डॉ. वेदप्रताप वैदिक
भारत सरकार अपराधियों की पहचान के लिए एक नया कानून बनाना चाहती है। उसने संसद में जो विधेयक पेश किया है, उसके तहत अब पुलिस उन सभी लोगों की पहचान के नए तरीके अपनाएगी, जो या तो गिरफ्तार हुए हैं या जिन्हें सजा हुई है या जो नजरबंद किए गए हैं। ऐसे लोगों की पहचान का पुराना सिलसिला 1920 में बने कानून के तहत अभी तक चल रहा है। 100 साल पुराने इस कानून के मुताबिक उक्त श्रेणियों के लोगों की उंगलियों, हथेलियों और पगथलियों के छापे ले लिये जाते हैं लेकिन अब इस नए कानून के मुताबिक उक्त तीनों के अलावा उनके फोटो, आंख की पुतलियों के चित्र, शारीरिक और जैविक तत्वों, उनके हस्ताक्षर आदि के पहचान-प्रमाण भी पुलिस अपने पास संभालकर रखेगी। ये प्रमाण 75 वर्ष तक रखे जाएंगे। इस विधेयक के संसद में पेश होते ही विपक्षी सांसदों ने इस पर हमला बोल दिया है। उनका कहना है कि इस तरह के पहचान-प्रमाण इकट्ठे करना मानव अधिकारों का हनन है। यह लोगों की गोपनीयता का सरासर उल्लंघन है। ऐसे लोगों की भी गोपनीयता इस कानून से भंग होती रहेगी, जिन्हें फर्जी आरोपों में गिरफ्तार और नजरबंद कर लिया गया होगा। पुलिस तो उन सरकार-विरोधी प्रदर्शनकारियों को पकड़कर उनके सारी निजी और गोपनीय जानकारियां भी इकट्ठी कर लेगी, जिनका अपराध से दूर-दूर का भी कोई संबंध नहीं है। विपक्षी सदस्यों का आरोप था कि यह विधेयक न केवल भारतीय संविधान बल्कि संयुक्तराष्ट्र संघ घोषणा-पत्र का भी उल्लंघन करता है। उन्हें यह इतना आपत्तिजनक लगा कि यह विधेयक पेश किया जाए या नहीं, इस मुद्दे पर भी मतदान करवाना पड़ गया। विधेयक पेश तो हो गया है, लेकिन मेरी समझ में यह नहीं आ रहा है कि हमारे नेता लोग अपनी गोपनीयता को इतना ज्यादा महत्व क्यों देते हैं? उनका जीवन और नागरिकों का जीवन खुली किताब की तरह क्यों नहीं होना चाहिए? आप कोई बात या काम छिपाना चाहते हैं, इसका मतलब क्या यह नहीं हुआ कि आप कोई न कोई गलत काम कर रहे हैं? इसके अलावा अब अपराध करने के बहुत-से नए तरीके अपनाए जाने लगे हैं तो उनको पकड़ने के 100 साल पुराने तरीकों से आप क्यों चिपके रहना चाहते हैं? अब ऐसे तरीके पुलिस को क्यों नहीं अपनाना चाहिए, जिनसे अपराधियों की पहचान तुरंत हो सके और उनका जांच से बच निकलना भी मुश्किल हो। इस कानून में एक सराहनीय प्रावधान यह भी है कि यदि किसी ऐसे व्यक्ति के पहचान-प्रमाण पुलिस ने इकट्ठे किए हैं, जिसने पहले कभी कोई अपराध नहीं किया हो और वर्तमान मुकदमे में अदालत ने जिसे निर्दोष पाया हो, उसके सारे पहचान-प्रमाण नष्ट कर दिए जाएंगे। अर्थात इस कानून का मूल उद्देश्य अपराधियों को तुरंत पकड़ना है न कि निर्दोष लोगों की निजता या गोपनीयता भंग करना।