प्रवीण कुमार शर्मा
हर रंग है, हल्का-हल्का
हर ज़ाम है, छलका-छलका
दिल की कालस
हाथो पर आ गई क्यों?
कहा है, हरे, लाल, पीले रगं
अरे, ये कैसी होली है।
मिठाई में मिलावट
रिस्तो में खटास
गले मिले है, आज काले दिल
काला रंग लेकर क्यों?
कहा है, हरे, लाल, पीले रगं
अरे, ये कैसी होली है।
मिठे की जगह नमकीन
हर कोई है, ग़मग़ीन
कड़वाहट इतनी है, की नमक भी
ज़हर सा लगता है, आज क्यों?
कहा है, हरे, लाल, पीले रगं
अरे, ये कैसी होली है।
शरबत की ज़गह शराब
हर किसी की आदत है, यहा खराब
हर रंग काला है, आज़ क्यों?
सबके मुहॅं हाथ काले है, आज़ क्यों??
कहा है, हरे, लाल, पीले रगं
अरे, ये कैसी होली है।
ये कैसी होली है।।