कहानी – आर.डी. भारद्वाज “नूरपुरी ”
माता पिता हमेशा अपने बच्चों को अपने समर्था से बढ़कर ही देने की कोशिश करते हैं , वह चाहते हैं कि उनका बच्चा अपनी जिन्दगी में उस मुकाम पर पहुँचे जिस पर वह खुद अपने ज़माने में / घर की ख़राब आर्थिक प्रस्थितयों की वजह से नहीं पहुँच पाए थे | और वह बच्चे जो अपने माँ बाप की सिखलाई अनुसार चलते रहते हैं और मन लगाकर पढ़ते हैं , वह अपनी जिन्दगी सँवार ही लेते हैं | जैसे कि – अर्पित के माता पिता भले ही गाँव में रहने वाले साधारण से मज़दूर ही थे, मग़र उन्होंने अपने बेटे को एम कॉम की पढ़ाई तो करवा ही दी | यह बात और है कि हमारे देश और समाज के हालत इतने अच्छे नहीं हैं कि जितने नौजवान लड़के लड़कियाँ प्रति वर्ष कॉलेजों से अपनी पढ़ाई पूरी करके नौकरियों के लिए तैयार हो जाते हैं, नौकरियाँ तो उनके मुकाबले में 15-20 प्रतिशत नौजवानों को ही बड़ी मुश्किल से नसीब होती हैं | फ़िर हमारे देश के नेतागण भी माशाअल्लाह ! ऐसे हैं कि उनको देश और समाज में फ़ैली हुई अनेकों समस्याओं का कोई सार्थिक और स्थाई हल ढूंढ़ने की इच्छाशक्ति ही नहीं होती | यही कारण है कि बच्चों को आधे अधूरे मन से अपनी योग्यता से निचले सत्तर की नौकरियाँ करने के लिए विविश होना पड़ता है | अर्पित का भी कुच्छ ऐसा ही हाल था , एम कॉम करने के बावजूद भी बेचारा एक कारख़ाने में बाबूगिरी कर रहा था, क्योंकि उसे ढंग की कोई नौकरी मिली ही नहीं थी |
यहाँ उसे लगता कि यह नौकरी उसकी पढ़ाई के अनुसार है और वहाँ उसे अच्छी तनख़ाह भी मिल जाएगी , वह वहीं अपनी दरखास्त भेज देता , प्रतियोगिताएँ भी देता रहता , लेकिन, कोई अच्छी नौकरी तो जैसे उसके नसीब में थी ही नहीं, उसकी कहीं बात नहीं बनती | बेचारा थक-हार कर फिर उसी कारखाने में चला जाता , यहाँ उसका मन बिलकुल नहीं मानता था | तेजपाल , उसके पिता भी उसे समझाते , “देखो बेटा ! कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता , बस हमें सच्चे मन से करना चाहिए , बाकी सब प्रमात्मा के ऊपर छोड़ देना चाहिए , देर सवेर वह इस दुनियाँ का मालिक हमारी भी सुनेगा और फिर तुम्हें भी कोई बढ़िया नौकरी मिल जाएगी | उसकी माता हरबंस कौर भी अपने गाँव के गुरूद्वारे में जाकर माथा टेकती और भगवान के चरणों में अरदास करती कि उसके बेटे को कोई बढ़िया सी नौकरी मिल जाए , ताकि उनके भी हालत थोड़ा सुधर जाएं | इसी तरह करते – २ उसे तीन वर्ष बीत थे | ऐसे एक दिन जब शाम को अर्पित अपने कारखाने से घर लौटा, तो उसे काफ़ी देर हो चुकी थी, रात के नौ बजने वाले थे, जैसे ही उसके साइकिल की आवाज़ आई , माँ ने झट से मुस्कराकर उसका स्वागत किया और उसके सिर पर हाथ फेरा | माओं का अपने बच्चों को लाड प्यार करने का एक अपना ही तरीका होता है , वह हर हाल में अपने बच्चों का हौंसला बढ़ाती हैं और उनसे हमेशा लाड प्यार से ही पेश आती है | अर्पित ने अपना साइकिल आँगन के एक कोने में खड़ा कर दिया और हाथ मुँह थोने चला गया और उसकी माँ से बोला , “माँ ! आज मैं चाय वॉय कुच्छ नहीं पीयूँगा, बड़ी तेज़ भूख लगी है , बस सीधे खाना ही खायूँगा | क्या बनाया है ?” माँ ने भी झट से उत्तर दिया , “खाना तैयार है ! बस तूँ जल्दी से हाथ धो कर आजा , आज मैंने तेरे पसंद की सब्जी बनाई , मटर पनीर !” अर्पित ने चौके में बैठते हुए दूसरा सवाल किया, “और साथ में मक्की की रोटी ! है न, बड़ा मज़ा आएगा !”
माँ ने झट से खाने की एक थाली बनाई और बोली, “यह ले ! पहले यहअपने पिता को दे आ, उनको भी भूख लगी हुई है , लेकिन उन्होंने रोटी अभी तक खाई नहीं , कह रहे थे कि पहले अर्पित आ जाये, फ़िर इक्कठे ही खाना खाएंगे | जैसे ही वह अपने पिता को खाने की थाली देकर आया , उसके लिए भी दूसरी थाली तैयार हो गई ! उसकी तरफ़ थाली सरकाते हुए माँ बोली , “ले बेटा ! सारा दिन काम करते – २ थक गया होगा , मेरा लाल !” बाप बेटे ने पूरी तस्सली से खाना खाया और जब खाने के बाद अर्पित नलके पर हाथ धोने गया , उसकी माँ ने उसे आवाज़ दी – “बेटा ! आज तेरे लिए एक चिठ्ठी आई है, अन्दर परछत्ती पर रखी है , देख तो ज़रा, कहाँ से आई है ?” लफ़ज़ चिठ्ठी सुनकर उसने जल्दी से अपने हाथ धोये और कमरे में चिठ्ठी देखने चला गया | फ़टाफ़ट उसने चिठ्ठी खोली और पढ़ने लग गया , जैसे – २ वह चिठ्ठी पढ़ रहा था, उसके चेहरे पर मुस्कराहट आने लग गई | उसके पिता तेजपाल ने पूछा , “कहाँ से आई है यह चिठ्ठी, और क्या लिखा है ?” “चंडीगढ़ से, एक कम्पनी से , मैंने उस कम्पनी में एक नौकरी के लिए अप्लाई किया था , उन्होंने इंटरव्यू के लिए बुलाया है |” सुनकर उसकी माँ ने दोनों हाथों से धरती को स्पर्श किया और बोली , “बेटा तूँ इस के लिए जरूर जाना, देखना तूँ पास हो जायेगा और यह नौकरी तुझे जरूर मिलेगी ! कब है तेरी इंटरव्यू ?” “अगले महीने की दस तारीख़ को ! मैं जायूँगा तो सही , लेकिन माँ पता नहीं , मेरे इलावा वहाँ कितने और लड़के लड़कियाँ आये होंगे ?” उसके पिता ने अपनी राय देते हुए बेटे को समझाया , “कोई बात नहीं बेटा , कि वहाँ और कितने लोग आये होंगे , प्रत्येक बंदे की किस्मत अपनी – २ ही होती है, अगर यह नौकरी तेरे नसीब में लिखी है, तो कोई नहीं छीन सकता ! तूँ अपनी तरफ़ से पूरी मेहनत और लगन से तैयारी करके जाना , बाकी का सारा काम निरंकार के भरोसे छोड़ दे !”
निश्चित तिथि को अर्पित चंडीगढ़ में कम्पनी के दफ़्तर पहुँच गया ! अपने माता पिता के समझाए अनुसार जाने से पहले उसने अपने गाँव के गुरूद्वारे जाकर माथा भी टेका था और सच्चे मन से प्रमात्मा से अरदास भी कर दी थी | इतना बड़ा और शानदार दफ़्तर देखकर वह दिल में सोचने लग गया कि काश यहाँ उसकी नौकरी लग जाये तो उसकी ज़िन्दगी बन जाएगी और कारखाने वाली नौकरी से उसका पीछा छूट जायेगा | दफ़्तर पहुंचकर उसने अपनी इंटरव्यू वाली चिठ्ठी किसी को दिखाई और इंटरव्यू का स्थान पता किया | उस सज्जन ने बताया कि पहले वह इस कंपनी की रेसप्शनिष्ट से बात कर ले ! वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि लगभग तीस वर्ष की एक महिला उस सीट पर बिराजमान है, उसके पास जाकर अर्पित ने उसे नमस्ते बुलाई और अपना इंटरव्यू का कॉल लेटर दिखाया ! वहाँ पर और बहुत से लड़के लड़कियाँ उस से पहले ही मौजूद थे | कॉल लेटर देखकर उस रिसेप्शनिस्ट ने उसे साथ वाले कमरे में जाकर पहले अपने सर्टिफिकेट्स दिखाने के लिए भेज दिया | जब वह उस कमरे में गया तो देखा कि वहाँ भी आठ दस लड़के लड़कियाँ अपने प्रमाण पत्र दिखा रहे हैं , तो ऐसे वह भी लाइन में लग गया | जब उसकी बारी आई तो उसने सीट पर बैठे दोनों अधिकारियों को नमस्ते बुलाई और अपने सर्टिफिकेट्स दिखाने लग गया | आधा पौना घंटा तो उसे इसी काम में लग गया, प्रमाण पत्र दिखाने के बाद उन अधिकारियों ने उसे दूसरी मन्जिल पर इंटरव्यू के लिए तीसरे कमरे में भेज दिया |
इंटरव्यू वाले कमरे में जब वह दाख़िल होने ही वाला था तो उसने देखा कि कमरे के बाहर रखा पायदान टेड़ा हो रखा है, अत: कमरे में जाने से पहले उसने झुककर उस पायदान को सीधा कर दिया और फ़िर उसपे अपने जूते साफ़ किये | फिर उसने धीरे से दरवाजा थोड़ा सा खोला और अन्दर बैठे अधिकारियों से वहाँ जाने की आज्ञा माँगी | अन्दर आने का इशारा पाकर जब वह भीतर गया तो देखा कि उस बड़े से कमरे में, एक बड़े से मेज़ के दूसरी तरफ़ चार अधिकारी बैठे हैं, उसने सबको नमस्ते बुलाई और प्रार्थी के लिए रखी गई कुर्सी के पास जाकर खड़ा हो गया और बैठने की इजाजत का इन्तज़ार करने लगा | उन अधिकारियों में से एक ने उसे बैठने को बोला, लेकिन यह क्या – जब वह कुर्सी पर बैठा तो उसने देखा की उसकी कुर्सी के बिलकुल साथ ही एक फूलों का गुलदस्ता पड़ा है | इंटरव्यू लेने वाले भी निरन्तर उसका व्यवहार देख रहे थे ! अर्पित ने उन में से एक से कहा , “मेरा ख़्याल है यह गुलदस्ता गलती से इतना पास रख हो गया है, अगर आपकी इजाजत हो तो में इसे कमरे के एक कोने में रख दूँ ?” इंटरव्यू बोर्ड के चेयरमैन ने कहा , “हाँ ! हाँ ! इस कमरे में यहाँ आपको उचित स्थान लगता है, वहीं इसे रख दो !” अर्पित धीरे से कुर्सी से उठा और उसने कमरे में चारों तरफ़ नज़र फेरी, और फ़िर एक कोने में उस गुलदस्ते को टिका दिया | फिर वहाँ मेज़ के दूसरी तरफ़ बैठे अधिकारी ने उसे पूछा कि शायद यह वहाँ की बजाये बाईं तरफ़ ज़्यादा अच्छा जचता !” लेकिन अर्पित ने उत्तर दिया , ” अगर आप कहते हैं तो मैं इसे वहाँ रख देता हूँ , लेकिन गुलदस्ता तो सजावट के लिए होता है, और इस कोने में यह सबको नज़र आएगा और कमरे में आने जाने वालों के लिए इसकी कोई रुकावट भी नहीं होगी !”
फ़िर उस अधिकारी ने उत्तर दिया , “ठीक है ! इसे वहीं रहने दो और आप आराम से बैठे !” इसके बाद उन्होंने अर्पित से उसकी पढ़ाई और मौजूदा नौकरी के बारे में कुच्छ सवाल किए और अर्पित ने अपनी सूझबूझ और लियाकत अनुसार उनके जवाब दे दिए | बस दस मिनट में ही उसकी इंटरव्यू पूरी हो गई और अधिकारियों ने उसे पूछा कि सैलरी के रूप में वह कितनी राशि की उम्मीद करता है ? अर्पित जिस कारखाने में काम करता था , वहाँ उसे बीस हज़ार मिलते थे , सो उसने मन में सोचा कि गाँव से चंडीगढ़ नौकरी करने के लिए उसे वहाँ रहने के लिए कमरा भी किराये पर लेना पड़ेगा , उसने थोड़ा सोचकर पच्चास हज़ार की अपनी ख़्वाहिश जाहिर कर दी | इंटरव्यू बोर्ड के चेयरमैन ने इसका उत्तर दिया , “ओके ! आपकी इंटरव्यू हो गई , आप जा सकते हैं !” कमरे से बाहर निकला , तो अर्पित ने देखा कि उसी फ़्लोर पर एक टूटी से पानी टपक रहा है, अत: वह टूटी से पानी पिया और टूटी बंद करके वापिस रिसेप्शनिस्ट के पास आ गया और उसने उसे फिर पूछा कि इस इंटरव्यू का रिजल्ट उसे कब पता चलेगा ? रिसेप्शनिस्ट ने उत्तर दिया , “अगर आपकी यहाँ नियुक्ति हो जाती है तो आपको ज़्यादा से ज़्यादा एक महीने में नियुक्ति पत्र मिल जायेगा !” वापिस आते समय उसने फ़िर मुस्करा के उस लड़की को नमस्ते बुलाई और बस पकड़ने के लिए बाहर आ गया |
शाम को घर पहुँचते ही उसके माता पिता ने इंटरव्यू के बारे में पूछा , तो अर्पित ने हल्का सा उत्तर दे दिया ,”ठीक ही थी |” उसके पिता ने फिर से पूछा , “तूँ इतना ढीला क्यों बोल रहा है ?” अर्पित ने उत्तर दिया , “मैं इतनी तैयारी करके गया था, लेकिन उन्होंने ढंग से इंटरव्यू ली ही नहीं ! ऐसे लगता है कि जिसे उन्होंने रखना है , वह तो पहले से ही तह कर रखा है, यह इंटरव्यू तो मात्र एक उपचारिकता पूरी करने के लिए ही थी !” उसका जवाब सुनकर अर्पित के पिता तो सोच में पड़ गए , लेकिन उसकी माँ ने उसे विश्वास दिलाया , “कोई बात नहीं बेटा ! तूँ चिंता मत कर, अगर यह नौकरी तेरे नसीब में होगी , तो इसे कोई नहीं छीन सकता ! हमेशा निरंकार पर भरोसा बनाए रखना ! क्योंकि एक वही है जिसे सबकी फ़िक्र रहती है !”
अगले दिन से अर्पित फ़िर अपनी पुरानी नौकरी के लिए कारखाने चला गया ! लेकिन पंदरा दिन बाद उसे चंडीगढ़ में दी गई इंटरव्यू के प्रणाम जानने की चिन्ता सताने लग गई, अत: वह रोज शाम को अपनी ड्यूटी से वापिस घर पहुँचते ही माँ से पूछता , “कोई चिठ्ठी आई है ?” उसकी माँ का रोज़ाना एक सा ही जवाब होता , “अभी नहीं !” लेकिन अब तो उसे चंडीगढ़ से आए हुए लगभग महीना पूरा होने वाला था और जब वह शाम को घर वापिस आया तो उसने पहले माँ से सवाल किया , “माँ ! मेरी आई कोई चिठ्ठी ?” जवाब में माँ ने “हाँ” में जब सिर हिलाया तो उसकी उत्सुकता चार गुणा बढ़ गई और वह भागकर कमरे में गया और परछत्ती पर रखी हुई चिठ्ठी लेकर पढ़ने लग गया | माँ भी सभी काम छोड़कर उसके पास आकर खड़ी हो गई और पूछने लगी , “उसी कम्पनी से है न ? क्या लिखा है, तुझे नौकरी मिल गई है ना ?” “हाँ माँ ! उसी कंपनी से है , उन्होंने मुझे नौकरी दे दी है, दस दिन बाद ही ड्यूटी पर आने के लिए लिखा है !” “मैं कहती थी न , निरंकार पर भरोसा रख ! तुझे नौकरी जरूर मिलेगी ! बेटा ! प्रमात्मा के घर देर तो हो सकती है , मगर अंधेर नहीं ! वाहेगुरु तेरा लाख – २ शुक्रिया ! क्या तहख़ाह भी लिखी है , कितनी होगी ?” “हाँ माँ ! चालीस हज़ार !” सुनकर उसके माता पिता की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा ! उन्होंने धरती को स्पर्श करके भगवान का शुक्रिया अदा किया !
थोड़े दिन बाद अर्पित ने अपनी कारख़ाने वाली नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया और चंडीगढ़ जाने की तैयारी में जुट्ट गया ! अगले सोमवार को जाकर उसने अपनी नई नौकरी तो ज्वाइन कर ली, लेकिन एक बात उसके मन में अभी भी खटक रही थी और उसने सोचा कि थोड़े दिनों बाद इसके बारे में दफ़्तर के प्रशासन विभाग से पता जरूर करेगा ! धीरे से जब उसकी अपने सहकर्मियों से जान-पहचान हो गई तो उसने एक दिन प्रशासन विभाग के इन्चार्ज से मिलने के लिए वक़्त माँगा ! जवाब में उसे शाम को चार वजे के बाद आने के लिया बता दिया गया ! दिए गए वक़्त पर अर्पित उस अधिकारी के पास गया और उसने अपनी बात रखी, “सर ! जब से मैं जहाँ इंटरव्यू देकर गया था , एक सवाल मुझे लगातार परेशान कर रहा है ! आपकी इजाजत हो तो ?” अधिकारी ने उत्तर दिया , “हाँ ! पूछो, क्या पूछना चाहते हो ?” मेरी इंटरव्यू वाले दिन इस कार्यालय में मेरे प्रमाण पत्र तो अच्छे से चेक किये गए थे, लेकिन मैंने अनुभव किया कि मेरी इंटरव्यू में तो मेरे से कोई ख़ास सवाल पूछे ही नहीं गए थे ! तो ऐसे में मेरी इस नौकरी के लिए सिलेक्शन कैसे हुई ?” अधिकारी ने उत्तर दिया , “देखो अर्पित ! हमारी कम्पनी बाकी सब कम्पनियों से बहुत अलग है, यहाँ पर प्रार्थी की इंटरव्यू इस दफ़्तर में दाख़िल होते ही शुरू हो जाती है ! आपने देखा होगा कि आपकी इंटरव्यू से पहले प्रत्येक प्रार्थी को 10 / 15 मिनट के लिए रिसेप्शनिस्ट के सामने बैठना पड़ता है, कुछ आदमी वहाँ बैठकर उस लड़की को घूरते रहते है, उसको देखकर अपने वालों में हाथ फेरने लग जाते है और न जाने कैसी – २ हरकतें करते है, इसलिए सभी प्रार्थियों के लिए इंटरव्यू के 100 अंकों में से हमारे चेयरमैन ने 20 अंक दे रखे है, और जैसे ही कोई प्रार्थी उस लड़की के पास जाता है, वह लड़की ध्यान से उसका व्यवहार / हरकतें देखती है, लड़की से बातचीत करने का उसका सलीका कैसा है, इन सब बातों को देखते हुए वह लड़की अपने मूल्यांकन के आधार पर उसे अंक देती है और फ़िर आपने पता नहीं नोट किया या नहीं , इंटरव्यू वाले दिन कुछ वस्तुएँ जान-बूझकर ग़लत जगह रख दी गई थी, ताकि इनके प्रति प्रार्थियों का रवैया जाना जा सके – सकारात्मिक / नकारात्मिक या फिर निष्कर्य ! उस दिन की इंटरव्यू के बाद इंटरव्यू बोर्ड ने प्रार्थियों को जितने अंक दिए हों , उन सब को जोड़कर ही अंको की फाइनल लिस्ट बनती है और उसके आधार पर ही प्रार्थियों की नियुक्ति होती है !”
अर्पित इतना सबकुछ सुनकर थोड़ा दंग रह गया कि इंटरव्यू का मतलब एक बंद कमरे में किये गए केवल सवाल जवाब ही नहीं है, इससे बहुत कुछ और भी होता है | फिर उस अधिकारी ने उसे आगे समझाते हुए बताया कि जहाँ तक आपकी शैक्षणिक योग्यता की बात है, वह तो आपकी यूनिवर्सिटी ने पहले ही जाँच ली है, तभी तो आपको यह डिग्रियां मिली हैं | अर्पित ने अगला सवाल किया , “लेकिन सर ! यह सब करने के पीछे उद्देश्य क्या है ? उस अधिकारी ने उत्तर दिया , “आप भी समाचार पत्रों में अक्सर पढ़ते होंगे कि समाज में कितने गलत काम होते हैं , खास तौर पर – लड़कियों / महिलाओं के साथ, हमारे चेयरमैन साहेब का मानना है कि हम अपनी कम्पनी में केवल उन लड़के लड़कियों को ही नौकरी देंगे जो समाज में सब जगह अच्छी जिम्मेदारी से पेश आएं और उनको देश और समाज में रहने का अच्छा सलीका हो और ऐसे प्रत्येक इन्सान चलते फ़िरते भी अपने आचरण और योग्यता का परिचय देता रहता है ! अच्छे समाज की रचना के लिए यह अब बेहद जरुरी हो गया है और हमारी कम्पनी ऐसे प्रार्थियों की ही भर्ती करके देश और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभा रही है ! अर्पित के अगले सवाल के जवाब में उस अधिकारी ने उत्तर दिया , कि अगर कोई लड़का या लड़की अपनी ड्यूटी ज्वाइन करने के बाद यह सोचता है कि इस कंपनी में नौकरी पाना तो बड़ा आसान काम है और कोई ऐसी हरकत करता है जोकि उसके चरित्र, आचरण और योग्यता पर प्रश्नचिन खड़ा करती है तो, उसे बाद में भी नौकरी से निकाल दिया जायेगा और उसकी जगह , इंटरव्यू के समय तैयार की गई वेटिंग लिस्ट में से अगले प्रार्थी को नौकरी दे दी जाएगी ! बेशक एक छोटे रूप में ही सही , हमारी कम्पनी समाज सुधार के लिए वचन-बद्धता के साथ काम करती है ताकि अच्छी शैक्षणिक योग्यता के साथ – २ अच्छी समझ और सूझबूझ / सलीका और समाज के प्रति जिम्मेदारी से पेश आने वाले और अच्छे व्यवहार करने वाले ही बच्चों को नौकरी दी जाए और जिन्दगी में आगे बढ़ने व फ़लने फ़ूलने के अवसर प्रदान किये जाएं ! इसके इलावा और कुछ बातें भी हैं जो इस नौकरी के दौरान आपको धीरे से पता चल जाएंगी ! आप अपनी ड्यूटी पूरे समर्पित भाव ,पूरी जिम्मेदारी और ईमानदारी के साथ निभाना, वही आगे चलकर आपके काम आएगी और इन्हीं बिंदुओं के आधार पर ही आपको पदोन्नति भी मिलेगी !