जब जब कोशिश की ज़िंदगी मे संभलने की तो सिर्फ़ ठोकर ही मिली…
जब जब की उम्मीद खुशियों की तो बस आँसू ही मिले…
जब जब प्यार करने की कोशिश की सच्चे दिल से किसी को….
तब तब बस झूठे होने का इल्ज़ाम ही मिला…
सच्चा होना एक अभिशाप लगने लगा है…
किसी की फ़िक्र करना पाप सा लगने लगा है…
निस्वार्थ होना बैईमानी लगने लगा है…
ये जीवन जीना फ़िजूल लगने लगा है….
जब जब की उम्मीद खुशियों की तो बस आँसू ही मिले…
जब जब प्यार करने की कोशिश की सच्चे दिल से किसी को….
तब तब बस झूठे होने का इल्ज़ाम ही मिला…
सच्चा होना एक अभिशाप लगने लगा है…
किसी की फ़िक्र करना पाप सा लगने लगा है…
निस्वार्थ होना बैईमानी लगने लगा है…
ये जीवन जीना फ़िजूल लगने लगा है….
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