स्वछंद जीवन


मधुरिता  

जिस पर इतराता है वो चोला तो छिन जायेगा
कुछ भी तो अपना नहीं है , जान कर अनजान बने रे !

मन को कितना ही संसार में घुमा फिरा ले
फिर भी आनंद नहीं पाता रे, फिर भी आनंद नहीं पाता रे ……
अपनी झूठी शान पर तू कितना बलि बलि जाता रे !

एक बार तो अपने प्रभु को प्रेम विभोर होकर
याद करके तो देख , तुझे वो धन मिलेगा
जो तुझे अनंत आनंद में ले जाएगा !

फिर ना भय होगा न गम होगा
बस तू ही तू, तू ही तू होगा !

कब शुरू करेगा अँधेरे से उजाले कि ओर जाना
जब मुट्ठी से रेत ज्यूँ फिसल जाएगा जीवन !

या अभी इंतज़ार है अभी और उम्र बड़ी हो जाए
तनिक और झूम लूँ इस हसीन वादियों में !

चेत रे गुमानी जग में फिर जन्म न मिले
की माया साथ न चले, रे माया साथ न चले !