैं , ऐसा क्यों ?”
पिता ने बच्चे की बात बड़े गौर से सुनी और उसका जो उत्तर पापा ने दिया – उन दो पंक्तियाँ में मानों उसने अपने बेटे को ज़िन्दगी का सार ही समझा दिया । उन्होंने बच्चे को जवाब दिया – ” बेटा ! कैंची कपड़ा काटने का काम करती है, और सुई कटे हुए कपड़े को सीने अर्थात जोड़ने का काम करती है, और काटने वाले की जगह हमेशा नीची होती है परन्तु इसके बिलकुल विपरीत जोड़ने वाले की स्थान हमेशा ऊपर होता है । यही कारण है कि मैं सुई को टोपी पर लगाता हूं और कैंची को पैर के नीचे रखता हूं …… !!!