पतिव्रत धर्म

वासुदेव शर्मा   

द्वारका, नई दिल्ली

सावित्री- सत्यवान

हिन्दुस्तान एक महान और विचित्र देश है तथा इस पवित्र धरा पर एक-से-एक वीर का जन्म हुआ है तो दूसरी ओर एक-से-एक विद्वान का भी । परंतु इन सबके पीछे शक्ति का जो स्त्रोत है, तप है, त्याग है – वह है हिन्दुस्तान की नारियाँ । वे नारियाँ सत्य की, अहिंसा की मूर्ति है तो दूसरी तरफ उनके पतिव्रत धर्म की अपनी एक अद्भुत आभा भी है । सावित्री ने अपने इसी पतिव्रत धर्म के कारण सत्यवान को यमराज के फंदे से छुड़ा लिया था, अनुसूइया ने त्रिदेवों – ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश को भी अपना शिशु बना लिया था । सीता जी के पतिव्रत धर्म के कारण त्रैलोक्य विजेता रावण को भी मृत्यु का मुख देखना पड़ा था । जिसका अंत हुआ था रामराज्य की स्थापना में ।


इसी पातिव्रत्य धर्म के सन्दर्भ में चापसिंह-सोमवती की सत्य घटना का वर्णन यहाँ पर किया जा रहा है-

मुगल बादशाह शाहजहाँ के यहाँ  चित्तौड़गढ़ का एक राजपूत नवयुवक चापसिंह सिपहसलार के पद पर कार्यरत था । एक दिन बादशाह शाहजहाँ का दरबार लगा था । बादशाह ने बात छेड़ी की पति के प्रति पूर्णतया समर्पित पतिव्रता नारी दुर्लभ हैं । तब चापसिंह से रहा नहीं गया उसने कहा जहांपना मेरी पत्नी सोमवती पतिव्रता नारी है और इतना ही नहीं हमारी अधिकतर नारियाँ ऐसी ही होती हैं । वहाँ सभा में उपस्थित शेरखान नामक युवक ने जो उसी के समकक्ष पद पर था जलभूनकर व्यंगोक्ति की कि यह काफिर झूठ बोलता है । यदि पूर्णतया समर्पित नारियां कहीं है तो वह हमारे मुसलमानों के पास हैं । यदि आलमपनाह आज्ञा दें तो मैं सोमवती को अपने कदमों में डाल कर उसे सहज ही अपनी बना सकता हूँ । साथ ही उस धूर्त ने मक्कारी से यह भी शर्त रखी कि जिसकी बात झूठी निकले उसे फांसी दे दी जाये । बादशाह ने यह शर्त मानकर दरबार स्थगित कर दिया ।

उधर धूर्त शेरखान ने शड़यंत्र का ताना-बाना बुन लिया । वह आगरा नगर की प्रसिद्ध अय्यांर दूती के पास पहुंचा और उसे भारी इनाम का प्रलोभन देकर अपने षड्यंत्र का हिस्सेदार बनाया । चालाक दूती आगरा से चलकर वेश बदल चित्तौड़गढ़ आई । उसने चापसिंह के घर-परिवार, खानदान आस-पडौस और रिश्तेदारियों का सम्पूर्ण विवरण प्राप्त कर लिया और सोमवती के महल पर पहुँच कर द्वार खटखटाया । वह चापसिंह की बुआ के रूप में अपना परिचय दे, सोमवती से घुलमिल गई । चापसिंह के माँ-बाप बचपन में गुजर गये थे अतः सोमवती को चापसिंह के परिवार के बारे में ज्यादा पता नही था । अय्यार और मक्कार दूती ने उसके महल की सम्पूर्ण रूप रेखा अपने दिमाग में बैठा और सम्पूर्ण चीजों की सूची तैयार करली । बस इतना काम रह गया कि सोमवती के संपूर्ण शरीर का जायजा कैसे ले? उसने सोमवती को स्नान कराने के लिये तैयार किया । लज्जाशील सोमवती ने पहले आनाकानी की लेकिन अपने पति की बुआ की लिहाज कर वह तैयार हो गई और मक्कार दूती सोमवती को नहलाने लगी । अपने हाथों से मैल धोने के बहाने लोटे भर-भर नहलाने लगी और उस दूती ने सोमवती के सम्पूर्ण शरीर का बारीकी से मुआयना कर उसके बांई जांघ पर एक तिल का निशान भी खोज निकाला ।

अपना कार्य सम्पन्न करने के बाद दूती ने वहां से चलने की आज्ञा चाही और भतीजे के प्रति मोह- प्रदर्शित करते हुये उसकी निशानी फोटो और कटारी भी मांग ली । बुआ के स्नेह को देखते सोमवती ने दे दी ।

दिल्ली पहुंचकर मक्कार दूती ने सारी बातें विस्तार से शेरखान को समझाई और चापसिंह की फोटो और कटार उसे सौंपकर भरपूर इनाम पाया । अति प्रसन्न हो और उत्साह से शेरखान दरबार में पहुंचा।  भरे दरबार में सोमवती का पतिव्रता धर्म खंडित किये जाने और उसके महल में पंद्रह दिन रहकर आने का वर्णन किया । साक्ष्य प्रस्तुत कर तहलका मचा दिया । चापसिंह सोच में पड़ गये । जब उस धूर्त शेरखान ने सोमवती के अंग-प्रत्यंगों का जिक्र कर बाई जांघ के ऊपर काले तिल का निशान बता कर फोटो और कटारी भी दिखला दी तो चापसिंह ने हथियार डाल दिये । बादशाह ने उसके लिये फांसी की सजा निर्धारित कर दी ।


रात के समय एक तेज ऊँट पर सवार चापसिंह चित्तौड़गढ़ अपने महल में पहुंचा जहाँ सोमवती ने बड़े उत्साह से अपने पति का स्वागत किया लेकिन चापसिंह ने उसे खरी खोटी सुनाई । सोमवती को समझते देर नहीं लगी कि माजरा क्या है ? उसने दूती द्वारा बुआ वाला सम्पूर्ण विवरण चापसिंह को कहा सुनाया । अपनी पत्नी की बात सुनकर चापसिंह अवाक् रह गया । उसने पत्नी को बताया कि उसे मृत्युदण्ड दिया जा रहा है तो सोमवती बोली-हे नाथ ! आप जहाँपनाह से पन्द्रह दिन की मोहलत मांग लें । मैं यत्न कर बादशाह के पास जाकर झूठ की पोल खोल दूंगी । आप धैर्य रखें । इस घोर आपत्तिकाल में एक पातिव्रत्य धर्म ही मेरा सहारा है । यदि मैं मन, वचन तथा कर्म से पतिव्रता हूँ तो भगवान भी हमारा साथ देंगे ।

चापसिंह ने मुंह-अंधेरे दिल्ली के लिए प्रस्थान किया ।उसने बादशाह से मोहल्लत ले ली । उधर पतिव्रता सोमवती नटिनी का वेश धारण कर अन्य नटिनियों के साथ अपने खेल के प्रदर्शन के बहाने बादशाह के दरबार जा पहुंची और अपना खेल प्रदर्शित करने की आज्ञा चाही । शेरखान को देखकर (क्योंकि उसका हुलिया चापसिंह ने सोमवती को बता दिया था) नटिनी बनी सोमवती ने उसे पहचान कर बादशाह से प्रार्थना की – हे आलम पनाह ! खेल प्रदर्शित करने से पहले मैं आपसे न्याय हेतु फरियाद कर रही हूँ कि आपके दरबार में मेरा एक ऐसा चोर बैठा है जिसने मुझसे घोड़ों की खरीद में बीस हजार रूपए की कमी रह जाने पर यह कह कर मांगे कि वह जल्दी ही लौटा देगा । कई बार कहने पर भी वह रकम मांगने पर आपकी धौंस देकर मुझे चुप करा देता है । बादशाह के यह पूछने पर की चोर कौन है? झट सोमवती ने शेरखान की ओर संकेत किया ।

शेरखान बोला-जहापनाह यह धूर्त नारी मेरा झूठा नाम लेकर मुझे नाहक बदनाम कर मेरी अवमानना कर रही है मैने तो इसे प्रथम बार आज ही देखा है । सोमवती कहती है कि बादशाह सलामत, यह शेरखान लोभ के कारण झूठ बोल रहा है । इसने यह भी कहा था कि बादशाह की फौज के लिए घोड़े खरीद रहा हूँ, ये पैसे ब्याज सहित भेज दूंगा । आज यह मुझे पहचानने से भी इंकार कर रहा है, जबकि मेरे पास पन्द्रह दिन तक मकान में रहा था । इसके बावजूद भी यदि यह मक्का की तरफ तीन कदम रखकर हाथ में कुरान लेकर सभा में कसम उठाले कि मैंने आज तक इसकी शक्ल नही देखी तो आप जो सजा चाहे मुझे दे सकते हैं । सोमवती की बात सुनकर बादशाह ने शेरखान से सोमवती की शर्त के बारे में पूछा । शेरखान कहता है मैं पवित्र कुरान की शपथ उठाने के बाद खुदा की कसम खाता हूँ कि मैंने न तो आज से पहले कभी इस नटिनी की शक्ल नहीं देखी तथा न ही इससे किसी प्रकार का कोई कर्ज लिया । कसम खाने के बाद बादशाह के पूछने पर सोमवती अपने आप को प्रकट कर बोली कि मैं वेद की कसम खाकर कहती हूँ कि मैने भी कभी भी शेरखान को पहले नहीं देखा तथा न ही इसको कोई कर्ज दिया है । दूसरे मै कोई नाचने वाली नहीं हूँ बल्कि मैं तो आपकी फौज के सिपाही चापसिंह की पत्नी हूँ तथा सोमवती मेरा नाम है । शेरखान के कच्चे चिट्ठे – दूती प्रसंग – सब विस्तार से बादशाह शाहजहाँ को सुना कर बोली कि अब इस बात का फैसला आप कीजिए कि जब आज से पहले इसने (शेरखान) मेरी शक्ल भी नहीं देखी थी तो इसने मेरा धर्म कैसे तोड़ दिया ? आप ने भी झूठ सच का अच्छी तरह फैसला किए बिना मेरे पति को फांसी की सजा सुना दी । सोमवती की बात सुनकर बादशाह को सारी सच्चाई का पता चल गया । जहापनाह भरे दरबार में शेरखान को झूठ बोलने तथा धोखा करने के अपराध में फांसी की सजा देते हैं  तथा उस दूती को आधी धरती में गाढ़ देने की आज्ञा देते है । चापसिंह को ससम्मान बरी कर इनाम के तौर पर बड़ा ओहदा प्रदान किया जाता है तथा भरे दरबार में सोमवती के पातिव्रत धर्म का पालन करने पर प्रसंसा  की जाती है । इस प्रकार एक धर्मपरायणा पतिव्रता बीरांगना ने अपने पति को बचाकर अपनी मांग के सिन्दूर की रक्षा ही नहीं कि बल्कि हिन्दूस्तान की नारियों का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया । भक्त कवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी अपनी अमर रचना रामचरितमानस में कहा है –

धीरज धर्म मित्र अरू नारी । आपद काल परिखिअहिं चारी ।
एकइ धर्म एक ब्रत नेमा । काँय बचन मन पति पद प्रेमा ।।

ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसूइया जी सीता जी को पातिव्रत्य धर्म का उपदेश देती हुई कह रही हैं – धैर्य, धर्म, मित्र और नारी – इन चारों की विपत्ति के समय ही परीक्षा होती है । शरीर, वचन और मन से पति के चरणों में प्रेम करना स्त्री के लिए बस यही एक ही धर्म, एक ही व्रत और एक ही नियम है ।

धन्य है यहाँ की नारियाँ तथा धन्य है हमारा हिन्दूस्तान ।