चन्द्रकांत शर्मा
आज के भागमभाग दौर में सिनेमा की सही व्याख्या करना भी मुश्किल हो गया है क्योंकि हर निर्माता सिनेमा को अपने नजरिये व तर्क के साथ बना रहा है। कोई फिल्म के बहाने पैसा बनाना चाहता है और कोई समाज को एक सार्थक संदेश देना चाहता है। कमर्शियल या कहें कि मसाला फिल्में बनाकर पैसा कमाने वाले निर्माताओं का कारवां बढ़ता जा रहा है। मुख्यधारा से अलग हटकर आर्ट फिल्में बनाने वाले भी हैं और कुछ निर्माता ऐसे हैं जो कला को ही कॉमर्शियल रंग देकर एक संतुलन बनाना चाहते हैं ताकि समाज फिल्म में मनोरंजक तरीके से अपना असली रूप भी देख सके। ऐसी फिल्में रियलिस्टिक टच लिए होती हैं। क्या निर्माता चंद्रपाल सिंह भी ऐसी ही एक फिल्म बना रहे हैं। अगर उनके नजरिये को समझें, तो ऐसा ही नज़र आता है, जो निर्देशक जसबीर भाटी के साथ मिलकर भूरी नाम की एक ऐसी फिल्म दर्शकों के सामने ला रहे हैं, जो कई रहस्यों से परदा उठाएगी। ऐसा सच, जो देश-दुनिया से छिपा हुआ है।
एस वीडियो पिक्चर और एंजल एंटरटेन्मेंट की फिल्म ‘भूरी’ के निर्माता कहना चाहते हैं कि ईट-भट्टों पर काम करने वाली मज़दूर औरत और प्रकृति के साथ खिलवाड़ करोगे, तो अंत विनाशक ही होगा। ईंटें बनाने के लिए मिट्टी की उपरी सतह को खुरचा जाता है। उसी मिट्टी को ईंट रूपी पत्थर का रूप दिया जाता है। आज उन्हीं ईंटों से कंक्रीट के जंगल बनाए जा रहे हैं, जो प्रकृति के साथ खिलवाड़ ही है। अगर ऐसा ही होता रहा, तो आॅक्सीज़न कहां से मिलेगी! औरत भी मिट्टी की तरह पिसती रहती है, सब कुछ सहती रहती है। मिट्टी का ही प्रतीकात्मक रूप है भूरी। चंद्रपाल कहते हैं कि भूरी न सिर्फ फिल्म का नाम है बल्कि एक महिला चरित्र भी है, जो ईंट-भट्टे पर शोषण सहती रहती है। चंद्रपाल सिंह कहते हैं कि भले ही रियलिस्टिक फिल्म है लेकिन मैंने इसे थ्रिलर का रूप दिया है। यह स्टोरी मेरे लिए बड़ी खास है और मैं इससे मौहब्बत करता हूं।
एक वूमैन बेस्ड स्टोरी के चयन को लेकर चंद्रपाल सिंह कहते हैं कि नारी मेरी बहन है, मेरी मां है, बीवी है और दूसरी मां ज़मीन है। औरत और ज़मीन मेरी फिल्म का अहम हिस्सा हैं। मैंने भी मुसीबतों को झेला है इसलिए उसी पीड़ा को किसी न किसी रूप में फिल्म में पेश किया है। चंद्रपाल कहते हैं कि बनिया, साहूकार, बाहूबली, डॉक्टर और पंडित ईंट-भट्टों की उस बस्ती के शक्तिकेंद्र हैं। बस्ती में इन्हीं का राज है जो भूरी का किरदार निभा रही माशा पॉर का शोषण करते हैं। फिल्म में किसी नामचीन अभिनेत्री की बजाय एक नई अभिनेत्री को लेने के सवाल पर चंद्रपाल सिंह कहते हैं कि अगर मंझी हुई विख्यात अभिनेत्री को लेता तो इस तरह का सिनेमा नहीं बन पाता। बॉलीवुड की फेमस हीरोइन गोबर नहीं उठा सकती जबकि माशा ने फिल्म में गोबर तक उठाया है। फिल्म में मनोज जोशी, मोहन जोशी, मुकेश तिवारी, शक्ति कपूर और सीताराम पांचाल हैं जिनके आदेश के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। इन पांच दिग्गज़ चरित्र अभिनेताओं के बीच कहीं माशा नाम की नई अभिनेत्री दबकर न रह जाए! इससे जुड़े सवाल पर चंद्रपाल सिंह कहते हैं कि हमने भूरी का किरदार भी काफी मज़बूत रखा है और यह कैरेक्टर दबेगा नहीं। फिल्म में भूरी पर मनहूसियत का धब्बा लगा है। वह 24 साल की है जिसकी शादी नहीं हुई। बंजारे की बेटी है, जिसके शादी से पहले ही होने वाले चार पति भाग गए। पांचवा पति उसकी ज़िंदगी में किस तरह आता है और वो कौन है! क्या भूरी शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाती है! इस तरह के सवालों का जवाब निर्माता चंद्रपाल सिंह अभी नहीं देना चाहते। निर्माता का कहना है कि शक्ति कपूर को दर्शक एक नए रूप में देखेंगे जिनका कैरेक्टर एक डॉक्टर का है, जो बेहद पॉज़िटिव है लेकिन लड़कियां उसकी कमज़ोरी हैं। इससे पहले निर्माता फिल्म ‘लकीर का फकीर’ बना चुके हैं और तीसरी फिल्म ‘रिवाज’ भी बनाने की तैयारी में हैं। क्या किसी फिल्म का निर्देशन भी करेंगे! इस सवाल पर चंद्रपाल सिंह कहते हैं कि फिल्म आजमगढ़ की कहानी लिख रहा हूं जिसके लिए संजय दत्त को अप्रोच करूंगा। चूंकि स्टोरी आजमगढ़ से जुड़ी है इसलिए इसे भी रियलिस्टक फिल्म ही कहना होगा। परदे पर नाटक नहीं, जीवन से जुड़ी सच्ची कहानियां दिखाता रहूंगा, ताकि दर्शक फिल्म के साथ दिल से जुड़ें।
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