22 अगस्त से लोक संगीत सम्मेलन


प्रेमबाबू शर्मा

नदियां किसी भी राष्ट्र की जीवन रेखा हैं और भारत को इस बात का गौरव है कि पूरे देश में नदियां कलरव करती हुई बहती है । अपने उदगम और अपने मार्ग के बारे में हर नदी की अपनी अलग कहानी है। हर नदी के गुणगान करने वाले उपाख्यान हैं तो उसकी विनाशकारी शक्तियों के बारे में आख्यान है। नदियों की महत्ता को प्रदर्शित करने के लिये इंडिया हैबिटेट सेंटर की ओर से इस साल आयोजित होने वाले लोक संगीत सम्मेलन में नदियों के धुन गूंजेंगे। इंडिया हैबिटेट सेंटर के स्टीन सभागार में 22 और 23 अगस्त को आयोजित होने वाले इस महोत्सव का मुख्य विषय हैं ‘‘नदियों के धुन।’’

नदी के प्रेम तथा नदी के जीवन का जश्न मनाती प्रकृति पर आधारित लोक गीतों के लिये महत्वपूर्ण विषय नदियां हैं। गांव के लोग अपनी आजीविका के मुख्य स्रोत के रूप में नदियों की पूजा करते हैं। गांव के लोगों के जीवन का एक बड़ा हिस्सा नदियों के पास ही गुजरता है और इसलिये आनंद, हर्ष और हर्ष शौक से भरे कई गीतों के अलावा रोमांटिक गीत भी नदियों को लेकर बने हैं। जब नदियों में बाढ़ आती है तो फसल नष्ट हो जाती है, मवेशी बह जाते हैं और संपति बर्बाद हो जाती है। इसलिये लोक गीतों में नदियों की रचनात्मक और विनाशकारी शक्तियों को दर्शाया गया है। ये लोक गीत ज्ञान के भंडार भी हैं क्योंकि जब ‘‘हरित क्रांति’’ की कोई सुगबुगाहट नहीं थी और जब ग्लोबल वार्मिंग से मुकाबला करने की कोई बात नहीं होती थी तब भी लोक कलाकारों ने अपने गीतों में पर्यावरण, संरक्षण और अन्य समकालिन मुद्दों का जिक्र किया।

दिल्ली से सुधा रघुरामन, कश्मीर से गुलजार अहमद गैनी, असम से नजरूल इस्लाम, बंगाल से रितुपर्णा बनर्जी और कुमाऊं से बसंती देवी जैसे लोक गायक एवं लोक कलाकार इस साल के लोक संगीत सम्मेलन में गंगा, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा, पेश कृष्णा कावेरी तथा भारत के अन्य नदियों की गाथा को गीतों के जरिये पेश करेंगे।

इस संगीतमय प्रयास की वर्शों की निरंतरता तथा संगीत के प्रति प्यार के कारण न केवल देश  भर में बल्कि विदशों में भी लोक परम्पराओं की लोकप्रियता बढ़ी है और उसकी सराहना हुयी है। इस समारोह के मुख्य आकर्षणों में असम और गढ़वाल के गीत तथा नर्मदा नदी तथा कष्मीर की नदियों पर लिखे गये गीत एवं कवितायें षामिल होंगे।