मानव मस्तिष्क ईश्वर की सर्वोत्तम आश्चर्यजनक रचनाओं में से एक है । लगभग दो किलोग्राम के वजन वाले मानव मस्तिष्क में असीमित क्षमताएं निहित हैं । मस्तिष्क में लगभग बारह अरब कोशिकाएं हैं और प्रत्येक कोशिका के पांच लाख अंतरसंबंध हैं । इस प्रकार संभव है की मस्तिष्क की कोशिकाओं के अन्तर्सम्बन्ध ब्रह्माण्ड में उपस्थित परमाणुओं की संख्या से भी अधिक हों । वैज्ञानिकों के अनुसार अभी तक मस्तिष्क के केवल 8 % भाग को ही समझा और उपयोग में लाया जा सका है शेष 92 % भाग जानकारी के आभाव में निष्क्रिय अवस्था में अनुपयोगी पड़ा रहता है । अब तक अविष्कृत किसी भी सुपर-कंप्यूटर को मात देने वाला मानव -मस्तिष्क २० अरब पेज की जानकरी आपने में स्टोर करके रख सकता है ।
साधारण अवस्था में मस्तिष्क का जो 92 % भाग निष्क्रय अवस्था में रहता है उसकी क्षमता को जागृत करना और उपयोग में लाना तो दूर की बात है मस्तिष्क का 8 % भाग जो प्रयोग में लाया जाता उसका भी हम लोग दुरुपयोग कर चिंता, अवसाद, मतिभ्रम , स्मरणशक्ति का ह्राष ,एकाग्रता की कमी , ओब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर ,अल्झाइमर, पार्किंसन का शिकार बनते रहते हैं ।
हल्दी, नीम, तुलसी, बासमती चावल सहित योग के कुछ विशिष्ट पोस्चर का पेटेंट करवाने के बाद पश्चिम जगत ने एक बार पुनः एक प्राचीन भारतीय व्यायाम को हाइजैक कर सुपर-ब्रेन योगा के नाम से अपने मल्टी -मिलियन डॉलर के योगा -मार्किट में प्रचारित किया है । सुपर ब्रेन योगा में हाथों को क्रॉस कर कानों को पकड़ कर उठक – बैठक लगाईं जाती है । कान पकड़ कर उठक -बैठक लगवाने की यह प्रक्रिया प्राचीन काल से भारत में शरारती या एकग्रता की कमी वाले विद्यार्थियों को दंड स्वरुप करवाई जाती थी , जिसका एक मात्र मकसद मस्तिष्क को संतुलित रख स्मरण शक्ति और एकाग्रता को बढ़ाना था ।
तमिलनाडू में प्राचीन काल से मंदिरों में गणेश के समक्ष कान पकड़ कर थोप्पुकरणम् {Thoppukaranam }, किया जाता रहा है | ऊपरी तौर पर लगता है की शायद यह अपनी गलतियों की माफ़ी मांगने के लिए किया जाता है लेकिन परोक्ष रूप से इसे स्मृति बढ़ाने और भावनात्मक -अस्थिरता दूर करने के लिए किया जाता रहा है ।
थोप्पुकरणम् के पीछे का विज्ञान
जब जब मस्तिष्क के दोनों गोलार्ध संतुलित अवस्था में होते है तब तब मस्तिष्क से अल्फा तरंगें बहुलता से निकलती हैं , यह अल्फा तरगें ७-१२ साइकिल /सेकंड की होती हैं । इन तरंगों से हमारा शरीर शिथिल हो जाता है और मस्तिष्क तरंगें पृथ्वी के चुम्बकीय स्पंदन शुमान -अनुनाद {Schumann resonance }जिसकी आवृति ७-१/२ साइकिल/सेकंड है के बराबर हो जाती है । मस्तिष्क से निकलने वाले अल्फा तरंगें मस्तिष्क को सृजनात्मकता और अंतर्ज्ञान के प्रादुर्भाव के लिए आवश्यक वातावरण -प्रदान करती हैं । इस समय मस्तिष्क जानकारी ग्रहण करने या प्रसारित करने के लिए अत्यंत क्रियाशील हो जाता है और धीरे धीरे मस्तिष्क के सभी प्रणालियों में सामंजस्य आने लगता है | इस सामंजस्य से शरीर-मन की व्याधियां दूर होने लग जाती हैं । वैज्ञानिक भी यह तथ्य प्रमाणित कर चुके हैं कि आइंस्टीन के मस्तिष्क से अधिकतर समय अल्फा तरगें बहुलता से निकलती थी इसलिए वे एक महानतम अन्वेषक बन सके थे ।
इसके साथ ही कान के निचले भाग [ear -lobe] में मस्तिष्क के ऍक्यूप्रेशर बिंदू होते हैं जो कान पकड़ने से एक्टिव हो जाते हैं । जिससे स्मरण शक्ति का विकास होता है। इसके नियमित अभ्यास से एकाग्रता बढ़ती है और भावात्मक अस्थिरता दूर होती है ।
थोप्पुकरणम् करने की सही विधि :
मुं ह को बंद कर जीभ को मोड़कर ऊपर के तालु से लगाकर माइल्ड -खेचरी मुद्रा लगाएं । { tongue is rolled up to touch the upper soft palate }
अपने दायें कान को बाएं हाथ की उँगलियों से ऐसे पकडे की हाथ का अंगूठा बाहर की तरफ रहे , इसी प्रकार अपने दायें हाथ की उंगलिओं से बाएं कान को पकडे ।
इसके बाद साधरण दंड-बैठक लगाएं { do squatting or normal sit-up exercise }। केवल एक बात का ध्यान रखें की नीचे बैठते समय सांस अंदर लें और खड़े होते समय सांस बाहर छोड़े । सांस लेना और छोडना तथा नीचे बैठना और खड़े होने दोनों में रिदम् या सामंजस्य होना चाहिए ।
शुरुवात में 5-10 स्क्वैट्स करने के बाद धीरे धीर बढा कर 30-35 स्क्वैट्स प्रतिदिन करें ।
*मस्तिष्क में रक्त प्रवाह में वृद्धि होती है । जिससे मस्तिष्क रिचार्ज होता है ।
*एकाग्रता और स्मरणशक्ति काफी बढ़ जाती है ।
*सोचने , समझने की ताकत बढ़ती है ।
*यह मुद्रा ऑटिज्म , एसपर्जर सिंड्रोम , लर्निंग डिसेबिलिटी , बिहेवियर प्रॉब्लम के साथ साथ अल्ज़ाइमर और *पार्किंसन में भी मदद करती है ।
*चिंता , अवसाद , तनाव , खिन्नता इत्यादि दूर होते हैं ।
*हाइपर -एक्टिव बच्चों के मस्तिष्क को यह मुद्रा शांत और फोकस करती है ।
*यह शरीर को लचीला बनाने के साथ शारीरिक संतुलन को कायम रखता है ।
*इससे लोअर बैक पैन के साथ साथ आर्थराइटिस ,गठिया , वेरीकोस वेन के कारण होने वाले गुटनों या पैरों के दर्द से निजात मिलती है ।
*इसके नियमित अभ्यास से वजन भी कम होता है | डाइजेशन सम्बन्धी विकार दूर होते हैं ।
आध्यात्मिक लाभ :
थोप्पुकरणम् में अर्ध खेचरी मुद्रा लगाने से शरीर में एक तरह कर इंटरनल-लॉक लग जाता है जिससे ऊर्जा का ह्रास कम हो जाता है ।
थोप्पुकरणम् में सर्वाधिक प्रभाव मूलाधार चक्र पर पड़ता है सम्भवता इसलिए दक्षिण भारत में लोग गणेश के सन्मुख यह मुद्रा करते हैं क्योंकि गणेश जी मूलाधार चक्र के अधिपति माने जाते हैं ।
मूलाधार में उच्च आध्यात्मिक अनुभूतियों के प्रगटीकरण की क्षमताएं निहित होती है । इस मुद्रा से मूलाधार में स्थित सुप्त शक्ति जागृत होती है और ऊर्ध्वगमन करती है ।
मस्तिष्क के दोनों गोलार्द्धों के संतुलन से इड़ा पिंगल सामान और संतुलित होती हैं और सुषुम्ना का जागरण होता है । यह मुद्रा कुण्डलिनी शक्ति जागरण में भी सहायक है ।
इस मुद्रा के अभ्यास से आज्ञाचक्र की सक्रियता बढ़ती है जिससे पीनल ग्रंथि का क्षेत्र क्रियाशील होता है जो बौद्धिक, भावनात्मक, तार्किक और अंतर्ज्ञान जैसी सुषुप्त क्षमताओं को विकसित करता है ।
मस्तिष्क से निकलने वाली अल्फा तरंगें मस्तिष्क की क्रियाशीलता उच्चतम स्तर तक बढ़ा सकती है ।
सावधानियां:
*थोप्पुकर णम् करते समय सुविधा जनक कपडे पहने और हवादार और स्वच्छ स्थान पर ही करें ।
*महिलाएं प्रेगनेंसी या माहवारी में इसे न करें ।
*इसके लिए सुबह या शाम का समय उपयुक्त है , खाली पेट रह कर करने की कोशिश करें ।
*धीरे धीरे अपनी शक्ति अनुसार स्क्वैटिंग की गिनती को बढ़ाएं । एक बार में ३०-३५ स्क्वैटिंग से अधिक न करें।
*पेट, लिवर,किडनी या ह्रदय के रोग में करने से पहले डॉक्टर से जरूर सलाह लें । किसी भी प्रकार की सर्जरी हो चुकी हो तो भी डॉक्टर से पहले सलाह लें ।
*थोप्पुकरणम् करते समय किसी भी प्रकार की असुविधा हो जैसे चक्कर आना, सर दर्द होना या किसी भी अंग में तकलीफ होना तो उसे उसी समय बंद कर दें ।