हीमोफिलिया फेडेरेशन (इंडिया) द्वारा प्रत्येक वर्ष विश्व हीमोफिलिया दिवस का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मार्गदर्शन में हुए इस कार्यक्रम के अंतर्गत “हीमोफिलिया केयर II – एक जागरूकता कार्यक्रम एवं आगे की रणनीति बनाने की पहल” विषय पर एक वर्कशॉप का आयोजन इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली में किया गया। कार्यक्रम में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की संयुक्त सचिव, भाप्रसे सुश्री वंदना गुरनानी का प्रमुख संबोधन रहा जिनके बाद स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव, भाप्रसे, श्री मनोज झालानी और एनएचएम के एमडी व एएस, भाप्रसे, श्री सी.के. मिश्रा ने भी अपने विचार साझा किये।
उन्होंने इस क्षेत्र में एक देखभाल प्रणाली विकसित करने पर भी ज़ोर दिया जिसके लिए वो दिल्ली और आसपास के इलाकों में हीमोटोलॉजिकल विकारों का एक डेटाबेस भी तैयार कर रही हैं। इस मुद्दे पर चर्चा करते हुए उन्होंने गंभीर हीमोटोलॉजिकल विकारों के लिए एक एकीकृत प्रबंधन प्रणाली (यूनिफाइड मैनेजमेंट सिस्टम) बनाने की जरूरत पर ज़ोर दिया। श्रीमती लेखी ने कहा कि, “हम हीमोफिलिया मरीजों के लिए बेंचमार्क अपंगता या विकलांगता की एक विशेष श्रेणी के अंतर्गत स्वीकृति हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं।” महिलाओं में हीमोफिलिया की समस्या को देखते हुए उन्होंने महिलाओं में रक्तस्राव विकारों की जांच हेतु एक परियोजना शुरु करने का संकेत भी दिया।
इस बीमारी के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए भारत सरकार के रसायन एवं उर्वरक मंत्री, माननीय श्री अनंत कुमार ने कहा कि, “यह भी एक चिंता का विषय है कि फैक्टर इंजेक्शन की बजाय एफएफपी ट्रांसफ्यूज़न होने के कारण 45 मरीज हेपेटाइटिस सी संक्रमण के शिकार हुए हैं। उच्च न्यायालय के निर्देशों के बावजूद कई राज्य ऐसी रणनीति बनाने में विफल रहे हैं जिससे पूरे वर्ष हीमोफिलिया मरीजों के लिए फैक्टर इंजेक्शन की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। यह उपेक्षित समूह पहले से कई मुसीबतों से जूझ रहा है। हमारी कमजोरियों की वजह से इन्हें होने वाला एफएफपी इंफ्यूज़न इनकी मुसीबतों में वृद्धि करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि, “लगभग हरेक हीमोफिलिया मरीज किसी शारीरिक अक्षमता का शिकार हो जाता है। भारतीय शहरों में शारीरिक अंगों के नुकसान की घटनाओं में कमी आई है और इसका अधिकतर श्रेय एचएफआई और इसके 80 चैप्टर्स को जाता है। इस क्षेत्र में अभी भी काफी कुछ किया जना बाकी है और हीमोफिलिया फेडेरेशन ऑफ इंडिया और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से इस अनुवांशिक विकार को नियंत्रित करने की दिशा में यह एक बेहद प्रगतिशील कदम है।”
भारत में हीमोफिलिया की वर्तमान स्थिति पर चर्चा करते हुए, हीमोफिलिया फेडेरेशन ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट डॉ. कंजक्षा घोष ने कहा कि, “वर्तमान में, भारत में कुल हीमोफिलिया जनसंख्या में से सिर्फ 15% की पहचान की जा सकी है और शेष मरीज़ इसके इलाज से वंचित हैं। अब तक देश में हीमोफिलिया के 16000 मरीजों का पंजीकरण हो पाया है, हालांकि हमें यह संदेह है कि हीमोफिलिया से पीड़ित लोगों की संख्या मौजूदा पंजीकृत मरीजों की संख्या से 7 गुना तक हो सकती है।”
दिल्ली क्षेत्र में इस बिमारी की उपचार व्यवस्था का ध्यान आसपास के मरीजों को इलाज मुहैया कराने पर केंद्रित है। इस बारे में बताते हुए सीएमसी वेल्लोर के हीमोटोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ अलोक श्रीवास्तव ने कहा कि, “दिल्ली में हीमोफिलिया पीड़ितों की पंजीकृत संख्या 2000 है और यहां दूसरे राज्यों से भी मरीजों का आगमन देखा जा रहा है क्योंकि उनके क्षेत्रों में इसके लिए मूल सुविधाएं और देखभाल व्यवस्था नहीं है। इस पहल के जरिये हम अधिक “हीमोफिलिया केयर सेंटर” शुरु करने का प्रस्ताव दे रहे हैं, ऐसे क्षेत्रों में जहां इसकी जांच, उपचार की प्रभावी प्रणाली तैयार की जा सके और मरीजों के लिए आसानी से हीमोफिलिया का व्यापक उपचार, समय पर उपलब्ध कराया जा सके। हम इस बीमारी का इलाज मरीज़ों की पहुंच में लाने और अत्याधुनिक सुविधाएं प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
देश में हीमोफिलया की मौजूदा परिस्थिति के बारे में बात करते हुए और सरकार के साथ मिलकर इस दिशा में किये जाने वाले उपयुक्त प्रयासों की वर्तमान जरूरत के बारे में डॉ. कंजक्षा घोष ने आगे कहा कि, “देश के कुछ हिस्सों में इस बीमारी पर नियंत्रण के लिए ढांचागत सुविधाओं की स्थापना और अच्छी गुणवत्ता के फैक्टर्स प्रदान करने के लिए हम सरकार की ओर से मिले सहयोग हेतु शुक्रगुज़ार हैं। लेकिन हमें राष्ट्रीय स्तर पर इस समस्या को हल करने की जरूरत है और इसलिए वृहद स्तर पर सरकारी हस्तक्षेप का आग्रह करते हैं, जो कि धनराशि की उपलब्धता, ढांचागत सुविधाओं के विस्तार, मुफ्त फैक्टर्स प्रदान करने और साथ ही हीमोफिलिया सहित रक्त संबंधी विकारों के नियंत्रण हेतु प्रशिक्षित कार्यदल तैयार करने के रूप में हो सकता है।”
वर्ल्ड फेडेरेशन ऑफ हीमोफिलिया (वार्षिक ग्लोबल सर्वे) द्वारा किये गये एक अध्ययन के मुताबिक विश्व भर के हीमोफिलिया मरीजों में से लगभग 50 प्रतिशत भारत में हैं और लगभग 70 प्रतिशतPwH (पीपल विथ हीमोफिलिया) के पास इसके उपचार की पर्याप्त उपलब्धता या मूल जानकारी मौजूद नहीं है। हीमोफिलिया का उपचार ना होने और इसकी मूल जानकारी के अभाव में मृत्यु का खतरा बेहद अधिक रहता है।
इस कार्यक्रम को बैक्साल्टा बायोसाइंसेज़ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और नोवो नॉर्डिस्क जैसी प्रमुख फार्मा कंपनियों का समर्थन भी हासिल हुआ।