प्रेमबाबू शर्मा
वर्ण व्यवस्था भले ही हमारी बनायी गयी नहीं है, पर इसकी प्रतिक्रिया-परिणति जो सामने आयी, उसमें कहीं न कहीं हम साक्षी के रूप में शामिल है। चार वर्णों की विषमतावादी सामाजिक वर्गीकरण का परिणाम कालांतर में इतना विस्मयकारी और विनाशजन्य होगा, निश्चितरूपेण उस काल में किसी को इसका अंदेशा नहीं रहा होगा। कहते हैं मनुष्य का स्वभाव नहीं बदलता! आज भी कहीं-न-कहीं, हम उसी पाशविकता का दर्शन करते रहते हैं।
शूद्र होने का दंश कभी-न-कभी झेलना ही पड़ रहा है। लेखक-निर्देशक संजीव जायसवाल इन्हीं सामाजिक कुरीतियों – विषमताओं को लेकर, हमारे शापित -घृणित अतीत का आईना लेकर आ रहे हैं-‘‘शूद्रः द राइजिंग’’।
सेंसर बोर्ड के पचड़े में छह माह तक पिसने के बाद ‘‘शूद्र’’ को यू/ए प्रमाणपत्र दिया गया। इसके लिए संजीव जायसवाल ने किस-किस तरह सेंसर वालों को समझाया, यह एक अलग ही रोचक आपबीती है। ‘‘शूद्र’’ का सिनेमा घरों में जो हश्र हो, फेसबुक, यू-ट्यूब और अन्य यांत्रिक माध्यमों द्वारा जबरदस्त प्रतिसाद मिल रहा है। लगभग 200 स्वयंसेवी संस्थाएं इनके साथ हैं।
संजीव जायसवाल ने इसके पहले ‘फरेब’ का निर्माण किया था। यह उनके निर्देशन में बनी पहली फिल्म होगी। ‘शूद्र’ में अधिकांश रंगमंच के कलाकार हैं, जिन्होंने चरित्रों को अपने में आत्मसात किया है। आरिफ राजपूत, श्रीधर दुबे, गौरी शंकर, महेश बलराज ‘‘शूद्र’’ के प्रमुख योद्धा हैं। इनके साथ किरण शरद, प्रवीण बेबी, शाजी चौधरी, सत्यम चौहान, प्रिया अनंत्रम, विजय शुक्ल, अनुराग शुक्ला, अनुराग मिश्र, अमित पंचानन इत्यादि ने बेहतर कार्य किया है। यह फिल्म बुद्धिजीवी वर्ग को उद्वेलित करेगी।
वर्ण व्यवस्था भले ही हमारी बनायी गयी नहीं है, पर इसकी प्रतिक्रिया-परिणति जो सामने आयी, उसमें कहीं न कहीं हम साक्षी के रूप में शामिल है। चार वर्णों की विषमतावादी सामाजिक वर्गीकरण का परिणाम कालांतर में इतना विस्मयकारी और विनाशजन्य होगा, निश्चितरूपेण उस काल में किसी को इसका अंदेशा नहीं रहा होगा। कहते हैं मनुष्य का स्वभाव नहीं बदलता! आज भी कहीं-न-कहीं, हम उसी पाशविकता का दर्शन करते रहते हैं।
शूद्र होने का दंश कभी-न-कभी झेलना ही पड़ रहा है। लेखक-निर्देशक संजीव जायसवाल इन्हीं सामाजिक कुरीतियों – विषमताओं को लेकर, हमारे शापित -घृणित अतीत का आईना लेकर आ रहे हैं-‘‘शूद्रः द राइजिंग’’।
इस फिल्म में श्री जायसवाल ने यह दिखाने की कोशिश की है कि आज पच्चीस आडंबर लिए फिर रहे हम कितने पाशविक थे। मनुष्य-मनुष्य का ही कैसे संहारक था। कैसे किसी के जीने मरने की कुंजी किसी और के हाथ में थी। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र- यह व्यवस्था सही मायने में सामाजिक विकास के लिए थी, या सोची-समझी कोई भयानक साजिश! ‘शूद्र’ में यह भी दिखाने की कोशिश की गयी है कि आज भी हमारी जीवन शैली भर बदली है, सोच में, बर्ताव में, बहुत अधिक सुधार नहीं हुआ है।
सेंसर बोर्ड के पचड़े में छह माह तक पिसने के बाद ‘‘शूद्र’’ को यू/ए प्रमाणपत्र दिया गया। इसके लिए संजीव जायसवाल ने किस-किस तरह सेंसर वालों को समझाया, यह एक अलग ही रोचक आपबीती है। ‘‘शूद्र’’ का सिनेमा घरों में जो हश्र हो, फेसबुक, यू-ट्यूब और अन्य यांत्रिक माध्यमों द्वारा जबरदस्त प्रतिसाद मिल रहा है। लगभग 200 स्वयंसेवी संस्थाएं इनके साथ हैं।
संजीव जायसवाल ने इसके पहले ‘फरेब’ का निर्माण किया था। यह उनके निर्देशन में बनी पहली फिल्म होगी। ‘शूद्र’ में अधिकांश रंगमंच के कलाकार हैं, जिन्होंने चरित्रों को अपने में आत्मसात किया है। आरिफ राजपूत, श्रीधर दुबे, गौरी शंकर, महेश बलराज ‘‘शूद्र’’ के प्रमुख योद्धा हैं। इनके साथ किरण शरद, प्रवीण बेबी, शाजी चौधरी, सत्यम चौहान, प्रिया अनंत्रम, विजय शुक्ल, अनुराग शुक्ला, अनुराग मिश्र, अमित पंचानन इत्यादि ने बेहतर कार्य किया है। यह फिल्म बुद्धिजीवी वर्ग को उद्वेलित करेगी।