लंबे समय से आप सब टीवी शो ‘एफआईआर’ में दबंग इंस्पेक्टर के किरदार के द्वारा छोटे पर अपनी पहचान बनाने वाली अभिनेत्री कविता कौशिक के बारे में कम ही लोग जानते होगे कि वह कहानी घर घर की, कुटुब शक्तिमान, रात होने को है, तुम्हारी दिशा, नच वलिये, केसर, सीआईडी सहित अनेकों धारावाहिकों में अपने अभिनस के रंग बिखेर चुकी है। इन दिनो सब टीवी उनके दो शों का एक साथ प्रसारण चल रहा है ,दुसरी और कविता फिल्मों में भी काम रक रही है। वे अपने करियर और भविष्य को लेकर क्या सोचती है जानते है उनकी ही जुबानीः
एक साथ दो सीरियल ऑन-एयर हैं। काफी अच्छा लग रहा होगा?
लंबे समय से आप ‘एफआईआर’ में दबंग इंस्पेक्टर की भूमिका में हैं। इतने वक्त में ठप्पा लग जाता है कि फलां कलाकार सिर्फ इसी तरह के रोल कर सकता है। इससे निकलना आसान होगा?
मैं ठप्पा लगने वाली बात में यकीन नहीं करती। मुझे अपना काम अच्छे से आता है। जब आप कुछ बडा कर रहे होते हैं तो कई जगह से विरोध भी होने लगता है, एक लहर-सी उठती है। लेकिन मुझे इसकी परवाह नहीं है।
‘तोता वेड्स मैना’ शुरू हुआ नहीं कि ट्वीट आने लगे। लोग पहचान ही नहीं पाए कि मैना की भूमिका में कविता है। इंस्पेक्टर तो खैर मैं किसी भी तरह से लगी ही नहीं। कुछ ने तो यह भी लिखा कि मैना की भूमिका चंद्रमुखी के किरदार से ज्यादा रोचक लग रही है।
दोनों सीरियल को करते हुए कैसी चुनौतियां हैं एक कलाकार के रूप में?
चुनौती कोई नहीं है लेकिन मजा नहीं आ रहा है एक स्टूडियो से दूसरे स्टूडियो के बीच दौडते हुए। सच बताऊं तो मुझे ज्यादा मजा तब आएगा जब मैं पूरा ध्यान एक रोल पर लगा पाऊंगी। मैना की भूमिका के लिए बातचीत का अलग लहजा पकडा है मैंने। चंद्रमुखी की भूमिका में खुद को मैं साबित कर चुकी हूं, तो अब मैना के किरदार में अपने को साबित करना चाहती हूं।
दोनों भूमिकाओं में लहजा अलग-अलग है, मुश्किल नहीं होती?
मुश्किल नहीं, परेशानी होती है। दूसरे किरदार में जाने से पहले किरदार का लबादा उतार फेंकना होता है। चंद्रमुखी बहुत हेवी कैरेक्टर है, उसके लिए आवाज में भारीपन लाना होता है। मैना की आवाज हल्की है। यह बदलाव करने में बहुत मेहनत लगती है, जो मेरी सेहत पर भी भारी पड रहा है। पश्चिमी देशों में एक भूमिका के बाद लोग बडा ब्रेक लेते हैं, मनोविज्ञानी की सलाह लेते हैं। हमारे यहां तो एक हफ्ते का ब्रेक भी नहीं मिल पाता।
चंद्रमुखी चैटाला के रोल के लिए बेहतरीन लहजा पकडा आपने।वह आपका स्वाभाविक लहजा है?
नहीं-नहीं, मैं हरियाणवी नहीं हूं। मां बंगाली हैं, पापा राजस्थान के हैं। पढ़ाई नैनीताल व दिल्ली में हुई है। पापा की नौकरी की वजह से पूरा देश घूमी हूं। जहां तक हरियाणवी लहजे की बात है, तो एक अच्छे कलाकार को अलग-अलग भाषाओं व जगहों की जानकारी होनी चाहिए। कोई यूं ही एक्टर नहीं बन जाता, उसके लिए लोगों तथा उनके तौर-तरीकों को ऑब्जर्व करना और फिर उन्हें निभाना आना चाहिए, जो मैं बखूबी कर लेती हूं।
जी हाँ । मैंने एक हसीना थी, मुंमई कटिंग, फिल्मसिटी और मिल्खा सिंह कर रही हूँ । फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ में फरहान अख्तर है।