मधुरिता
मानव जीवन में पहला कदम बहुत अहम् भूमिका निभाता है। बचपन में जब चलना सीखता है तो धरती पर पहला कदम ही बढाता है। माता पिता खुश होतें हैं कि हमारा बच्चा चलना सीख रहा है। उसे हमेशा अपनी निगरानी में रखते हैं कि कंही वह गिर ना जाये। उसे हमेशा अहसास होता रहता कि अगर हम गिर गए तो हमें माता बचा लेगी, पिता सहारा देंगे।
दिन बीतते रहते हैं और बच्चे बड़े होते रहते हैं। माता पिता अपने को बंधन मुक्त समझने लगते हैं बस यही एक भूल अनजाने मैं होती है। जिसके परिणामस्वरूप किसी का पहला कदम सिगरेट पर जाता है और बढ़ते बढ़ते बोतल पर समाप्त होता है। कोई अपने विवेक से पहला कदम उच्च शिक्षा में रखता है तो प्रतिभाशाली बन कर अपने को गौरवशाली बनाते हैं साथ में देश व विदेश में भी उच्च स्थान बनाते हैं। किसी भी क्षेत्र में पहला कदम ही महत्वपूर्ण है।
बचपन से ही बच्चे माता पिता के साथ टेलीविजन व कंप्यूटर पर सीरियल व् सिनेमा देखते हैं जो उनके कोमल भावनाओं पर गहरी छाप छोड़ते हैं जिसे वे ऐसा प्रयोग करने की इच्छा से कोई मौका नहीं चूकते और समाज घर परिवार इसका भयावह परिणाम भोगने को मजबूर हो रहे है।
यंहा तक कंप्यूटर पर गेम में भी तो वे ढिशुम ढिशुम व रेसिंग करना सिखतें है सीसे उनके मानसिक पटल पर हिंसा अंकित होती जाती है आवर वे फिर कभी अपने भाई – बहन में लड़ाई का रूप लेती है तो कभी स्कूल या पार्क में दोस्तों से भिडत होती है।
बच्चा स्कूल से आकर अपनी माँ से कहता है – माँ मैंने अपने दोस्त अंकित की जमकर पिटाई की – इस पर माँ कोई जवाब नहीं देती ना ही उसे समझती है बल्कि वो खुश होती है कि मेरा बेटा बलवान है , वो दूसरों को पीट कर आया है, मार खा कर नहीं आया। वह उसे उल्टा पीठ ठोक कर शाबाशी देती है ना की उसे समझाती है कि यह गलत बात है किसी को मारना नहीं चाहिए। उसे कोई नैतिक शिक्षा देकर , समझा कर वहीँ रोक दे, ऐसा करने का समय कहाँ है आज कल के माता पिता के पास।
एक विचित्र मानसिक समस्या जो प्राय: बच्चे, बूढ़े, जवान सभी में ये प्रवृति बढती जा रही है वो है – बोर होना। आश्चर्य की बात है कि एक छोटे बच्चे के मुख से भी यह शब्द सुन सकते हैं – हम इस खिलोने से बोर हो गए चलो दूसरा गेम खेलते हैं।
बोर एक ऐसी मानसिक बीमारी बन गयी है जिसका ईलाज किसी डॉक्टर के पास नहीं। इसका ईलाज स्वयं ही कर सकते हैं। हम सुबह होते ही क्या करते है – रिमोट लेते हैं और टेलीविजन ऑन करते हैं फिर चैनल बदलते हैं, बदलते बदलते दिन का शुभारम्भ करते हैं। फिर रात्रि मैं भी तो चैनल ही बदलते बदलते सोते हैं। इससे हमारी प्रवृति भी बदलने की बन गई है।
इस बदलाव से हमारा घर परिवार तथा समाज भी अछूता नहीं रहा। आजकल तलाक की दर भी बढती जा रही है। परिवार विखंडित हो रहा है। माता पिता बोझ समझे जा रहे हैं। बच्चे उच्चश्रिङ्खल हो रहे हैं।
अतः आज हमें कुछ पल रुक कर आत्मावलोकन करने की आवश्यकता है। जिससे हमारा हर कदम सार्थक हो और जिस तरह जीवन का पहला कदम महत्वपूर्ण होता है और घर- परिवार तथा माता-पिता को आनंद से भर देता है, उसी तरह हमारे जीवन का हर कदम आनंद बिखेरे। केवल आपके ही जीवन में नहीं बल्कि परिवार, समाज, देश, विश्व तथा सभी प्राणी के जीवन मैं भी।