द्वारका की सबसे विकट समस्या है पानी!

चाहे वह पीने का हो या फिर गंदे नाले

अनुराग रंजन सिंह

गंदे नाले से आती दुर्गन्ध द्वारकावासियों के लिए एक ऐसी समस्या है जिससे निजात पाना बहुत ही कठिन है ऐसा कहना है सेक्टर 11 स्थित कारगील अपाटर्मेंट में रहने वाले जसजीत जी का। वे कहते हैं कि खुले नाले की बदबू और साथ ही साथ मच्छड़ों के आतंक ने जीना दूभर कर दिया है। उनका मानना है कि अगर इस समस्या से निजात पाने का विकल्प न निकाला गया तो नाले के आसपास के इलाके में रहने वालों को सांस से जुड़ी तमाम समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। उनका कहना है कि गर्मी आरै बरसात के मासैम के लिहाज से नालों की साफ-सर्फाइ के मदुदे को लकेर दिल्ली जल बार्डे के अधिकारियों को बार-बार हमने शिकायत की पर आज तक कोई पुख्ता कार्यवाई नही हुई ।

वहीं दूसरी तरफ दिल्ली जल बोर्ड के अधिकारियों का कहना है कि जल बोर्ड के मुख्य कार्यालय से ही सही कार्यवाई की उम्मीद की जा सकती है। आखिर इस तरह की परेशानियों से निजात पाने के लिए लोग

कहां-कहां तक भाग दौड़ करें। गौरतलब है कि द्वारका में इस तरह की तमाम परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए द्वारका के सेक्टर 16 डी. ब्लाक में दिल्ली जल बोर्ड की 20 एम.जी.डीसीवेज वाटर ट्रिटमेंट प्लांट लगाया गया है।


प्लांट के अधिकारियों से बहुत-सी ऐसी बातों का पता चला जो वर्तमान और भविष्य की योजनाओं का उजागर करता है। साथ ही साथ कुछ ऐसी परिस्थितियां उभर कर आई जिससे जल बोर्ड से हुई चूक का खुलासा भी होता है। अधिकारियों की माने तो उनका कहना है कि हम वही करते हैं जो मुख्य कार्यालय आदेश करता है।

किसी भी विभाग में ऊपर से नीचे तक के अधिकारियों की अमूमन यही स्थिति है। यह चिंता का विषय है कि आखिर उचित कार्यवाई को लेकर ये अधिकारी किसके आदेशों का इंतजार करते हैं। गौर करने वाली बात यह भी है कि मंत्रालय में बैठे नेता ही सम्बंधित विभागों को चुनावी अवसर भांपते हुए आदेश देते हैं ताकि जनता उन्हें अपना शुभचिंतक समझने की भूल करती रहे।

द्वारका की सबसे विकट समस्या पानी ही है चाहे वह पीने का हो या फिर गंदे नाले का, यह कहना है द्वारका सेक्टर 16 स्थित सीवेज वाटर ट्रिटमेंट प्लांट के जे.ई. का। उन्होंने वाटर ट्रिटमेंट प्लांट की गतिविधियों को उजागर करते हुए बताया कि सीवजे वाटॅर की निकासी के लिए द्वारका में तीन बड़े – बड़े नाले हैं जो आपस में एक-दुसरे से जुड़े हैं । इन तीनों नालों की साफ-सफाई की जिम्मेदारी डीडीए, एमसीडी और जल बोर्ड की है। उनका कहना है कि ये तीनों विभाग अगर एक साथ मिलकर इस काम को करें तो, नाले की गंदगी को एक साथ ही दूर किया जा सकता है। लेकिन अलग-अलग समय पर तीनों विभाग अपने-अपने हिस्से की सफाई करते हैं। असल समस्या यह है कि डीडीए, एमसीडी और जल बोर्ड को यही काम एक साथ सौंपा गया है। इन तीनों विभागों में इस काम को लेकर कोई आपसी तालमेल नहीं है जिसके कारण यह परेशानी दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है। शहर में जल-आपूर्ति की किल्लत है और घरेलू-आपूर्ति दुरूस्त है लेकिन बागबानी की जरूरत पूरी नहीं हो पा रही है। जिसके कारण दिल्ली के सभी सार्वजनिक पार्क, बाग, बगीचे सूखे ही रहते हैं। शहरी संदर्भ में देखें तो जहां तक आपूर्ति की बात है तो गंदे नालों से पानी निकल रहा है लेकिन पार्कों को पानी नहीं मिल रहा है। इसलिए पार्कों के आसपास के गंदे पानी के श्रोत्र को साफ करन का प्रोजेक्ट बनाया गया है । सूत्रों की माने तो इस प्रोजेक्ट को 7 स्टेप्स में 2014 तक पूरा किया जाना तय है।

विश्वा इंफ्रा स्ट्रक्चर और यूनाइटेड गोल्फ कन्सट्रक्सन के द्वारा संयुक्त रूप से द्वारका सेक्टर 16 के नाले के नज़दीक इस प्रोजेक्ट के पहले स्टेप्स पर काम किया जा रहा है। प्रोजेक्ट इंचार्ज श्री आनंद बताते हैं कि दिल्ली की सीवेज वाटर की समस्या से निजात पाने के लिए कुछ 56 लाइन बिछाए जाने की योजना है। इस प्रोजेक्ट में शहादरा सहित यमुना नदी के नज़दीक पाइप लाइनों को बिछाया जाना है। उन्होंने बताया कि द्वारका में 2 किमी. तक 1600 एम.एम. की पाइप लाइन बिछाए जाने का काम चल रहा है। यह पाइप लाइन सेक्टर 16 स्थित सीवेज वाटर ट्रिटमेंट प्लांट से जोड़ा जा रहा है ताकि नाले के पानी को वहां तक पहुंचाया जा सके।

सेक्टर 16 स्थित सीवेज वाटर ट्रिटमेंट प्लांट के जे.ई ने बताया कि 2014 में इस प्रोजेक्ट के पूरा होते ही नाले का पानी प्लांट तक सप्लाई किया जाएगा। नाले के पानी का ट्रिटमेंट कर बागबानी विभाग को यह पानी मुहैया कराए जाने की योजना है। जे.ई. का कहना है कि इस प्रोजेक्ट का एक और लाभ यह होगा कि बायो गैस इलेक्ट्रीक के साथ-साथ बायो प्रोडक्ट खाद का उत्पादन भी किया जा सकेगा, जिसका लाभ आसपास के गांवों को मिलेगा।

दिल्ली में गंदे अपशिष्ट जल के अनेक नाले सभी स्थानों पर इधर-उधर से निकलकर यमुना पर प्रदूषण का बोझ बढ़ा रहे हैं। फिलहाल प्रदूषण का बोझ बढ़ाने वाले 22 बड़े नाले हैं। ये शहरी नाले प्राकृतिक रूप से बने हैं और वर्षा आदि के जल को ऊपरी इलाकों से निचले इलाकों में बहाकर ले जाते हुए अंत में नदियों से जुड़ते हैं। भारत की नदियां सबसे ज्यादा प्रदूषित हैं और दूसरे विकासशील देशों की तुलना में 10 गुना अधिक रोगजनक प्रदूषक उनमें समाहित हैं।