हमें सभी शंकाओं व संशय रहित कर जीव व ब्रह्म के बीच गीता सेतु स्वरुप है |
अठारह अध्याय से संयुक्त गीता वो सहज व सरल तरीके से अपने जीवन की सार्थकता करने का पूर्ण अवसर प्रदान करती है |
ज्ञानी तो सभी हैं, मानने में अंतर ला देता है | जो जितनी मात्र में समझता है (मानता है),उसको क्रियान्वित करता है,वो उतना ही सफल होता है |
जो गीता का सार समझ लेता है वो करना,जानना,मानना सभी से मुक्त हो परम पद आनंद की अनुभूति कर समता भाव में आ जाता है | वह स्वयं आनंद स्वरुप ही हो जाता है |
सात्त्विक कर्म (कर्मयोग) करने से मन की शुद्धि राग द्धेष रहित हो कर समता की अनुभूति करते हुए ज्ञान (ज्ञानयोग) को प्राप्त करता है फिर परमात्मा में भक्ति(भक्तियोग) का प्रेम का उदय हो जाता है जिससे अपने आत्म स्वरुप (परमात्मा) में स्थित होकर परम आनंद की अनुभूति करता है | यही गीता का ध्येय है |