यह अब तक भले ही किसी को समझ में आया हो या नहीं कि जिंदगी को जीना एक कला है या कला का दूसरा नाम जिंदगी। लेकिन इतना जरूर है कि इंसानी फितरत में कला की विधा का हर आयाम अपने हर स्वरूप में हमेशा मौजूद होता है। जो, कभी किसी को गरीबी की गुमनाम गलियों से निकाल कर नेता के रूप में राष्ट्र के फलक पर ले जाकर स्थापित कर देता है, तो किसी को खेल के मैदान में ले जाकर खिलाड़ी के रूप में खड़ा कर देता है। कभी यह किसी को जज्बातों के जंजाल से निकालकर बहुत निर्मम किस्म का अपराधी बना डालता है, तो किसी को अपने भीतर की भावनाओं को जहीन शब्दों में ढालकर हर किसी की भावनाओं के प्रतीक के रूप में परोसकर दुनिया के दिलों में उतरने वाला गीतकार बना देता है
फिल्मों में गीतों का एक मजा होता है, गीतों के शब्द किसी व्यक्ति की भावना और ऐसी बहुत बाते कह डालती है,जो किसी के समक्ष कहने झिझकते है । मनोज कुमार कि फिल्मों में देश भक्ति गीतों से परिपर्ण रहे है। मेरे देश की धरती सोने उगले…उगले हीरो मोती…भारत का रहने वाला हॅू…भारत की बात सुनाता…कृगहन चली गीतकारों ने किसी को अपने भीतर की भावनाओं को जहीन शब्दों में ढालकर हर किसी की भावनाओं के प्रतीक के रूप में परोसकर दुनिया के दिलों में उतरने वाला गीतकार बना देता है.
गीतकारों ने गीतों के माध्यम से ऐसी बहुत सी बातें जो लोग जिंदगी में अपने भीतर की इस कला को वक्त रहते समझकर उसी के साथ उस रास्ते पर चल पड़ते हैं, वे शिखर का मुकाम हासिल कर ही लेते हैं हमारे सिनेमा में बोल की बारीकियों वाले गीतों से लेकर गीतकारों के नये-नये नामों का यह जो बदलाव दिखाई दे रहा है, इसी का परिणाम है कि गुलजार, रविंद्र जैन, शैलेंद्र, साहिर, जावेद अख्तर जैसे गीतकारों के बोल बाजार के बीच होने के बावजूद कम सुनाई दे रहे हैं, और संजय मासूम छाए हुए हैं, इरशाद कामिल वाह वाही बटोर रहे हैं, स्वानंद किरकिरे के बोल बिक रहे हैं और प्रसून जोशी की प्रज्ञा ज्वाला की तरह जल रही है। ‘कभी-कभी’ फिल्म के गीत ‘मैं पल दो पल का शायर हूं’ में साहिर लुधियानवी ने बिल्कुल सही लिखा था कि – ‘कल और आएंगे नगमों की खिलती कलियां चुनने वाले, मुझसे बेहतर कहने वाले तुमसे बेहतर सुनने वाले.. ।’
नये जमाने में कुछ बेहतर पाने की ललक वाले इन गीतकारों के जज्बे ने जैसे ही जोर मारना शुरू किया, तो नये जमाने की नई फिल्मों में नये बोल लेकर नये गीतकारों की पूरी की पूरी नई फौज नये तरीके से खड़ी हो गई। अमिताभ भट्टाचार्य, प्रसून जोशी, पीयूष मिश्रा, नीलेश मिश्रा, फरहान अख्तर, विशाल भारद्वाज, जलीस शेरवानी, सैयद कादरी, श्रीधर वी सांभरम, इरशाद कामिल, मयूर पुरी, जयदीप साहनी, जैसे बहुत सारे नये-नये ऐसे नाम हमें सुनने को मिल रहे हैं, जिनके लिखे गीत जमाने की लीक थोड़े से अलग हैं, लेकिन सीधे दिल में उतरते हैं। ये वे लोग हैं, जिनकी सबसे पहली चिंता पेट पालना नहीं, बल्कि सिर्फ और सिर्फ यही है कि हमारी फिल्मों में गीतों की अहमियत कुछ और बड़ी होनी चाहिए।
यह शायद किसी को भी बताने की जरूरत नहीं है कि बोल खूबसूरत हों तो गाने में चार चांद लग जाते हैं और इससे फिल्म की लोकप्रियता भी बढ़ जाती है। ‘राज-3’ फिल्म में संजय मासूम का गीत ‘रफ्ता-रफ्ता हो गई तू ही मेरी जिंदगी, रफ्ता-रफ्ता हो गई चारों तरफ रोशनी, सजदे में तेरे सर है, थोड़ा सा दिल में डर है, कैसे करूं मैं बयां, जानू ना जानू ना..’ इसकी सबसे बढ़िया बानगी है। पत्रकार से गीतकार बने संजय मासूम और इरशाद कामिल हों या प्रसून जोश, जयदीप साहनी या फिर अनुराग कश्यप- ये सारे के सारे लोग नया गीत और गद्य रच रहे हैं। कुछ साल पहले आई फिल्मों ‘रंग दे बसंती’ हो या ‘ब्लैक फ्राइडे’, अनुराग की लिखावट ने उनको सबसे अलग मुकाम दे दिया। ये नये गीतकार बीच बाजार में जा कर जिस तरह का दिल की गहराइयों में उतरने वाला गीत रच रहे हैं, वह बदले वक्त का गवाह है। ये वह पीढ़ी है जिसे देख कर यह कहना भले ही किसी को खराब लगे, लेकिन सच यही है कि बॉलीवुड में अब कई गुलजार पैदा हो गए हैं। इन नये गुलजारों के पास तमाम तरह के वगरे की भावनाओं की गहरी समझ है। ये लोग जानते हैं कि आवाम की आबो-हवा में फैली खुशबू को पकड़ने के लिए सिर्फ शब्द ही तो हैं, जो जिंदगी के र्जे-र्जे से गुजरते हुए अनुभव के तमाम लम्हों को बयां कर देने की तासीर रखते हैं। प्रसून जोशी ने बहुत सारे बढ़िया-बढ़िया गीत लिखे हैं, लेकिन ‘तारे जमीं पर’ का उनका लिखा ‘तू धूप है झम से बिखर, तू है नदी ओ बेखबर, बह चल कहीं उड़ चल कहीं, दिल खुश जहां, तेरी तो मंजिल है वहीं’ प्यारा-सा गीत तकलीफों की तपिश के तेवर की बदली हुई तस्वीर सा लगता है। जोशी कहते हैं, ‘तारे जमीं पर‘ फिल्म से पहले मैंने बच्चों के बारे में कभी सोचा भी नहीं था। पर इसके गीत लिखते समय मुझे अहसास हुआ कि कितनी सुंदर दुनिया है। उन्हीं की तरह कई फिल्में और उनके डायलॉग लिखने से लेकर नामी गीतकार बनने के बाद अब संसद में बैठे जावेद अख्तर कहते हैं, ‘मैं देख रहा हूं कि कठिन गीत लिखना तो कठिन है ही, पारदर्शी भाषा में ऐसे आसान गीत लिखना और कठिन है’ जो लोगों की जुबान पर चढ़ सकें। लेकिन नई पीढ़ी के गीतकार यह सब बहुत आसानी से कर रहे हैं, इसीलिए इनके गीत दिल में उतर जाते है।
जब वी मेट‘, ‘लव आजकल‘, ‘रॉकस्टार‘, ‘मौसम‘, ‘मेरे ब्रदर की दुल्हन‘ जैसी सफलतम फिल्मों के शानदार गीतों के रचयिता इरशाद कामिल कहते हैं – ‘ताजा दौर में संगीत की गहरी समझ रखने वाले भले ही जरा मायूस हों, लेकिन ये मायूसी लंबी नहीं है। हवा बहुत तेजी से बदल रही है और हमारे सिनेमा का गीत-संगीत फिर से अपनी मूल जड़ों की ओर रुख करने वाला है।‘ अमिताभ भट्टाचार्य का ‘एक मैं और एक तू‘ के लिए लिखा गीत ‘कितने की है जमीं, कितने का आसमां, बिकते हैं ये कहां, भर लेंगे जेबों में दुकानें वो सभी, चल चलते हैं वहां‘ जिंदगी के अनछुए पहलुओं पर अपना असर छोड़ने की कामयाबी की कहानी रचते हैं।
महेश भट्ट की फिल्म ‘राज-3’ के गीत ‘दीवाना कर रहा है, तेरा रूप सुनहरा, मुसलसल खल रहा है मुझको अब ये सेहरा, बता अब जाएं तो जाएं कहां’ लिखकर राशिद अली ने तकदीर के तिराहे पर खड़ी रूमानियत भरी जिंदगी की जो असली तस्वीर पेश की है, वह सिनेमा के नए रास्ते की गवाह है। लखनऊ से गायक बनने मुंबई आए, लेकिन गीतकार बन गए।
अमिताभ भट्टाचार्य के बारे में माना जा रहा है कि ‘इमोशनल अत्याचार‘, ‘एंवेई एंवेई‘ और ‘अली रे‘ जैसे अपने गीतों से फिल्मों के गीत लेखन क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ले आए हैं। भट्टाचार्य कहते हैं- मैंने पहले कभी गीत नहीं लिखे थे। मैं संगीत बनाता था और अभ्यास के लिए गीत लिखता था लेकिन फिर मैं गीतकार ही बन गया। किसी ताजी हवा के झोंके जैसे इन गीतकारों के गीतों से सजे इस गजब माहौल में यह एक बड़ा फायदा यह हुआ है कि बहुत- सी प्रतिभाओं के प्रदर्शन का रास्ता साफ हुआ और गीतों की एक नई बयार बहने लगी है। इन प्रतिभाओं में दरअसल कितनी ‘प्रतिभा’ है, यह हमारे सिनेमा का संसार तय कर ही रहा हैं। इस पूरे बदले हुए माहौल पर गुजरे जमाने के गीतकार नीरज की एक बात याद आती है, जिसमें उन्होंने कहा था कि कुछ दिन पहले फिल्म ‘एक विलेन’ में मिथुन का लिखा गीत ‘यूं मिले हो तुम मुझसे जैसे बंजारे को घर’ बहुत पसंद किया जा रहा है, यह मेरे लिए सुखद बात है। मैं मिथुन से कभी मिला नहीं हूं लेकिन गीत सुनकर लगता है कि इनमें अपार संभावनाएं हैं। नीरज को जो लगा, उन्होंने कहा। लेकिन सच्चाई भी यही है कि नये गीतकार नई शब्दावली गढ़कर गीतों के नये आयाम गढ़ रहे हैं। साहिर के बोल बिल्कुल सही थे कि वे पल दो पल के शायर थे। नये जमाने के गीतकारों की नई कतार नई कलियां चुनने आ गई हैं।
कौसर मुनीर – संईयारा संईयारा सितारों के जहां में मिलेंगे अब यारा इरशाद कामिल, आज दिन चढ्या जलिस शेरवानी चोरी किया रे जिया रश्मी सिंह,खामोशियां अहमद अनीस, मैं तैनु समझावां सईद कादरी,भीगे होंठ तेरे संदीप नाथ, सुन रहा है ना तू, रो रहा हूं मैं प्रसून जोशी, मस्तानों के झुंड, हवन करेंगे।