मुसलमानों के बारे में संघ का बदला हुआ नजरिया

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने एक बार फिर बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया है। मुसलमानों के संबंध में दिए गए उनके बयान को लेकर देश में फिर से बहस छिड़ गई है। उन्होंने एक मुस्लिम लेखक की पुस्तक का विमोचन करते हुए कह दिया कि भारत के हिंदुओं और मुसलमानों का डीएनए एक ही है। सारे भारतीयों का डीएनए एक है या नहीं, इसे लेकर वैज्ञानिकों की तकनीकी रायें अलग-अलग हो सकती हैं लेकिन मोहनजी का मंतव्य यह है कि भारत के मुसलमानों की धमनियों में भी वही खून बहता है, जो हिंदुओं की धमनियों में बहता है। यही बात श्री अटलबिहारी वाजपेयी और डॉ. मुरलीमनोहर जोशी भी कई साल पहले कह चुके हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा को मुसलमान-विरोधी संगठन समझा जाता है। भारत-विभाजन के पहले और उसके समय संघ ने मुस्लिम लीग और पाकिस्तान का इतना कड़ा विरोध किया था कि पहले जनसंघ और अब भाजपा की छवि एक हिंदू सांप्रदायिक संगठन की बन गई थी। उसे सांप्रदायिकता के कठघरे में खड़ा करना सत्तारुढ़ कांग्रेस पार्टी के लिए हमेशा फायदे का सौदा रहा है, क्योंकि डराए हुए मुसलमानों के थोक वोट मिलने में आसानी रहती है।

कांग्रेस की इस रणनीति को लंबे समय तक सफलता इसलिए भी मिलती रही कि संघ, जनसंघ और भाजपा द्वारा सदा हिंदुत्व का नगाड़ा पीटा जाता रहा। सावरकर के हिंदुत्व की तोड़-मरोड़ कर जो भी व्याख्या होती रही, उसने इस संकीर्ण सांप्रदायिक विचारधारा को रंग दे दिया। इस संकीर्ण धारावाहिकता को भंग करने का श्रेय मोहन भागवत को है। मोहनजी ने वास्तव में हिंदुत्व की पुर्नव्याख्या की है। उन्होंने उसके सही अर्थों को उकेरने की कोशिश की है। उन्होंने सितंबर 2018 में अपने विज्ञान भवन के भाषण में कहा कि हिंदुत्व और भारतीयता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जो हिंदू है, वह भारतीय है और जो भारतीय है, वह हिंदू है। कोई भी भारतीय नागरिक किसी भी पंथ, मजहब, संप्रदाय या धर्म को माननेवाला हो, वह भी हिंदुत्व के दायरे से बाहर नहीं है। हिंद में रहनेवाला हर व्यक्ति हिंदू है। यह शब्द और यह अवधारणा भी हमें विदेशी मुसलमानों ने ही दी है।

हिंदुत्व का अर्थ है— विविधता, उदारता, सह-जीवन, सहनशीलता ! मोहनजी के अनुसार सच्चा हिंदू वही है, जो सभी पंथों के प्रति आदर का भाव रखता है। उनका यह वाक्य कितना महत्वपूर्ण है कि वह आदमी हिंदू नहीं हो सकता, जो यह कहे कि भारत में मुसलमानों को नहीं रहना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग गोरक्षा के बहाने मानव-हत्या कर रहे हैं, वे हिंदुत्व के विरोधी हैं। उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। इधर मोहन भागवत यह कह रहे थे और उधर कई टीवी चैनल भाजपा के कुछ नेताओं को मुस्लिम-विरोधी भाषण देते हुए दिखा रहे थे। कई तथाकथित हिंदुत्ववादी नेताओं को यह कल्पना भी नहीं है कि देश के लगभग 25-30 करोड़ लोगों को सांप्रदायिक आधार पर ‘अराष्ट्रीय’ घोषित करके आप एक नए पाकिस्तान की नींव रख रहे हैं।

अब यदि 50 या सौ साल बाद सांप्रदायिक आधार पर भारत का विभाजन हुआ तो वह 1947 के विभाजन से अधिक भयंकर और दर्दनाक होगा। तब पूर्व और पश्चिम के प्रांत बंटे थे, अब जिले, शहर, गांव और मोहल्ले बँटेंगे। पाकिस्तान के नेता तो चाहते हैं कि भारत फिर से बंटे और कई टुकड़ों में बंटे। जो लोग हमारे देश में सांप्रदायिकता फैला रहे हैं, चाहे वह हिंदू सांप्रदायिकता हो या मुस्लिम सांप्रदायिकता, वे वास्तव में तात्कालिकता के शिकार हैं। उनमें दूरदृष्टि का अभाव है।

मोहन भागवत का यह कथन कितना अर्थपूर्ण है कि हिंदू और मुसलमानों की एकता की बात करना व्यर्थ है, क्योंकि वे दो हैं ही नहीं। वे तो एक ही हैं। सैद्धांतिक तौर पर यह ठीक है लेकिन व्यवहार में क्या ऐसा है ? इस पर अमल तो तभी होगा जब देश के सभी नागरिकों में रोटी-बेटी के संबंध खुलें। हिंदू-मुसलमान की बात जाने दीजिए। आज क्या कोई भी हिंदू किसी भी हिंदू के साथ रोटी-बेटी का संबंध मुक्त रुप से करता है ? हमारे मुसलमानों में भी यह ‘हिंदुआना हकरत’ देखी जाती है। भारत में ही नहीं, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मुसलमानों में भी मैंने जातिवाद और वंशवाद की मजबूत दीवारें खड़ी देखी हैं। ऐसी स्थिति में भारत के हिंदुओं और मुसलमानों, दोनों को अपने में काफी बदलाव लाने की जरुरत है।

भारत के मुसलमान नेताओं को शायद यह पता नहीं है कि दुनिया के ईसाई, यहूदी, बौद्ध और कम्युनिस्ट देशों में उनके मुसलमान अल्पसंख्यकों की कैसी दुर्दशा है? मैंने खुद अपनी आंखों से रुस, चीन, यूरोप, जापान, इस्राइल आदि के मुसलमानों की दुर्दशा को देखा है। उन सबकी तुलना में भारत का मुसलमान मुझे बहुत भाग्यशाली लगता है। मैं तो यह मानता हूं कि भारत का मुसलमान दुनिया का सर्वश्रेष्ठ मुसलमान है, क्योंकि वह इस्लाम को तो मानता ही है, उसमें भारतीयता भी कूट-कूट कर भरी हुई है। यह बात कुछ साल पहले मैंने दुबई की एक बड़ी सभा में कह दी थी, जहां अगली पंक्तियां शेखों से भरी हुई थीं।

मैं चाहता हूं कि भारत का मुसलमान अपनी मौलिकता के लिए सारी दुनिया में जाना जाए। वह अरबों या ईरानियों का नकलची क्यों बना रहे? वह अपनी भाषा, भूषा, भोजन, भजन और भेषज में मूल रुप से भारतीय बना रहे और साथ में ही कुरान की एकेश्वरवादी, क्रांतिकारी और समतावादी धारणाओं का जीवंत उदाहरण बनकर दिखाए। सभी मजहबों के अनुयायिओं से मैं कहता हूं कि संत कबीर के इस कथन को वे हमेशा ध्यान में रखें कि ‘‘सार-सार को गहि रहें, थोथा देइ उड़ाय।’’