गीता क्या है ?
गै धातु में क्त प्रत्यय लगा है, जिसका अर्थ है जो गाने योग्य हो वही गीता है. जब हम आनंदित होते हैं तो हमारे मुख से कोई न कोई आनंद भरा स्वर निकलने लगता है. अनंत कोटि ब्रह्माण्ड नायक भगवान् के मुखार्व्रिंद से निकली गीता के भावों का वह अनंत आनंद प्रकाश पुंज है जो निरंतर प्रकाशित होती रहती है. इसका आनंद वही ले सकता है जो इसका अधिकारी बनने का प्रयत्न निरंतर करता है.
गीता क्यों पढनी चाहिए ?
दर्शन शास्त्र में जगत क्या है ? जीव क्या है ? और ब्रह्म क्या है ? विभिन्न दार्शनिक मतों द्वारा इसकी व्याख्या, विवेचना, व अध्यन किया जाता है. परन्तु गीता पढाई नहीं कराती. तत्त्व जानना , दर्शन करना, और प्राप्त होना , ये तीनो ही बातें आ जाती हैं.
गीता पढने के फायदें
गीता पढने मात्र से हमारे जीवन की सभी समस्याओं का समाधान सहज ही हो जाता है. हमें दुखों से निवृति व् परमानन्द की प्राप्ति — जो सभी जीवों की चाहत है — प्राप्त होती है. इतना ही नहीं वह हमें ऐसे मोड़ पर ला खड़ा करती है, जहाँ केवल सत चित आनंद की अनुभूति होती है तथा अपने जीवन के गूढ़ रहस्यों को भी उजागर करती है. यह ज्ञान का वह सागर है जिसमे जितना गोता लगाया उतना ही हर पल हर क्षण नवीन अन्नंद पाया.
गीता की गति
किसी भी तरह की रूकावट आये उसको गति देनी है तो गीता पढना है. तोते की तरह रोज केवल पढने से — थोडा बहुत फायदा है — जब तक उसे जीवन में क्रियान्वित नहीं किया तब तक उसका प्रत्यक्ष परिणाम नहीं निकल पाता. साधक भगवान् की तरफ कुछ गति से बढ़ता अवश्य है — लेकिन संसार की मोह माया उसे अपनी तरफ आकर्षित करती है और उसके लिए गति -अवरोधक का काम करती है. — गीता सहज ही रुकावटों को पार कराने की असीम क्षमता रखती है.