कविता -अदृश्य शत्रु

अशोक लव

सैकड़ों वर्ष पूर्व
विश्व विजय का संकल्प लिए
नगरों को रौंदता आया था सिकंदर।
भारत की सीमा पर ही थम गया था
उसका विश्व-विजय-अभियान।
आज फिर विश्व को रौंदता आ गया है
अदृश्य सिकंदर
नए नाम, नए रूप में
थम गया है उसका विश्व-विजय-अभियान ।
युद्धरत हैं हमारे योद्धा
कुशल सेनापति के नेतृत्व में ,
थाम ली है उसके बढ़ते रथ की लगाम।
जिस-जिस रूप में आए सिकंदर
स्वयं ही नष्ट हो गए।
नष्ट हो जाएगा शीघ्र ही
यह भी, अदृश्य सिकंदर !