विद्यालय र चक डस्टर_एक संस्मरण

नेपाली मूल लेखिका-अन्जना पौडेल”अनुश्रुति”
हिन्दी अनुवादक———–लक्ष्मी सुवेदी।

        कक्षा आठ में पढा रही थी।उस दिन हमारे प्रिन्सिपल राजन सर मेरे कक्षा के आगे से बार- बार इधर से उधर कर रहे थे।उन दिनों मुझे बहुत तकलीफ़ हो रही थी। विद्यार्थियों को कक्षा कार्य देकर जैसे ही मैं विद्यार्थी के बेन्च पर बैठकर बच्चों को देख रही थी कि अचानक प्रिन्सिपल जी मेरे कक्षा में प्रवेश किए।”आर यू ओके ,अन्जना  मेम? आर यू फलोईङ रुल्स अफ स्कुल ?”सर जी ने और बहुत कुछ कहा। मैं कांपते हुए  सिर झुकाकर खड़ी हो गई।   सर कक्षा से बाहर निकल आए। आंखों को छुआ तो अश्रु गिर रहे थे।कैसी घटना घटी जो कभी सोचा ही नहीं था। विद्यार्थियों को मेरे बारे में जानकारी थी होगी  । ्”मेम प्लिज डन्ट क्राइ “बोलते हुए ,वे लोग भी  मेरे साथ  रोने लगे।

जापान के सहयोग से बना हुआ नेपाल जापान स्कूल २०६३साल में  बसुन्धरा,गोंगबुॅ एरिया में एक  अच्छा विद्यालय के रुप में प्रसिद्ध था।जापानी शिक्षक  भी इस विद्यालय में पढ़ाते थे। बस में सवार होकर दूर दूर से विद्यार्थी पढ़ने के लिए आते थे और नियम भी कड़े थे।दिन भर खड़े होकर पढ़ाने का नियम था।सभी कक्षाओं से कुर्सी हटाया गया था। लेजर पिरियड में भी फुर्सत नहीं था।स्टाफ रुम में बैठकर कपी  चेक किया जाता था। नाश्ता खाते वक्त भी कभी ग्राउंड  में तो कभी कक्षा में ड्युटि करना पड़ता था।उस दिन धना मेम , कविता मेम लोगों को उस बात का पता चल गया था ।घर की ओर  जाते समय में उन्होंने मुझे कहा,  ”  आप की इस अवस्था में भी  सर ने जो आप के साथ अमानवीय व्यवहार किया,  हमें बहुत बुरा  लगा, मेम।”

बड़ा बेटा एन्थस इसी विद्यालय में यु के जी में पढ़ता था। विद्यालय छुट्टी होने के बाद चार बजे बेटे का हाथ पकड़कर  पैदल ही  घर चली आई,घर से पांच मिनट की दूरी पर स्कूल था। अन्य दिनों की तरह घर में पहुंचने बाद  थैली को मैंने रखा, कपड़े बदलकर रसोई की और चली गई ।क्योंकि खुद न करें तो दूसरा कोई विकल्प भी नहीं था।

 नास्ता बनाकर सब को देने के बाद रात का भोजन बनाना ,सभी लोगों के खाने के बाद खुद खाना,काम खत्म कर  सोना,  दैनंदिन का कार्य था ।विद्यार्थियों के  होमवर्क कापियों को घर में चेक करना,चेक करने के बाद भी रिपोर्ट कार्ड,मार्कसिट तैयार करना ,कक्षा शिक्षक का अति महत्वपूर्ण और जिम्मेदारी पूर्ण  कार्य था।    कम्प्यूटर में मार्कसिट बनाने में कभी कभी श्रीमान भी सहयता कर देते थे।बेटा एन्थस अपना होमवर्क खत्म करने के बाद मेरे साथ सोने के लिए आंखों को मलते हुए इन्तजार करता था। उसे कपी में नम्बर जोड़ना बहुत पसन्द था। उसके द्वारा नम्बर जोड़ने के बाद मैं पुनः चेक करती थी।उस समय एक शिक्षक का परिवार ऐसा था ,  जो आज भी शायद बहुतों का  होगा  । सुबह उठकर घर के कामों को निपटाने के बाद भोजन बनाना,  खाना ,और खुद तैयार होकर बेटे को तैयार करने के बाद जल्दी जल्दी लम्बे लम्बे क़दमों से विद्यालय के एसम्वली में समय पर पहुंचना ,मेरा दैनिक कार्य था।आदत पड़ गई थी कहा जा सकता है।

 प्रिन्सिपल सर के डांट को याद कर दूसरे दिन सर को देखते ही  डर गई।क्या हो गया है, मुझे ? डरते डरते, “गुड़ मर्निङ “सर कहा। 

   एसेम्वली के तुरन्त बाद कक्षा में जाकर हाजिरी ले रही थी कि  चपरासी बुलाने को आया।”अन्जना  मेम, प्रिन्सिपल सर के कमरे में जाने के लिए कहा गया है।” हाजिरी लेकर साथ वाले कक्षा की रिजु मिस को मेरी कक्षा की ओर ध्यान देने की बात कहते हुए मैं प्रिन्सिपल सर के आफिस रुम की ओर चलीं गईं। दरवाजे में पहुंच कर मैंने”एस्क्यूज मी सर, में आई कम इन “कह रहीं थीं कि सर  ने उठते हुए हाथ से दिखाते हुए बैठने का इशारा करते हुए कहा”,प्लीज मेम कम इन।”आइ यम सो सॉरी फर यस्टर डे।प्लीज एस्क्यूज मी मेम। मुझे माफ़ कर दिजिए। मुझसे बड़ी गलती हो गई।आइ एम सॉरी मेम। मुझे इस बात का पता नहीं था मेम,कल ही पता चला। कुछ दिन पहले से ही आपको देख रहा था क्यों मेम ऐसा कर रही थी?   मैं सोच रहा था कि पहले तो मेम चुस्त थी, अभी क्यों चुस्त नहीं  दिखाई पड़ रही है?”

  “मेम कल से आप लाइब्रेरी कक्षा को देख दिजियेगा और कुछ कक्षा ले दिजियेगा। कल मैंने बोर्ड में इस बात को रखा है”।प्रिन्सिपल सर और विद्यालय परिवार का इस निर्णय से मुझे बहुत राहत महसूस हुई। अभी भी  विद्यालय परिवार को याद करतीं हूं और धन्यवाद भी देना चाहती हूं।

प्राय सभी  मेम मेरी पसंद की चीजें बनाकर  लाती थी ।रिजु मेम तो मुझे मां की तरह सोचकर और क्या  क्या खरीद लाती थी। विशाल नगर का टिपटाप   दुकान  से समोसा ,जलेबी, लखामारी योमरी ,लैनचौर के दूध डायरी से बोतल मिल्क भी लाकर खिलाती थी। चपरासी दूध गर्म कर देता था।जापानिज मेम फल-फूल लाकर देती थी। काटने वाले फल को खुद चाकू से काटकर खिलाती थी। पौष्टिक होता है  कहते हुए  स्टीकी राइस भी लाकर देती थी।

उन दिनों मैं काली चाय बहुत पसन्द करती थी। छोटा बेटा आर्यन अभी मुझे चिढ़ाता है‌ “मैं जब  आप के छोटे घर (कोख ) में था तभी शिक्षक हो गया था, मां।”कभी गुस्सा करते हुए कहता है ,” आपने काली चाय क्यों पी? मुझे काला बनाने के लिए?”

   हिन्दी चलचित्र “चक एण्ड डस्टर” देखने के बाद   अपने  चक एण्ड डस्टर के इस विशेष दिन की याद   आज ताजा हो गईं।

गुवाहाटी, असम।