औषधीय पौधों पर आधारित भारतीय चिकित्सा पद्धति पर विशेष ध्यान देने एवं उस पर गहन अध्ययन की जरूरत है। इससे जनमानस के स्वास्थ्य के साथ देश की अर्थव्यवस्था को भी बेहतर बनाया जा सकता है। यह उद्गार सांसद एवं संसदीय लोक लेखा समिति के अध्यक्ष डा. मुरली मनोहर जोशी ने व्यक्त किया। वे ग्रामीण क्षेत्रीय विकास परिषद् एवं वैज्ञानिक तथा आद्यौगिक अनुसंधान परिषद् द्वारा कई अन्य संस्थाओं के सहयोग से विज्ञान भवन में ‘पंचगव्य एवं दिव्य औषधीय पौधों एवं उनसे निर्मित औषधीय उत्पाद से सम्बधित दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन एवं प्रदर्शनी’ के उद्घाटन अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे।
डा.जोशी ने कहा कि मानव एवं पर्यावरण परस्पर एक-दूसरे पर निर्भर हैं, और पर्यावरण के निर्माण में वनस्पतीय पौधों की विशेष भूमिका है। जिसमें से चिकित्सकीय गुणों के चलते औषधीय पौधों की अत्यंत महत्ता है। उन्होंने कहा कि प्राचीन काल से ही मानव को औषधीय पौधों के गुणों का ज्ञान था। यही नहीं पशुओं को भी औषधीय पौधों का ज्ञान है, और वे भी अपने कई रोगों का उपचार स्वयं इसके माध्यम से करते हैं। डा. मुरली मनोहर जोशी ने आयोजकों की सराहना करते हुए कहा कि दिव्य औषधीय पौधे एवं उनसे निर्मित उत्पाद से सम्बधित सम्मेलन का आयोजन देश हित ही नहीं बल्कि विश्व हित का कार्य है।
विशिष्ट अतिथि अहिंसा विश्वभारती के आचार्य डा. लोकेश मुनि ने अपने सम्बोधन में कहा कि जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर स्वामी जी ने कहा है कि वनस्पति के अंदर भी चेतना है। अतः इस सम्मेलन की भावना मूलरूप से निर्माण एवं प्रकृति रक्षा की भावना है। ‘द आर्ट आफ लिविंग’ के संस्थापक श्री श्री रविशंकर जी ने भी टेलिकान्फ्रेसिंग के जरिये सम्मेलन को सम्बोधित किया।
कार्यक्रम के आयोजन में ग्रामीण क्षेत्रीय विकास परिषद् के अध्यक्ष डा. देवेन्द्र शर्मा, उपाध्यक्ष इंजि. एस.डी. गर्ग, संस्कारम् के संस्थापक श्री ईश्वर दयाल, सी.एस.आई.आर.-एन.बी.आर.आई. के निदेशक डा. एस.सी.नौटियाल, सी.एस.आई.आर.-सीमैप के डा. हर्मेश चैहान, राष्ट्रीय गोधन महासंघ के विजय खुराना, भारत विकास परिषद् दिल्ली प्रदेश उत्तर के अध्यक्ष श्री राजकुमार जैन सहित आयुष विभाग एवं आरोग्य भारती आदि संस्थाओं की अहम भूमिका है।