नई दिल्ली, 10 अक्टूबर 2024 (गुरुवार) – द्वारका सेक्टर 10 स्थित डीडीए ग्राउंड में आयोजित भव्य रामलीला के
आठवें दिन आज सांसद कमलजीत सहरावत ने बतौर मुख्यातिथि सम्बोधन में कहा कि हमें जीवन में
मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम के आदर्शो का अनुसरण करना चाहिए! सांसद कमलजीत ने द्वारका श्री रामलीला सोसाइटी द्वारा आयोजित भव्य रामलीला के लिए मुख्य सरंक्षक राजेश गहलोत सहित पूरी टीम की भूरि भूरि प्रशंसा की! इस अवसर पर महामंडलेश्वर डॉ इंद्रदेव महाराज, डी सी पी निशांत गुप्ता, एस एच ओ सुबोध, प्रतिपक्ष नेता विजेंद्र गुप्ता की उपस्थिति ने रामलीला की गरिमा बढ़ाई!
आठवीं रात्रि में अद्भुत दृश्य देखने को मिले। रामायण के महान पात्रों की संघर्ष गाथा, शौर्य, और धर्म की स्थापना का जीवंत प्रदर्शन किया गया। इस आयोजन का नेतृत्व और संरक्षण मुख्य संरक्षक श्री राजेश गहलोत ने किया, जिन्होंने न केवल रामलीला का आयोजन सफलतापूर्वक करवाया, बल्कि दर्शकों को रामचरितमानस से जुड़े विशेष उपदेश भी दिए।
विभीषण की शरणागति से राम की महानता का प्रकट होना
रामलीला की इस रात्रि की शुरुआत विभीषण के शरणागत होने के भावपूर्ण दृश्य से हुई। विभीषण, जो रावण के भाई होने के बावजूद धर्म और सत्य के पक्षधर थे, जब प्रभु राम की शरण में आते हैं, तो राम उन्हें बिना किसी संदेह के स्वीकार करते हैं। इस दृश्य ने प्रभु राम की करुणा और स्नेह को प्रकट किया, जिन्होंने सदैव अपने शत्रुओं को भी सम्मान और शरण दी। श्री राजेश गहलोत ने इस अवसर पर कहा, “राम का चरित्र हमें सिखाता है कि सच्चाई और धर्म की राह पर जो भी चलता है, उसे कभी अकेला नहीं छोड़ा जाता। विभीषण की शरणागति एक संदेश है कि जब हम ईश्वर की शरण में जाते हैं, तो सभी संकट दूर हो जाते हैं।”
सेतु बंधन: मानव प्रयास और देव कृपा का मिलन
इसके बाद भगवान राम और उनकी सेना द्वारा समुद्र पर सेतु (पुल) का निर्माण किया गया, जिसे आज तक “रामसेतु” के नाम से जाना जाता है। इस दृश्य ने दिखाया कि कैसे राम और उनकी वानर सेना ने न केवल अपने साहस का प्रदर्शन किया, बल्कि भगवान शिव और समुद्र देवता की कृपा से अद्भुत चमत्कार भी किया। सेतु बंधन के इस भावुक दृश्य ने दर्शकों को यह सिखाया कि जब मानव प्रयास और देव कृपा मिलती है, तो असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं।
अंगद-रावण संवाद: धर्म और अहंकार का टकराव
अगला दृश्य अंगद और रावण के बीच संवाद का था, जिसमें अंगद ने रावण को समझाने का प्रयास किया कि उसे अधर्म का मार्ग छोड़कर प्रभु राम की शरण में आना चाहिए। रावण के अहंकार और अंगद के धैर्य और शक्ति का प्रदर्शन दर्शकों को गहरे तक प्रभावित करने वाला था। श्री राजेश गहलोत ने इस प्रसंग पर प्रकाश डालते हुए कहा, “रावण के अहंकार ने उसे विनाश की ओर ले गया, जबकि अंगद जैसे योद्धा हमें सिखाते हैं कि धर्म की राह पर चलते हुए हमें कभी घबराना नहीं चाहिए।”
लक्ष्मण-मेघनाथ युद्ध: शौर्य और वीरता का प्रतीक
इसके बाद लक्ष्मण और रावण के पुत्र मेघनाथ के बीच हुए भीषण युद्ध का दृश्य दिखाया गया। लक्ष्मण की वीरता और मेघनाथ की मायावी शक्ति का संग्राम अत्यंत रोचक था। इस युद्ध ने दर्शकों को यह सिखाया कि जब हम धर्म की रक्षा के लिए खड़े होते हैं, तो हमें कितनी भी कठिनाई का सामना क्यों न करना पड़े, हमें डटकर खड़ा रहना चाहिए।
लक्ष्मण मूर्छा और हनुमान जी द्वारा संजीवनी बूटी लाना
इस युद्ध में लक्ष्मण के मूर्छित होने का दृश्य अत्यंत हृदयस्पर्शी था। जब लक्ष्मण मूर्छित हो गए, तो भगवान हनुमान को संजीवनी बूटी लाने के लिए भेजा गया। हनुमान जी की शक्ति, साहस, और समर्पण का यह दृश्य बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी को प्रभावित कर गया। हनुमान जी की गति और शक्ति का जीवंत प्रदर्शन रामलीला का मुख्य आकर्षण रहा।
रामचरितमानस के उपदेश और श्री राजेश गहलोत का संदेश
श्री राजेश गहलोत ने इस मौके पर रामचरितमानस का उपदेश देते हुए कहा, “हनुमान जी का यह प्रसंग हमें सिखाता है कि जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं, हमें साहस और समर्पण से उनका सामना करना चाहिए। हनुमान जी की निष्ठा और भगवान राम के प्रति उनकी भक्ति हमें यह बताती है कि जब हम पूरे मन से किसी कार्य में लग जाते हैं, तो सफलता अवश्य मिलती है।”
मुख्य संरक्षक श्री राजेश गहलोत ने रामलीला के इन प्रसंगों पर ध्यान केंद्रित करते हुए कहा कि रामचरितमानस न केवल धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि यह जीवन जीने की कला भी सिखाता है। उन्होंने कहा, “आज के समय में जब लोग नैतिकता और धार्मिकता से दूर हो रहे हैं, तब हमें राम के चरित्र से प्रेरणा लेकर सत्य, धर्म, और न्याय के मार्ग पर चलना चाहिए। रामलीला सिर्फ एक नाटक नहीं है, यह हमारे जीवन के लिए एक मार्गदर्शक है।”
इस भव्य आयोजन में हजारों की संख्या में लोग उपस्थित थे, जिन्होंने रामलीला के हर दृश्य का आनंद लिया और राम के आदर्शों को अपने जीवन में उतारने का संकल्प लिया। आयोजक मंडल और स्वयंसेवकों ने इस रामलीला को सफल बनाने के लिए कड़ी मेहनत की, जिसका परिणाम एक अद्वितीय और प्रेरणादायक प्रदर्शन के रूप में सामने आया।
श्री गहलोत के नेतृत्व में यह रामलीला द्वारका क्षेत्र में धर्म, संस्कृति और समाज के प्रति समर्पण का एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत कर रही है।