वेद संसार के अद्भुत ज्ञान का भंडार है । सभी विद्याओं का मूल वेदों में विद्दमान है । वेदों के प्राचीन भाष्यकार महर्षि सायणाचार्य ने कहा है कि वेद वे प्राचीन ग्रन्थ हैं जिनमें इच्छित पदार्थो की प्राप्ति और अनिष्टकारी संभावनाओं से सुरक्षित रहने के दिव्य उपाय बताये गये हैं – जैसे इस भौतिक जगत को देखने के लिए नेत्रों की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार दिव्य तत्वों को जानने तथा समझने के लिए वेदरूपी नेत्रों की आवश्यकता होती है । अतः वेद दिव्य तथा अलौकिक तत्वों को लौकिक रूप से लाभदायी बनाने की सेतु है । परंतु इससे पहले उस अलौकिक तत्वों को जानने तथा समझने की अति आवश्यकता है । समय-2 पर भारतीय मनीषियों ने अलौकिक तत्वों के सरलीकरण की प्रक्रिया को जारी रखा । इसी सन्दर्भ में वेदव्यास जी का प्रयास सराहनीय है । आरम्भ में वेद एक ही था परंतु बाद में श्रीकृष्ण द्वैपायन महामुनि व्यास जी ने वेद को चार भागों में विभाजित किया – ऋृग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद एवं अथर्ववेद । इसमें ऋृग्वेद प्राचीनतम है । आज वेद के ज्ञान को समझने तथा उसे मानवोपयोगी बनाने की जरूरत है । आधुनिक काल में प्रकाश की गति की गणना जेम्स क्लर्क मैक्सवेल (James Clerk Maxwell) ने 19वी शताब्दी में की थी परंतु महर्षि सायण, जो वेदों के महान भाष्यकार थे, ने 14वीं शताब्दी में ही प्रकाश की गति की गणना ऋृग्वेद के आधार पर कर डाली थी । यथा –
‘तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि सूर्य ।
विश्वमा भासि रोचनम् ।।’ ।।ऋृग्वेद 1.50.4।।
अर्थात् हे सूर्य ! तुम तीव्रगामी एवं सर्वसुन्दर तथा प्रकाश के दाता और जगत् को प्रकाशित करने वाले हो । इसी पर भाष्य करते हुए महर्षि सायण ने लिखा है –
‘तथा च स्मर्यते योजनानां सहस्त्रं द्वे द्वे शते-द्वे च योजने एकेन निमिषार्धेन क्रममाण नमोऽस्तुते ।।’
।। सायण ऋृग्वेद भाष्य 1.50.4 ।।
अर्थात् आधे निमेष में 2202 योजन का मार्गक्रमण करने वाले प्रकाश तुम्हें नमस्कार है ।
उपर्युक्त सिद्धान्त के आधार पर सूर्य के प्रकाश की गति निकालने से पहले हमें निमेश तथा योजन के बारे में जानने की आवष्यकता है ।
निमेश की गणना –
महाभारत के शांतिपर्व के आधार पर
15 निमेष = 1 काष्ठा
30 काष्ठा = 1 कला
30.3 कला = 1 मूहुर्त
30 मूहुर्त = 1 अहोरात्र
1 अहोरात्र = 1 दिन-रात
1 दिन-रात = 24 घंटे
अतः 24 घंटा = 30×30.3x30x15 निमेश = 24x60x60 सेकेण्ड
अर्थात् 409050 निमेश =86,400 सेकेण्ड
अतः 1/2 निमेश = 0.1056 सेकेण्ड – अ
योजन की गणना –
जहां तक दूरी का सवाल है तो हमारे पुराणों में योजन को एक प्रामाणिक इकाई माना गया है । इसकी गणना इस प्रकार होती है –
4 हस्त = 1 धनु
2000 धनु = 1 गवयुति (वह दूरी जहां तक एक सामान्य भारतीय गौ की ध्वनि सुनाई देती है)
4 गवयुति = 1 योजन
1 योजन = 4 ग12000 फीट त्र 48,000 फीट
48,000 फीट = 9.09 मील
अर्थात् 1 योजन = 9.09 मील – आ
महर्षि सायण ने जो सूत्र दिया अर्थात् सूर्य का प्रकाश 1/2 निमेश में 2202 योजन चलता है – इसे उन्होंने कैसे निकाला है इसकी जानकारी हमें नही है । परंतु इसके आधार पर सूर्य के प्रकाश की गति इस प्रकार है –
प्रकाश की गति = 2202 योजन प्रति 1/2 निमेश
= 2202 योजन प्रति 0.1056 सेकेण्ड – समीकरण ‘अ’ से
= 2202×9.09 मील प्रति 0.1056 सेकेण्ड -समीकरण ‘आ’ से
= 189547.15909 मील प्रति सेकेण्ड