शनि जयन्ती – सभी कष्टों से मुक्ति

8-06-2013 शनि जयन्ती है साथ में अमावस्या भी है दिनाक भी ८ ही है जो शनि देव का अंक है ,–आप सभी से निवेदन है की पूरा आर्टिकल पढे .ऐसे पूजा करने और उपाए करने से आप सभी को अवश्य लाभ होगा ये मेरा पूर्ण विश्वास है …..और विश्वास में ही शक्ति है —-पंडिता नीना शर्मा

शनि पक्षरहित होकर अगर पाप कर्म की सजा देते हैं तो उत्तम कर्म करने वाले मनुष्य को हर प्रकार की सुख सुविधा एवं वैभव भी प्रदान करते हैं। शनि देव की जो भक्ति पूर्वक व्रतोपासना करते हैं वह पाप की ओर जाने से बच जाते हैं जिससे शनि की दशा आने पर उन्हें कष्ट नहीं भोगना पड़ता।



शनिवार व्रत की विधि (Shanidev Vrat Vidhi)

शनिवार का व्रत यूं तो आप वर्ष के किसी भी शनिवार के दिन शुरू कर सकते हैं परंतु श्रावण मास में शनिवार का व्रत प्रारम्भ करना अति मंगलकारी है । इस व्रत का पालन करने वाले को शनिवार के दिन प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके शनिदेव की प्रतिमा की विधि सहित पूजन करनी चाहिए। शनि भक्तों को इस दिन शनि मंदिर में जाकर शनि देव को नीले लाजवन्ती का फूल, तिल, तेल, गुड़ अर्पण करना चाहिए। शनि देव के नाम से दीपोत्सर्ग करना चाहिए।

शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा के पश्चात उनसे अपने अपराधों एवं जाने अनजाने जो भी आपसे पाप कर्म हुआ हो उसके लिए क्षमा याचना करनी चाहिए। शनि महाराज की पूजा के पश्चात राहु और केतु की पूजा भी करनी चाहिए। इस दिन शनि भक्तों को पीपल में जल देना चाहिए और पीपल में सूत्र बांधकर सात बार परिक्रमा करनी चाहिए। शनिवार के दिन भक्तों को शनि महाराज के नाम से व्रत रखना चाहिए।

शनिश्वर के भक्तों को संध्या काल में शनि मंदिर में जाकर दीप भेंट करना चाहिए और उड़द दाल में खिचड़ी बनाकर शनि महाराज को भोग लगाना चाहिए। शनि देव का आशीर्वाद लेने के पश्चात आपको प्रसाद स्वरूप खिचड़ी खाना चाहिए। सूर्यपुत्र शनिदेव की प्रसन्नता हेतु इस दिन काले चींटियों को गुड़ एवं आटा देना चाहिए। इस दिन काले रंग का वस्त्र धारण करना चाहिए। अगर आपके पास समय की उपलब्धता हो तो शनिवार के दिन 108 तुलसी के पत्तों पर श्री राम चन्द्र जी का नाम लिखकर, पत्तों को सूत्र में पिड़ोएं और माला बनाकर श्री हरि विष्णु के गले में डालें। जिन पर शनि का कोप चल रहा हो वह भी इस मालार्पण के प्रभाव से कोप से मुक्त हो सकते हैं। इस प्रकार भक्ति एवं श्रद्धापूर्वक शनिवार के दिन शनिदेव का व्रत एवं पूजन करने से शनि का कोप शांत होता है और शनि की दशा के समय उनके भक्तों को कष्ट की अनुभूति नहीं होती है।इस सप्ताह शनिवार, 8 जून 2013 को शनि जयंती है। ज्योतिष को मानने वाले लोगों के लिए यह बहुत खास दिन है। इस दिन यदि सही उपाय कर लिए जाए तो जल्दी किस्मत बदल सकती है। इस वर्ष शनि जयंती पर कई दुर्लभ योग बन रहे हैं।


इस वर्ष शनि जयंती शनिवार के ही दिन आ रही है और यह बहुत दुर्लभ योग है। शनि के दिन शनि जयंती कई शुभ फल देने वाली है। शनि जयंती 8 जून को आ रही है। न्यूमरोलॉजी के अनुसार शनि का अंक है 8 और 8 तारीख को ही शनि जयंती है। यह भी एक दुर्लभ योग है। अत: इस दिन अंक 8 वालों शनि देव को मनाने के लिए विशेष उपाय अवश्य करने चाहिए। अंक 8 के साथ ही अन्य अंकों के लोगों को भी इस शुभ अवसर का पूर्ण लाभ उठाना चाहिए।

शनि की साढ़ेसाती या शनि की ढय्या के साथ यदि कुंडली में कोई शनि दोष हो तो उसका निराकरण 8 जून को अवश्य करें।

कौन हैं शनि देव?
सभी नौ ग्रहों में शनि देव का स्थान सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। शनि देव को न्यायाधीश का पद प्राप्त है, अत: इनके द्वारा ही समस्त जीवों को उनके कर्मों का शुभ-अशुभ फल प्रदान किया जाता है। जिस व्यक्ति के जैसे कर्म होते हैं ठीक वैसे फल शनि प्रदान करते हैं। ज्योतिष के अनुसार शनि मकर और कुंभ राशि का स्वामी माना जाता है। शनि देव को अर्पित की जाने वाली वस्तुओं में लौहा, तेल, काले-नीले वस्त्र, घोड़े की नाल, काली उड़द, काले रंग का कंबल शामिल हैं।

कब हुआ शनि का जन्म
शास्त्रों के अनुसार हिन्दी मास ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को शनिदेव का जन्म रात के समय हुआ था।


शनि के अन्य नाम
शनि अत्यंत धीमे चलने वाला ग्रह है और इसे सूर्य की परिक्रमा करने के लिए ३० वर्ष लगते हैं। इसलिए शनि को मदं भी कहते है। शनै:-शनै: अर्थात धीरे-धीरे चलने के कारण इसको शनैश्चराय भी कहते है। यह यमराज के बड़े भाई है इसलिए इन्हें यमाग्रज भी कहते हैं। रविपुत्र, नीलांबर, छायापुत्र, सूर्यपुत्र आदि अनेक नाम है।

शनि एक ऐसा नाम है जिसे पढ़ते-सुनते ही लोगों के मन में भय उत्पन्न हो जाता है। ऐसा कहा जाता है कि शनि की कुदृष्टि जिस पर पड़ जाए वह रातो-रात राजा से भिखारी हो जाता है और वहीं शनि की कृपा से भिखारी भी राजसी सुख भोगता है। शनि के प्रकोप से कोई नहीं बच सका है। कई ऐसी घटनाएं हैं जहां शनि की कुदृष्टि पडऩे पर भारी संकट उत्पन्न हो गया।


शनिदेव का शरीर कांति इंद्रनीलमणि के समान है। स्वर्णमुकुट एवं नीले वस्त्र धारण करने वाले शनि देव का वाहन कौआ है। शनिदेव की की चार भुजाएं बताई गई हैं। एक हाथ में धनुष, एक हाथ में बाण, एक हाथ में त्रिशूल और एक हाथ में वरमुद्रा सुशोभित है। शनिदेव का तेज करोड़ों सूर्य के समान अति तेजस्वी बताया गया हैं।

पुराणों के अनुसार सूर्यपुत्र शनिदेव का विवाह चित्ररथ की परम तेजस्वी, सती-साध्वी कन्या से हुआ। विवाह के बाद जब शनिदेव की पत्नी ऋतुस्नान करके पुत्र प्राप्ति की कामना से उनके पास पहुंची तब शनिदेव श्रीकृष्ण की भक्ति मग्न थे। इसी वजह से पत्नी की ओर नहीं देख सके। काफी समय तक शनिदेव की पत्नी ने प्रतिक्षा की लेकिन शनि ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया, इसका उनकी पत्नी अतिक्रोधित हो गई।


क्रोधवश चित्ररथ की पुत्री ने अपने पति शनिदेव को श्राप दे दिया कि वे जिसे पर भी नजर डालेंगे वह भस्म हो जाएगा। थोड़े समय बाद जब उनकी पत्नी का क्रोध शांत हुआ तो उन्हें क्रोधवश दिए श्राप का पश्चाताप हुआ परंतु श्राप निष्फल नहीं हो सका। और तभी से शनिदेव अपनी नजरें नीचे की ओर रखते हैं ताकि किसी निर्दोष का बुरा ना हो।

शास्त्रों के एक योग बताया गया है इसे शनि का रोहिणी-शकट भेदन कहते हैं। इस योग के कारण पृथ्वी पर बारह वर्षों तक घोर त्राही-त्राही मच सकती है और सभी जीवों का जीवित रहना भी मुश्किल हो जाता है। यह योग महाराजा दशरथ के समय में आया था। इस योग के प्रभाव से राज्य की प्रजा बेहाल हो गई। राजा ने बहुत तरह से राज्य में आए संकट से निपटने के प्रयास किए परंतु सभी निष्फल हुए।


जब राजा दशरथ के ज्योतिषियों और विद्वानों ने बताया कि यह योग शनिदेव की वजह से आया है। यदि शनि ने अपना प्रकोप समाप्त नहीं किया तो पूरी पृथ्वी से जीवन समाप्त हो जाएगा। तब राजा दशरथ पृथ्वी और अपनी प्रजा के संकट को दूर करने के लिए शनि देव के लोक पहुंच गए और शनिदेव से प्रकोप हटाने का निवेदन किया। जब शनिदेव नहीं माने तो राजा दशरथ ने युद्ध प्रारंभ कर दिया। परंतु दशरथ शनिदेव पर किसी काबू ना पा सके। अंत में दशरथ ने महान शस्त्र संहारास्त्र का संधान किया। तब शनिदेव उनकी वीरता से प्रसन्न हो गए और उन्हें वर मांगने के लिए कहा। राजा ने शकट भेदन योग से पृथ्वी को मुक्त करने का वर मांग लिया और शनि ने तथास्तु कहकर अंतध्र्यान हो गए।

मेष राशि: मेष राशि वालों को इस समय विवादित सौदों में पूंजी निवेश से बचना चाहिए।
उपाय: शनि अमावस्या और शनि जयंती के दिन सरसों के तेल का दान गरीबों में दें।

वृषभ राशि: वृषभ राशि वालों को पारिवारिक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
उपाय: शनि अमावस्या और शनि जयंती के दिन श्रद्घानुसार ज्वार गरीब व गौशाला में दान दें।

मिथुन राशि: मिथुन राशि वालों को कारोबार में लाभ और विवादों से पीछा छुटेगा।
उपाय: शनि जयंती एवं शनि अमावस्या के दिन उड़द के आटे की गोलियं बनाकर मछलियों को डालें।

कर्क राशि: कर्क राशि वालों को सरकार से लाभ मिलेगा और संपूर्ण विघ्र और परेशानियों से छुटकारा मिलेगा।
उपाय: शनि जयंती एवं शनि अमावस्या के दिन भगवान शिव के शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पित करें। गरीब और अपाहिजों को भोजन कराना शुभ रहेगा।

सिंह राशि: सिंह राशि वालों को किए गए कार्यों में मनोनुकूलफल प्राप्त नहीं होंगे। साझेदारी के कार्यों में सावधानी बरतें।
उपाय: शनि जयंती और अमावस्या के दिन मां भगवती के श्रीचरणों में गुलाब के 108 फूल अर्पित करें। श्री शनिदेव के श्रीचरणों में तेल चढ़ाएं।

कन्या राशि: कन्या राशि वालों को मनोनुकूल कार्य परिवर्तन एवं कोर्ट-कचहरी के मसलें हल होंगे।
उपाय: शनि जयंती और अमावस्या के दिन वट वृक्ष के पेड़ में जल अर्पित करें। तवा, अंगीठी व काले कपड़े का दान करना शुभ रहेगा।

तुला राशि: तुला राशि वालों को आय के साधनों में वृद्घि होगी और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का निवारण होगा।
उपाय: शनि जयंती और अमावस्या के दिन गरीब कन्याओं को दूध और दही का दान दें। साथ ही शनि मंदिर जरूर जाएं।

वृश्चिक राशि: वृश्चिक राशि वालों का पिछली समस्याओं से पीछा छूटेगा और मित्रों का पूर्ण सहयोग प्राप्त होगा।
उपाय: शनि जयंती और अमावस्या के दिन नैतिकता का दामन पकड़े। साथ ही पीपल के पेड़ में जल चढ़ाएं। साबूत मसूर सफाई कर्मचार को दान में दें।

धनु राशि: धनु राशि वालों को कम प्रयत्न और लाभ अधिक होगा। आय के साधन बढ़ेंगे। परंतु दुर्घटनाओं से सावधान।
उपाय: शनि जयंती के दिन श्रद्घानुसार अंधे व्यक्ति को भोजन कराना अति लाभकारी रहेगा। चने की दाल कुष्ठ रोगियों को दें।

मकर राशि: मकर राशि वालों को व्यर्थ के भ्रम, भ्रांति और भय से बाहर आना होगा। अहं और ईर्ष्या नुकसान देगी। परंतु जितनी आपको आवश्कता है उतनी धन की प्राप्ति अवश्य होगी
उपाय: शनि जयंती के दिन श्रद्घानुसार बाजारा पक्षियों को डालें। श्री शनिदेव के श्रीचरणों में पीले पुष्प अवश्य चढ़ाएं।

कुंभ राशि: कुंभ राशि वालों के रूके हुए कार्य बनेंगे। सामाजिक सुयश की प्राप्ति भी होगी।
उपाय: शनि जयंती के दिन 800 ग्राम दूध अपने ऊपर से 8 बार उतार करके 800 ग्राम उड़द के साथ बहते पानी में प्रवाह कर दें।

मीन राशि: मीन राशि वालों के व्यवसाय में सफलता, सामाजिक दायरों में व्रधि का प्रबल योग।
उपाय: शनि जयंती पर मिट्टी के पात्र में श्रद्धानुसार शहद भरकर मंदिर में रखकर आ जाएं या वीराने में दबा दें।


भगवान शनिदेव की पूजा करते समय इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें चन्दन लेपना चाहिए-
भो शनिदेवः चन्दनं दिव्यं गन्धादय सुमनोहरम् |
विलेपन छायात्मजः चन्दनं प्रति गृहयन्ताम् ||

भगवान शनिदेव की पूजा में इस मंत्र का जाप करते हुए उन्हें अर्घ्य समर्पण करना चाहिए-
ॐ शनिदेव नमस्तेस्तु गृहाण करूणा कर |
अर्घ्यं च फ़लं सन्युक्तं गन्धमाल्याक्षतै युतम् ||

इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान श्री शनिदेव को प्रज्वलीत दीप समर्पण करना चाहिए-
साज्यं च वर्तिसन्युक्तं वह्निना योजितं मया |
दीपं गृहाण देवेशं त्रेलोक्य तिमिरा पहम्. भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने ||

इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान शनिदेव को यज्ञोपवित समर्पण करना चाहिए और उनके मस्तक पर काला चन्दन (काजल अथवा यज्ञ भस्म) लगाना चाहिए-
परमेश्वरः नर्वाभस्तन्तु भिर्युक्तं त्रिगुनं देवता मयम् |
उप वीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः ||

इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान श्री शनिदेव को पुष्पमाला समर्पण करना चाहिए-
नील कमल सुगन्धीनि माल्यादीनि वै प्रभो |
मयाहृतानि पुष्पाणि गृहयन्तां पूजनाय भो ||

भगवान शनि देव की पूजा करते समय इस मंत्र का जाप करते हुए उन्हें वस्त्र समर्पण करना चाहिए-
शनिदेवः शीतवातोष्ण संत्राणं लज्जायां रक्षणं परम् |
देवलंकारणम् वस्त्र भत: शान्ति प्रयच्छ में ||

शनि देव की पूजा करते समय इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें सरसों के तेल से स्नान कराना चाहिए-
भो शनिदेवः सरसों तैल वासित स्निगधता |
हेतु तुभ्यं-प्रतिगृहयन्ताम् ||

सूर्यदेव पुत्र भगवान श्री शनिदेव की पूजा करते समय इस मंत्र का जाप करते हुए पाद्य जल अर्पण करना चाहिए-
ॐ सर्वतीर्थ समूदभूतं पाद्यं गन्धदिभिर्युतम् |
अनिष्ट हर्त्ता गृहाणेदं भगवन शनि देवताः ||

भगवान शनिदेव की पूजा में इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें आसन समर्पण करना चाहिए-
ॐ विचित्र रत्न खचित दिव्यास्तरण संयुक्तम् |
स्वर्ण सिंहासन चारू गृहीष्व शनिदेव पूजितः ||

इस मंत्र के द्वारा भगवान श्री शनिदेव का आवाहन करना चाहिए-
नीलाम्बरः शूलधरः किरीटी गृध्रस्थित स्त्रस्करो धनुष्टमान् |
चतुर्भुजः सूर्य सुतः प्रशान्तः सदास्तु मह्यां वरदोल्पगामी ||

शनि पक्षरहित होकर अगर पाप कर्म की सजा देते हैं तो उत्तम कर्म करने वाले मनुष्य को हर प्रकार की सुख सुविधा एवं वैभव भी प्रदान करते हैं। शनि देव की जो भक्ति पूर्वक व्रतोपासना करते हैं वह पाप की ओर जाने से बच जाते हैं जिससे शनि की दशा आने पर उन्हें कष्ट नहीं भोगना पड़ता।