आत्मा से आत्मा का मिलन ही सच्ची मित्रता का प्रतीक है।
सुरेन्द्र सिंह डोगरा
जनाब आपको मालूम ही होगा कि आज फ्रेंडशिप डे यानि मित्रता दिवस है। यह अगस्त माह के पहले रविवार को मनाया जाता है। वैसे इसके प्रचलन का श्रेय पश्चिमी सभ्यता को ही जाता है। इसकी शुरुआत सन 1935 में अमेरिका से हुई। इसकी शुरुआत छोटे से आयोजन से हुई थी मगर आज इसकी लोकप्रियता की धूम पूरे जहाँ में गूँजती है। आज इसकी लोकप्रियता बढ्ने का कारण है विश्व एकीकरण। आज इंटरनेट का युग है जिसने पूरे जगत को लेपटोप व मोबाइल के माध्यम से एकदूसरे को बिलकुल करीब पहुंचा दिया है। जिसकी वजह से ही यह दिवस, पूरे विश्व में, अन्य समारोह की तरह बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है। इसकी महत्वता इसलिए भी बढ़ी है क्योंकि हर किसी के जीवन एक सच्चे मित्र का एक विशेष स्थान होता है। इसको मनाने के भी कई तरीके हैं जैसे अपने दोस्त को मनपसंद उपहार, ग्रीटिंग कार्ड, फूल व विशेष रूप से फ्रेंडशिप बैंड का आदान प्रदान बेहद लोकप्रिय है।
मित्र को दोस्त, फ्रेंड, यार, कुछ भी कहें मित्र तो मित्र ही होता है। यही सच भी है कि सच्चा मित्र आपके सबसे करीब होता है। कुछ लोगों का मानना है कि हर वह वस्तु जो प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से आपको शारीरिक, मानसिक अथवा आर्थिक लाभ के अलावा ज़िंदगी के अहम मौकों पर आपका साथ निभाने में सदा आपका साथ निभाए वही आपका अच्छा दोस्त होती है। कोई अपनी माँ, पिता, भाई, बहिन, पति, पत्नी, बेटा, बेटी, प्रेमी, प्रेमिका या अन्य किसी रिश्ते में मित्र की झलक देखता है।
जनाब मित्र की क्या परिभाषा है? दोस्ती में न कोई अमीरी होती है न कोई सेक्स, न उम्र व न कोई जाति का बंधन होता है। इसमें सिर्फ आत्मा से आत्मा का मिलन होता है। महाभारत काल में, भगवान श्री कृष्ण व सुदामा की दोस्ती के किस्से, हीर व रांझा का प्यार आज भी चर्चित हैं। ।
इसके अलावा आपके पालतू जानवर, आपसे संबंध रखने वाली रोज़मर्रा की आवशयक वस्तुएँ भी इसी श्रेणी में आती हैं। ये सभी आपके जीवन के अभिन्न अंग हैं। जी हाँ यह चौंकने का विषय नहीं है आपके इंसान के अलावा पालतू जानवर व निर्जीव वस्तुयों जैसे कुर्सी, बिस्तर, वाहन, घर, कार्यालय तथा अन्य रोज़मर्रा की वस्तुओं से अनायास ही लगाव बोले या दोस्ती हो ही जाती है। आपने देखा होगा कि किसी व्यक्ति का कुत्ता व बिल्ली खो जाए अथवा उसकी मृत्यु हो जाए तो वह कितना विचलित हो जाता है। कुर्सी का लगाव तो जग जाहिर है इसके लगाव से तो अच्छे-अच्छे विद्वान भी नतमस्तक हो जाते हैं।अब विषय यह है कि अपने दोस्तों से मधुर संबंध कैसे बनाएँ रखे जाएँ। जी हाँ, अच्छे दोस्तों को जीवन भर साथ लेकर चलना है तो हमें एक दूसरे की भावनाओं की कद्र करनी होगी। दोस्ती में औपचारिकता का कोई स्थान नहीं होता है। यह तो दिल से दिल का नाता है, जो खुदा अपने घर में ही बनाता है।