जीवन की तेज हो गई रफ़्तार सोचिए,
बासी हुई खबर- ए- अखबार सोचिए।
मेहनत से दूर भागने लगे हैं हम सभी
हर कोई चाहता है चमत्कार सोचिए।
अब लाभ के पलड़े में तुलता है आदमी,
जीवन भी हो गया है व्यापार सोचिए।
प्रतियोगिता के नाम पे ईर्ष्या सिखा रहे
पनपेगा कैसे कोंपलों में प्यार सोचिए।
अब घूमते हैं बाज भी बुलबुल के वेष में
कैसे करेगा कोई ऐतबार सोचिए।
सूरत से आँकते हों जो लोगों की शख्सियत,
ऐसों से मेल- जोल को सौ बार सोचिए।
कब तक सहेंगे जालिमों के जुल्मो सितम आप
चुप रह गए थे तब तो इस बार सोचिए।
देते नहीं हैं वोट इलेक्शन में भले लोग,
कैसे बनेगी ढंग की सरकार सोचिए।
ताउम्र लगाता रहा इजलास के चक्कर,
आम आदमी है कितना लाचार सोचिए।
मिट्टी के पियाले भी बनते हैं मिलों में,
बैठा है हाशिए पे कुंभकार सोचिए।
बाजार तो करता ही था जरुरतें पूरी,
तय कर रहा जरुरतें बाजार सोचिए।
हिन्दी में बोलने में आने लगी शरम,
कितने हैं हम दिमाग से बीमार सोचिए।
अपराध व ग्लैमर की चैनल में होड़ है,
गुम हो गया कहीं पे समाचार सोचिए।
हैं बेचते ज़मीर जो पैसों के वास्ते,
क्यों हो रही है उनकी जयकार सोचिए।