मधुरिता
मानव अनंत आनंद चाहता है पर वह यह नहीं जनता की उसे कैसे और कहाँ से प्राप्त करें |
वह इन्द्रिय सुख को ही विशुद्ध आनंद समझ बैठता है |
इसलिए वह इहलोक और परलोक की आकर्षक वस्तुओं की कामना करता है |
अध्यात्म वो प्रकाश पुंज है जो हमें अनंत आनंद की अनुभूति करा सकता है |
अपने भीतर के चेतन तत्व को जानना, मनना और दर्शन करना हो अपने आप के बारे में जानना या आत्मप्रज्ञ हो कर ही हमें ईश्वर की अनुभूति होती है यही – अध्यात्म है|
जानना- जो यह जनता है सब कुछ भगवान का है |
मनना – जी यह मानता है मैं भी भगवान का अंश हूँ |
दर्शन – जो यह देखता है – शियाराम मैं सब जग जानू | करहु प्रणाम जोरि जुग पानी ||