कला जीवन से जुड़े विषयों की अभिव्यक्ति का माध्यम है, पर जब कलाकार संवेदनशील साहित्यकार भी हो तो उसकी अभिव्यक्ति और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है और कला सिर्फ कला न रहकर शाश्वत सृजन का माध्यम बन जाती है। जाने-माने साहित्यकार वीरेन्द्र गोयल द्वारा बनाए गए रेखाचित्रों की प्रदर्शन 23 से 28 मई तक ललित कला अकादमी में लग रही है। प्रदर्शनी में प्रदर्शित रेखाचित्रों का मुख्य विषय समय और शरीर है। साहित्य के क्षेत्र में वीरेन्द्र गोयल एक जाना-माना नाम हैं पर रेखाचित्रों के माध्यम से अपने मन की अभिव्यक्ति को कागज और कैन्वस पर उतारना भी उन्हें खूब आता है।
सामान्य पैन, पैंसिल, कागज और स्याही इत्यादि का प्रयोग कला समीक्षकों के लिए असहज हो सकता है, पर यह चित्रकार की अपनी पसंद का मामला है और इस आधार पर उसके अनुभवों को परखना समीक्षात्मक दृष्टि से ठीक नहीं होगा। बात अनुभव की है और अनुभव के मामले में वीरेन्द्र गोयल के रेखाचित्र स्वयं अपने समय की बात कहते प्रतीत होते हैं। चित्रकला के क्षेत्र में इनका सफर कालेज के दिनों से शुरू हुआ था। अपने पिता से प्रेरणा पाकर वीरेन्द्र गोयल रेखाचित्र बनाने में भी अपना समय व्यतीत करते थे और जो भी विषय उन्हें अपने आसपास दिखाई देते थे उनमें अपनी कल्पना और प्रतिभा के रंग भर देते थे।
वीरेन्द्र गोयल के चित्रों का रिकार्ड 1983 से प्राप्त होता है। वह अशांत समय था और उसका प्रभाव उनके चित्रों में दिखाई देता है। क्रोध और गुस्से की अभिव्यक्ति को दर्शाते रेखाचित्र युवा चित्रकार पर सामाजिक प्रभाव का प्रत्यक्ष उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। इसके बाद के चित्रों में ब्रह्मांड और मनुष्य के आपसी मेल की दास्तां कहते हैं। वीरेन्द्र गोयल के द्वारा इस विषय पर बनाए गए चित्र अत्यंत संजीदा है और बदलते समय और तकनीक का प्रभाव उनके मन पर स्पष्ट दिखाई देता है। इसके बाद के चित्रों में जीवन और प्रकृति का स्वरूप दिखाई देता है। डर, भय से ग्रसित एकाकी चेहरे वीरेन्द्र गोयल की समसामायिक विचारधारा को दर्शाती है। जैसा कि पहले ही कहा है साहित्यकार होना स्वयं एक बड़ी उपलब्धि है और जब साहित्यकार चित्रों के माध्यम से अपने मन को खोलता है तो वह सार्वभौमिक और शाश्वत अभिव्यक्ति बन जाती है। मनुष्य जीवन, प्रकृति और विभिन्न प्राणियों का प्रदर्शन वीरेन्द्र गोयल के साहित्यिक पहलू को उनकी चित्रकला से जोड़ता है।
वीरेन्द्र गोयल के रेखाचित्रों को पहली बार प्रदर्शित किया जा रहा है। जीवन के विविध पहलुओं को सहजता से अभिव्यक्त करते ये रेखाचित्र पहली ही नज़र में हर किसी को अपनी और आकर्षित कर लेते हैं। वीरेन्द्र गोयल चित्रकार होने के साथ-साथ एक गुणी फोटोग्राफर भी हैं।
वीरेन्द्र गोयल का जन्म 1960 में हरियाणा में हुआ था। इनके पिता एक जाने-माने अधिवक्ता थे और माता जी एक गृहणी थी। चित्रकार के जीवन पर इनके माता-पिता का प्रभाव रहा और चित्रकला के प्रति प्रेम इन्हें अपने पिता से धरोहर में मिला है।