राम-जानकी संस्थान, आरजेएस,नई दिल्ली और तपसिल जाति आदिवासी प्रकटन्न सैनिक कृषि बिकाश शिल्पा केंद्र (टीजेएपीएस केबीएसके), हुगली पश्चिम बंगाल सकारात्मक पत्रकारिता सकारात्मक भारत आंदोलन की पांचवीं वर्षगांठ पर संतों,शहीदों, क्रांतिकारियों और महापुरुषों के आदर्श विचारों के प्रति भारत के 25 राज्यों से जुड़े लोगों को जागरूक कर रहे हैं और पूर्वजों की स्मृति में महापुरुषों के नाम सम्मान देने जा रहे हैं।
आरजेएस के राष्ट्रीय संयोजक उदय कुमार मन्ना ने बताया कि शहीद ए आजम भगत सिंह की 113वीं जयंती पर 28 सितंबर 2020 को आरजेएस फैमिली पाॅजिटिव मीडिया और फेसबुक फ्रेंड्स के लोग श्रद्धांजलि देंगे ।लोग अपने संदेश लिखकर या ऑडियो-विडियो संदेश भेज रहे हैं। 28 सितंबर को सायं आठ बजे उदय मन्ना फेसबुक लाईव शो में जुड़ेंगे और शहीद भगत सिंह पर विशेष चर्चा की जाएगी। इंदौर से आरजेएस फैमिली में जुड़े राहुल इंक्लाब ने कहा कि आज हम जिस आजादी के साथ सुख-चैन की जिन्दगी गुजार रहे हैं, वह असंख्य जाने-अनजाने देशभक्त शूरवीर क्रांतिकारियों के असीम त्याग, बलिदान एवं शहादतों की नींव पर खड़ी है। ऐसे ही अमर क्रांतिकारियों में शहीद भगत सिंह शामिल थे, जिनका नाम लेने मात्र से क्रांति की ललक जाग जाती है।श्री राहुल कई शहीद स्थलों और स्मारकों पर जा चुके हैं। शहीद भगत सिंह के बारे में उन्होंने विस्तार से बताया कि भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर, 1907 को पंजाब के जिला लायलपुर के बंगा गाँव (पाकिस्तान) में एक परम देशभक्त परिवार में हुआ। सरदार किशन सिंह के घर श्रीमती विद्यावती की कोख से जन्मे इस बच्चे को दादा अर्जुन सिंह व दादी जयकौर ने ‘भागों वाला’ कहकर उसका नाम ‘भगत’ रख दिया। बालक भगत को भाग्य वाला बच्चा इसीलिए माना गया था, क्योंकि उसके जन्म लेने के कुछ समय पश्चात् ही, स्वतंत्रता सेनानी होने के कारण लाहौर जेल में बंद उनके पिता सरदार किशन सिंह को रिहा कर दिया गया और जन्म के तीसरे दिन दोनों चाचाओं को जमानत पर छोड़ दिया गया।
भगत सिंह करीब बारह वर्ष के थे जब जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड हुआ था। इसकी सूचना मिलते ही भगत सिंह अपने स्कूल से लगभग 50 किलो मीटर पैदल चलकर जलियाँवाला बाग पहुँच गये। और वहां से मिट्टी लेकर आ गए फिर असहयोग आंदोलन में जुट गए गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन वापस लेने के बाद नेशनल कॉलेज में क्रान्तिकारियों के संपर्क में आएं और उन्होंने जुलूसों में भाग लेना प्रारम्भ किया तथा कई क्रांतिकारी दलों के सदस्य बने। उनके दल के प्रमुख क्रांतिकारियों में चन्द्रशेखर आजाद, सुखदेव, राजगुरु इत्यादि थे। काकोरी एक्शन में क्रांतिकारियों को फाँसी व 16 अन्य को कारावास की सजाओं से भगत सिंह इतने अधिक उद्विग्न हुए कि उन्होंने 1928 में अपनी पार्टी नौजवान भारत सभा का हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन में विलय कर दिया और उसे एक नया नाम दिया हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन।
भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अफसर जेपी सांडर्स को मारा था। इसमें चन्द्रशेखर आज़ाद ने उनकी पूरी सहायता की थी। क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने अलीपुर रोड दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेंट्रल असेंबली के सभागार में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिये बम और पर्चे फेंके थे। भगत सिंह क्रांतिकारी देशभक्त ही नहीं बल्कि एक अध्ययनशीरल विचारक, कलम के धनी, दार्शनिक, चिंतक, लेखक, पत्रकार और महान मनुष्य थे। उन्होंने 23 वर्ष की छोटी-सी आयु में फ्रांस, आयरलैंड और रूस की क्रांति का विषद अध्ययन किया था। हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, बंगला और आयरिश भाषा के मर्मज्ञ चिंतक और विचारक भगतसिंह भारत में समाजवाद के पहले व्याख्याता थे। भगत सिंह अच्छे वक्ता, पाठक और लेखक भी थे। उन्होंने ‘अकाली’ और ‘कीर्ति’ दो अखबारों का संपादन भी किया। जेल में भगत सिंह ने करीब दो साल रहे। इस दौरान वे लेख लिखकर अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते रहे। जेल में रहते हुए उनका अध्ययन बराबर जारी रहा। उस दौरान उनके लिखे गए लेख व परिवार को लिखे गए पत्र आज भी उनके विचारों के दर्पण हैं। अपने लेखों में उन्होंने कई तरह से पूंजीपतियों को अपना शत्रु बताया है। उन्होंने लिखा कि मजदूरों का शोषण करने वाला चाहें एक भारतीय ही क्यों न हो, वह उनका शत्रु है। उन्होंने जेल में अंग्रेज़ी में एक लेख भी लिखा जिसका शीर्षक था ‘मैं नास्तिक क्यों हूं’? जेल में भगत सिंह व उनके साथियों ने 64 दिनों तक भूख हड़ताल की। उनके एक साथी यतीन्द्रनाथ दास ने तो भूख हड़ताल में अपने प्राण ही त्याग दिए थे।
23 मार्च 1931 को इनके दो अन्य साथियों, राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया गया।