फेस बुक फोबिया आजकल सबके दिमाग पर सर चढ़कर बोल रहा है। कोई भी व्यक्ति फेसबुक पर नकली प्रोफाइल बनाकर फेसबुक पर मित्रों के नाम पर ठगी में जुटा है तो कोई अपनी छवि बनाने में जुटा है। कोई तो नकली आदमी से लड़की बनकर ब्लैकमेलिंग में जुटा है। इसके लिए जरुरी है की आप अपने फेसबुक पर सोच समझ कर पूरी तहकीकात करने के बाद रिक्वेस्ट भेजे या स्वीकार करें ? यह जरुरी भी है। आजकल कुछ लोग अपने को स्थापित अथवा पब्लिसिटी पाने के लिए दूसरे की पोस्ट पर बेवजह टैग और अपनी गलत योगयता दिखाने के चक्कर में अनाप शनाप कमेंट करते हैं। मेरा ऐसा मानना है कि ऐसे व्यक्तियों सबसे पहले अनफ्रेंड करें या ब्लॉक करें। इसके बाद यदि कोई आपको परेशान अथवा मानसिक,शारीरिक रूप से आहत करता है तो उसके खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज़ कराने के लिए आप स्वतंत्र हैं। सवाल यहाँ किसी पोस्ट पर गलत जानकारी या गलत मैसेज करने का है।
फेसबुक जरा संभल कर … !
अशोक कुमार निर्भय
कुछ लोग अपने को बड़ा बनाने के लिए उसके पोस्ट पर कमेंट करते हैं जिन्हें वह जानते तक नहीं हैं और दूर दूर तक उनका कोई लेना देना टैग होने वाले व्यक्ति से नहीं होता है ? बात देखने में और सामने आयी है की लोग अपनी अंतरंग तस्वीरों को भी फेसबुक पर साझा करते हैं यह बात समझ से परे है की पर्सनल लाइफ क्यों सार्वजनिक किया जाता है। आपको यह बताना जरुरी समझाता हूँ कि आपकी इन तस्वीरों का गलत प्रयोग असामाजिक तत्व नकली फेसबुक प्रोफाइल बनाकर लोगों से ठगी के रूप में करते हैं। आजकल फेसबुक पर सेल्फी डालने का भूत यूवा पीढ़ी के दिमाग में सवार है कोई भी मूमेंट हो चाहे व्यक्तिगत अथवा सार्वजनिक सब फेसबुक पर शेयर करने में अपनी शान समझ रहे हैं लेकिन उनको यह आभास तब होता है जब उनकी फेसबुक प्रोफाइल चुराकर कोई किसी अपराधिक वारदात को अंजाम दे जाता है। फेसबुक फोबिया की बीमारी अन्य डरों से किस प्रकार अलग है ? इसकी सबसे बड़ी विशेषता है व्यक्ति की चिन्ता, घबराहट और परेशानी यह जानकर भी कम नहीं होती कि दूसरे लोगो के लिए वही परिस्थिति खतरनाक नहीं है। यह डर सामने दिखने वाले खतरे से बहुत ज्यादा होते हैं। व्यक्ति को यह पता रहता है कि उसके डर का कोई तार्किक आधार नहीं है फिर भी वह उसे नियंत्रित नही कर पाता। इस कारण उसकी परेशानी और बढ़ जाती है। इस डर के कारण व्यक्ति उन चीजों, व्यक्तियों तथा परिस्थितियों से भागने का प्रयास करता है जिससे उस भयावह स्थिति का सामना न करना पड़े। धीरे-धीरे यह डर इतना बढ़ जाता है कि व्यक्ति हर समय उसी के बारे में सोचता रहता है और डरता है कि कहीं उसका सामना न हो जाए। इस कारण उसके काम-काज और सामान्य जीवन में बहुत परेशानी होती है। आम आदमी इसको समझ नहीं पाता यह भी सच है। इस बारे के जब वरिष्ठ पत्रकार डोगरा से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि सच्चाई है उम्र के साथ सोचने फर्क पड़ता है। हमने हमेशा लोगों की सेवा की लेकिन बावजूद हमें बदनामी ही मिली लेकिन हमने बहुत काम किया है। इसका एक मुख्य कारण कंडीशनिंग माना जाता है। इसका मतलब है कि यदि किसी सामान्य परिस्थिति में व्यक्ति के साथ कुछ दुर्घटना घट जाती है तो उस घटना के घटने के बाद अगली बार कोई खतरा न होने पर भी व्यक्ति को उन परिस्थितियों में पुनः घबराहट होती है। अध्ययनो में पाया गया है कि यदि माताओं में ये रोग हो तो बच्चों में इसके पाए जाने की संभावना बहुत होती है क्योकि बच्चे उन लक्षणों को सीख लेते है आत्मविश्वास की कमी और आलोचना का डर भी कई बार इस रोग को जन्म देते है। इसके अलावा यह जैविक या अनुवंशिक कारणों से भी हो सकता है।बातें कुछ भी बनाई जा सकती हैं लेकिन सच है की फेसबुक का गलत प्रयोग हो ही रहा है ?