बिहार के बाँका जिलान्तर्गत मंदार विद्यापीठ रेलवे स्टेशन के पास लगभग 870 पूर्व तथा 250 उत्तर अक्षांष-देषांतर रेखा पर स्थित है। यह पर्वत, पर्वत ही नहीं बल्कि एक महातीर्थ है। ऐसी मान्यता है कि सृष्टि का आरंभ ही यहाँ से हुआ था। अतः यह एक सृष्टिपीठ भी है । भगवान विश्णु जब योगनिद्रा में लीन थे तो मधु एंव कैटभ नामक दो दैत्य कमलनाल के ऊपर तपस्यारत ब्रह्मा जी को प्रताड़ित करने लगे थे। तभी भगवान विश्णु ने मधु का वध किया जिससे भगवान विश्णु मधुसूदन कहलाये तथा भगवती योगमाया ने कैटभ का वध किया जिससे वह कैटभनाशिनी कहलाई जिसके मंदिर क्रमश: बौंसी तथा जेठौर पर्वत के पास मंदार क्षेत्र में अभी भी दर्षनीय है । एक दूसरी कथा के अनुसार देवों तथा दानवों ने मंदार पर्वत को मथानी की तरह व्यवहार में लाया था। मंदार पर्वत पर अभी भी वासुकी नाग को रस्सी के रूप में प्रयुक्त करने के कारण रस्सी का दाग दिखाई देता है।
‘विश्णु पुराण’ में ‘अंग देषे सुविख्यातो, मंदारः पर्वतोत्तमः’ कहकर वर्णन किया गया है। ‘स्कदपुराण’ में मंदार की महिमा का वर्णन करते हुए लिखा गया है –
‘‘न मंदार सम तीर्थम्, न हि गंगा समा नदी।
न विश्णु परो देवो, न मंत्र प्रणवात्परः।।’’
अर्थात् मंदार के समान कोई तीर्थ नही, गंगा के समान कोई नदी नहीं। विश्णु के समान कोई देव नहीं तथा प्रणव के समान दूसरा कोई मंत्र नहीं।
इसके साथ-ही-साथ वाल्मीकि रामायण रामचरितमानस, वृहत् पुराण, श्रीमद्भागवत महापुराण, गुरूड़ पुराण, श्री चैतन्य चरितावली आदि विश्वविख्यात ग्रन्थों में भी मंदार पर्वत का सादर उल्लेख किया गया है।
इसके अलावे आधुनिक इतिहासकार यथा फ्रांसिस बुकनन (एन एकांउट आफ द डिस्ट्रिक्ट आफ द भागलपुर, 1810-19), शेर्विल सर जान फैथफुल, मोन्टगोमरी मार्टिन (ईस्टर्न इंडिया) राखाल दास बनर्जी, डा0 ए0एस0 आलटेकर ने भी मंदार के महत्व का उल्लेख किया है।
मंदार पर्वत हिमालय से भी अधिक प्राचीन है। इसकी ऊँचाई 700 से 750 फीट तक है। यह पर्वत हरे-भरे वृक्षों कई कुंडां तथा जलाशयों से परिपूर्ण है। यह पर्वत साधु-सतों तपस्वियों तथा योगियों का भी वास स्थान है। इसके चारों तरफ बिहार सरकार के वन विभाग ने वन लगाकर इसकी सुदंरता में चार चाँद लगा दिया है। यह पर्वत है तो छोटा परंतु मनमोहक है। पूर्णिमा की रात्रि में पर्वतपाद में स्थित पापहारिणी कुंड के बीच लक्ष्मीनारायण मंदिर से इसकी शोभा अवर्णनीय होती है।
स्थिति: यह पर्वत 870 पूर्व तथा 250 उत्तर पर स्थित है । मंदार विद्यापीठ रेलवे स्टेशन से 1 कि0मी0, जिला मुख्यालय बाँका से 12 कि0मी0 तथा भागलपुर से 40 किलोमीटर पर स्थित है । यह पर्वत भागलपुर-दुमका रोड से भी अच्छी तरह जुड़ा है। रोड की हालत बहुत अच्छी है । यह स्थान भागलपुर बाँका, दुमका एंव गोड्डा के संगम स्थल पर है।
एयरपोर्ट: पटना, राँची तथा कोलकाता
मौसम : ग्रीश्म ऋतु: मार्च से जून
वर्षा ऋतु : मध्य जून से सितम्बर, 1500 मिमी0 – औसत वार्शिक वर्शा
शरद ऋतु: नवम्बर से फरवरी
ठहरने का स्थान: दिगम्बर जैन धर्मशाला, बौंसी; रेलयात्री निवास-बौंसी; आर्य होटल तथा धर्मशाला, बौसी; (मंदार पर्वत से बौंसी; की दूरी 5 कि0मी0 से भी कम है।) मंदार पर्वत के पास भी एक गेस्ट हाउस है।
अन्य दर्शनीय स्थल :
1. जैनसिद्ध क्षेत्र – 12वें तीर्थकर भगवान वासुपूज्य की पावन स्थली: जैनसिद्ध क्षेत्र भागलपुर की चम्पानगरी के राजकुमार जैन के 12 वें तीर्थंकर भगवान श्री वासुपूज्य की तपःस्थली भी है। उन्होंने ज्ञान, तप तथा मोक्ष भी यहीं प्राप्त किया था। उन्होंने यहीं पर प्रथम उपदेश भी दिया था। मंदार पर्वत से 1 कि0मी0 की दूरी पर ही एक छोटा परंतु सुंदर मंदिर है जिसमें भगवान वासुपूज्य की पद्मासन मुद्रा में मनोहारी प्रतिमा भी है। मोक्षदायक स्थान के पास ही इनकी 5 फीट ऊँची प्रतिमा भी है । साथ ही भगवान के 3000 साल पुराने चरण चिन्हों के भी दर्षन यहाँ होते है । यों तो सालोभर यात्री यहाँ आते हैं परन्तु विषेशकर भाद्रपद शुक्ल 14 तथा चैत्र शुक्ल 13 को भव्य मेला लगता है जिसमें जैनियों तथा अन्य लोगों का दूर-दूर से आगमन होता है।
2. भगवान मधुसूदन मंदिर: मधु राक्षस का उद्वार करने के कारण भगवान मधुसूदन जी मंदार के पास बौंसी नगरी में विराजमान हैं । पहले भगवान मधुसूदन मंदार पर्वत पर ही विराजमान थे। परंतु काला पहाड़ नामक बर्बर सेनापति से बचाने के लिए भगवान को उतार कर बौंसी लाया गया जहाँ पर वे जहाँगीर के शासन काल मे निर्मित मंदिर में अभी तक विराजमान हैं। देवोत्थान एकादश , नवान्नपर्व, मकर संक्रान्ति होलिकोत्सव, रथ यात्रा, हरिषयन एकादश , झूलनोत्सव, जन्माश्टमी आदि पर्व पर काफी यात्री यहाँ पर आते हैं ।
3. गुरूधाम : योगप्रवर्तक श्री श्यामाचरण लाहिड़ी की स्मृति में बनाया गया गुरूधाम स्थल भी दर्षनीय स्थल है । यहाँ पर भी श्री लाहिड़ी महाषय जी तथा उनके शिष्य योगानन्द इत्यादि के अनुयायी देश तथा विदेश से हजारों की संख्या में आते रहते है। यहीं पर एक संस्कृत महाविद्यालय भी है। यह मंदार पर्वत से 3 किलोमीटर की दूरी पर है।
8. सीताकुंड – पर्वत के ऊपर एक छोटा सा कुंड़ है जिसे चक्रवत्र्य कुंड भी कहते है। ऐसा कहा जाता है कि इसी कुंड में स्नान कर माता सीता ने यहाँ पर छठ व्रत किया था। भगवान श्री रामचन्द्र जी ने महाराज दशरथ जी का तर्पण भी यहाँ पर किया था।
9. शंख कुंड – पर्वत पर शंख के आकार का एक और कुंड है। इसका आकार ऊपर से देखने पर छोटा लगता है परन्तु सुखाने पर यहाँ एक गहरा तथा विशाल कुंड मिला। कुंड के तल में एक विशालकाय शंख भी देखा गया। ऐसा कहा जाता है कि समुद्र मंथन से प्राप्त हलाहल का पान भगवान भोले शंकर ने इसी शंख से किया था।
10. नरसिंह मंदिर: एक गुफा में नरसिंह भगवान की प्रतिमा भी है। इस अँधेरी गुफा में भगवान नरसिंह की आँखें चमकती थीं । परंतु अब नहीं चमकती क्योंकि इनकी आखों से रत्न निकाल लिया गया है।
(रोपवे ) का निर्माण ।
भगवान बुद्ध, मंदार क्षेत्र के प्रसिद्ध क्रांतिकारी श्री सतीष चन्द्र झा (तीसरे क्रम में) , श्री जयप्रकाश नारायण
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